मुगलों ने सबसे लम्बी जंग किसके साथ लड़ी, किसने बोया दुश्मनी का बीज? कई पीढ़ियों ने दी औरंगजेब को चुनौती
मध्य पूर्व में इजरायल और हमास के बीच युद्ध को अब दो साल हो चुके हैं. सात अक्तूबर 2023 को शुरू हुई इस लड़ाई में गाजा लगभग तबाह हो चुका है और साथ ही हमास का ज्यादातर नेतृत्व भी समाप्त हो चुका है. हालांकि, अब हमास युद्धविराम के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की शांति योजना के आधार पर समझौते के लिए तैयार है, जबकि इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि वह हर एक इजराइली बंधक को वापस लाने के लिए अभियान जारी रखेंगे और हमास का शासन खत्म करके ही रहेंगे. इसी बहाने आइए जान लेते हैं कि मुगलों का सबसे लंबे समय तक चला युद्ध कौन सा था और ऐसा क्यों हुआ? क्या हुआ इसका परिणाम?
साल 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी. इसके बाद मुगलों का शासन साल 1857 तक चलता रहा. इस बीच मुगलों ने पूरे भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए तमाम लड़ाइयां लड़ीं.
मराठों से लड़ी सबसे लम्बी जंग
बाबर के बाद हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां से लेकर औरंगजेब तक ने अपनी महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए भारतीय राजाओं पर हमले किए और तमाम युद्धों में विजय भी हासिल की. इन युद्धों में जीत के बाद ज्यादातर शासक मुगलों के झंडे के नीचे आ गए पर दक्षिण (दक्कन) में मुगलों की दाल कभी भी पूरी तरह से नहीं गली. यहां तक कि औरंगजेब अपनी जिंदगी के आखिरी 27 साल मराठों से लड़ता रहा पर छिटपुट जीत के अलावा उसे कुछ हासिल नहीं हुआ. इसे ही मुगलों का सबसे लंबे समय तक चला युद्ध कहा जाता है. इस युद्ध के दौरान औरंगजेब ने मराठा साम्राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों को तो जीता पर पूरी तरह से दक्कन पर कभी कब्जा नहीं कर पाया.

औरंगजेब ने तो सत्ता के लिए भाइयों को भी रास्ते से हटा दिया था.
औरंगजेब और शिवाजी का उदय
शाहजहां का पुत्र आलमगीर यानी औरंगजेब छठा मुगल सम्राट था, जिसने साल 1658 से 1707 तक शासन किया. उसने उत्तराधिकार की लड़ाई में दारा शिकोह, शुजा और मुराद आदि को खत्म कर सिंहासन हासिल किया था. वह आखिरी शक्तिशाली मुगल बादशाह था, जिसने अपने साम्राज्य का काफी विस्तार किया और इसी कड़ी में मुगलों से लोहा लेता रहा. दूसरी ओर, दक्षिण में मराठा साम्राज्य की स्थापना छत्रपति शिवाजी महाराज ने की थी. पहले उन्होंने बीजापुर के सुल्तान के खिलाफ लड़ाइयां लड़कर जीत हासिल की. फिर मुगलों के खिलाफ मोर्चा खोला. इसके बाद उन्होंने रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाकर हिंदवी स्वराज्य की बुनियाद रखी. इस तरह से मराठा साम्राज्य की शुरुआत हुई और साल 1674 में उन्होंने छत्रपति की उपाधि धारण की.

औरंगजेब ने शिवाजी का सामना करने के लिए सेना भेजी पर मराठों के आगे उसकी एक नहीं चली.
दक्कन का गवर्नर रहा औरंगजेब
दिल्ली का बादशाह बनने से पहले साल 1636 में औरंगजेब को दक्षिण की कमान सौंपी गई थी. शाहजहां ने दिल्ली में अपने बेटों के बीच होने वाले विवादों से बचने के लिए औरंगजेब को दक्षिण भेजा था, जिसने वहां निजाम शाही को खत्म कर औरंगाबाद में अपना ठिकाना बनाया. साल 1652 में एक बार फिर से औरंगजेब को दक्षिण की जिम्मेदारी दी गई. इस बीच मराठों के साथ मुगलों की छिटपुट झड़प होती रही. साल 1657 में शिवाजी ने मुगलों के आधिपत्य वाले जुनार पर हमला कर उनका खजाना लूट लिया, जिससे औरंगजेब तिलमिला उठा. औरंगजेब ने शिवाजी का सामना करने के लिए सेना भेजी पर मराठों के आगे उसकी एक नहीं चली. इसी बीच, दिल्ली में उत्तराधिकार का मुद्दा उठने लगा तो औरंगजेब दिल्ली चला गया और मराठा अपना विस्तार करते रहे.

