आज शरदपूर्णिमा पर है भगवान स्वामिनारायण के परम भक्त गुणातीतानंद स्वामी का जन्मदिवस
आज देशभर में शरद पूर्णिमा मनाई जा रही है. विक्रम संवत् की अन्तिम पूर्णिमा अर्थात् शरद् पूर्णिमा के दिन ही भगवान् स्वामिनारायण के उत्कृष्ट भक्त गुणातीतानंद स्वामी का जन्मदिन है. वे अक्षरब्रह्म के अवतार थे; उन्होंने अनेक जीवों को ब्रह्मरूप स्थिति प्रदान करने का बड़ा कार्य किया. इस पूर्णिमा की रात को भगवान् कृष्ण गोपियों के साथ स्वयं रास खेले, क्योंकि गोपियों ने उनकी आज्ञा का यथार्थ पालन किया.
हम भी यदि भगवान् की आज्ञा- अनुवृति का पालन करेंगें तो वे हमारे अपने बनकर, हमें लाभ देंगे. शरद पूर्णिमा वल्मीकि जयंती के रूप में भी मनाई जाती है. ऐसे गुणातीत सतपुरुष हमेशा पृथ्वी पर प्रकट रहते हैं. उनके सत्संग से जीवन सार्थक होता है.
प.पू. महंत स्वामी महाराज के आशीर्वचन | शरद पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के पावन पर्व पर परम पूज्य महंत स्वामी महाराज के आशीर्वाद के साथ इस उत्सव को मनाते है #SharadPurnima #MahantSwamiMaharaj #BAPS #ValmikiJayanti #GunatitanandSwami #HinduFestivals pic.twitter.com/t4Kai8oG8l
— BAPS Satsang Katha – Hindi (@BAPSSatsang_HIN) October 6, 2025
अक्षरधाम क्या है?
अक्षरधाम का अर्थ है ‘ईश्वर का पवित्र निवास’से है. यह एक ऐसा स्थान है जो भक्ति, शुद्धता और शांति का प्रतीक माना जाता है. नई दिल्ली में स्वामीनारायण अक्षरधाम एक मंदिर है, जो ईश्वर का निवास, हिंदू पूजा स्थल और भक्ति, शिक्षा व सामंजस्य को समर्पित एक आध्यात्मिक व सांस्कृतिक परिसर है.
यहां हिंदू धर्म के शाश्वत आध्यात्मिक संदेश, जीवंत भक्ति परंपराएं और प्राचीन स्थापत्य कला वास्तुकला में झलकते हैं. यह मंदिर भगवान स्वामीनारायण (1781-1830), हिंदू अवतारों, देवताओं और महान ऋषियों को श्रद्धांजलि है. इस परंपरागत शैली के परिसर का उद्घाटन 6 नवंबर 2005 को एचएच प्रमुख स्वामी महाराज के आशीर्वाद और कुशल कारीगरों व स्वयंसेवकों के समर्पित प्रयासों से हुआ.
शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा या कोजागर पूजा कहकर भी बुलाया जाता है. शरद पूर्णिमा का हिंदू धर्म की मान्यताओं में खास महत्व है. चांद और खीर के बारे में तो आपने सुना ही होगा, लेकिन इस दिन माता लक्ष्मी की भी विशेष पूजा का प्रावधान है. ऐसी मान्यता है कि इस खास दिन पर माता लक्ष्मी क्षीर सागर से प्रकट हुई थीं. वो आज के दिन धरती पर आती हैं और यहां भ्रमण करती हैं. ऐसे में कुछ भक्त व्रत भी रहते हैं और व्रत के साथ-साथ कथा को भी सुनते हैं, जिसका काफी महत्व है.
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