छत्रपति शिवाजी महाराज.
आगरा में शिवाजी को किया नजरबंद
यह साल 1666 की बात है. राजा जयसिंह की अगुवाई में हुए युद्ध में शिवाजी को पुरंदर की संधि करनी पड़ी. इसके कारण उनको कई किले मुगलों को देने पड़े इसके बाद शिवाजी को औरंगजेब ने आगरा बुलाया. वहां उनको उचित सम्मान नहीं दिया, बल्कि बेटे संभाजी के साथ शिवाजी को नजरबंद कर दिया था. हालांकि, शिवाजी अपने बेटे के साथ फलों की टोकरियों में छिपकर भाग निकले. इसके बाद वह औरंगजेब के लिए नासूर बनते चलते गए.
औरंगजेब ने छोड़ दी दिल्ली
मराठों की ताकत बढ़ती देख साल 1680 के शुरुआत में दिल्ली वैभव छोड़कर औरंगजेब दक्कन के लिए रवाना हो गया. भारी भरकम फौज, अपने बेटों, हरम और चलते-फिरते दरबार के साथ औरंगजेब ने लड़ाई के मैदान में डेरा डाला और साल 1686 में 15 महीने के लंबे और क्रूर संग्राम के बाद बीजापुर को जीत लिया. एक साल बाद गोलकुंडा भी उसके अधीन आ गया. इससे दक्कन की सल्तनत खत्म हो गई और मुगलों के सामने केवल मराठा बचे. हालांकि, अपनी भौगोलिक स्थिति और गुरिल्ला युद्ध नीति के कारण मराठा मुगलों पर भारी पड़ते रहे. शिवाजी ने अपने खोए कई किले वापस ले लिए. फिर शिवाजी की अगुवाई में मराठा राजनीतिक रूप से एकजुट रहे. इसके कारण औरंगजेब कोई खास सफलता हासिल नहीं कर पा रहा था और यह सिलसिला शिवाजी के निधन तक चलता रहा.

लाल किला.
संभाजी ने किया नाक में दम
शिवाजी के निधन के बाद उनके बड़े संभाजी महाराज साल 1681 में मराठा सिंहासन पर बैठे. वह भी अपने पिता की ही तरह मुगलों का सामना करते रहे. साल 1681 में ही उन्होंने बुरहानपुर पर आक्रमण कर औरंजेब की सेना को हरा दिया, लगातार मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ते रहे और मराठों को एकजुट करते रहे. हालांकि, साल 1689 में अपने साले गणोजी के छल के कारण संभाजी को मुगलों ने संगमेश्वर में पकड़ लिया. उनको काफी यातनाएं दी गईं. इस्लाम कबूल करने के लिए कहा गया पर औरंगजेब की एक भी बात उन्होंने नहीं मानी. इसके कारण 11 मार्च 1689 को पुणे के पास तुलापुर में औरंगजेब ने उनको फांसी दे दी.

इतिहास में मुगलों और मराठाें की जंग के कई किस्से दर्ज हैं.
और अधूरा रह गया औरंगजेब का सपना
संभाजी के बाद भी पूरे मराठा साम्राज्य पर मुगलों का कब्जा नहीं हो पाया. संभाजी के बाद उनके सौतेले भाई राजाराम ने मराठों की कमान संभाली. वह भी मुगलों का सामना करते रहे. उन्होंने तमिलनाडु में गिंजी/जिंजी के किले से साम्राज्य का नेतृत्व किया. बाद में साल 1700 में उनका सतारा में निधन हो गया तो उनकी पत्नी ताराबाई ने मुगलों के खिलाफ मराठों के प्रतिरोध की अगुवाई की. साल 1714 तक वह मराठों की मुखिया रहीं और मुगलों को मराठा साम्राज्य पर एकाधिकार नहीं करने दिया.
हालांकि, इसी बीच साल 1707 में 88 साल की उम्र में औरंगजेब का बीमारी के कारण निधन अहमदनगर में निधन हो गया और उसके बेटों में उत्तराधिकार का युद्ध शुरू हो गया. इस तरह से मराठों को हराकर दक्कन पर पूरी तरह से कब्जा करने का औरंगजेब का सपना कभी पूरा नहीं हो पाया.
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