4 गलतियां, जो बनीं बच्चों की मौत की जिम्मेदार:अफसर तीर्थयात्रा पर, सिरप के सैंपल बंद लेबोरेटरी में; डॉक्टर पर भी देर से एक्शन

छिंदवाड़ा में कफ सिरप पीने से 10 बच्चों की मौत के मामले में एमपी के सरकारी सिस्टम में हर कदम पर लापरवाही उजागर हुई है। 29 सितंबर को छिंदवाड़ा में जिस दवा को जहरीली मानकर बैन कर दिया गया था, उसके सैंपल की जांच 4 अक्टूबर की रात तक नहीं आ सकी। जबकि तमिलनाडु सरकार ने 24 घंटे के भीतर कफ सिरप की जांच कर ली और बता दिया कि सिरप में 48% जहर है। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद तमिलनाडु सरकार ने श्री सन फॉर्मास्युटिकल में होने वाले इसके प्रोडक्शन और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया। ये सबकुछ 24 घंटे में हुआ। इधर, मप्र के सिस्टम का आलम ये रहा कि छिंदवाड़ा से जब संदिग्ध दवाओं के सैंपल भोपाल की लैब में भेजे गए तो कोल्ड्रिफ और नेक्स्ट्रा डीएस सिरप की जांच की बजाय ड्रग अथॉरिटी दूसरी दवाओं के सैंपल जांचते रहे। साथ ही डिप्टी कंट्रोलर शोभित कोष्टा 1 अक्टूबर से तीर्थ यात्रा पर चले गए। जो मप्र की लाइसेंसिंग अथॉरिटी है। एमपी की लैब के एनालाइजर नवमी और दशहरे की छुट्टी मनाते रहे। जब तमिलनाडु सरकार की रिपोर्ट आई और एमपी सरकार की किरकिरी हुई तो शनिवार यानी 4 अक्टूबर को छुट्टी वाले दिन लैब में ड्रग कंट्रोलर और एनालाइजर दफ्तर में बैठे रहे। पढ़िए किस-किस स्तर पर लापरवाही हुई। सिलसिलेवार जानिए किस-किस स्तर पर हुई लापरवाही पहली लापरवाही: 5 दिन, 6 मौतें… तब जाकर जागा प्रशासन इस मामले की शुरुआत सितंबर के महीने से ही हो गई थी, लेकिन प्रशासन ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया। 2 सितंबर को 4 साल के शिवम राठौड़ की मौत हो गई। इसे सामान्य घटना मानकर नजरअंदाज कर दिया गया। जब 15 दिनों के भीतर 6 बच्चों की किडनी फेल होने से मौत हो गई, तब जाकर प्रशासन को पहली बार यह भनक लगी कि छिंदवाड़ा के परासिया ब्लॉक में कुछ बहुत गलत हो रहा है। आनन-फानन में 20 सितंबर को परासिया सिविल अस्पताल में एक अलग वॉर्ड तो बना दिया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। सवाल यह है कि एक ही इलाके में एक ही पैटर्न से हो रही बच्चों की मौतों पर स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय प्रशासन को सचेत होने में 18 दिन क्यों लग गए? दूसरी लापरवाही: हाथ में थी ‘सबूत’ वाली रिपोर्ट, फिर भी 3 दिन तक बिकता रहा जहर
परासिया के 4 बच्चों को जब किडनी खराब होने की वजह से नागपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया, तो वहां उनकी किडनी की बायोप्सी हुई। बायोप्सी रिपोर्ट ने साफ रूप से कहा कि कफ सिरप में मौजूद केमिकल की वजह से किडनी डैमेज हुई है। यह भी पाया गया कि सभी बच्चों को एक ही कफ सिरप ‘कोल्ड्रिफ’ दिया गया था। यह रिपोर्ट छिंदवाड़ा अस्पताल के डॉक्टरों तक पहुंच भी गई थी। यह एक ऐसा निर्णायक सबूत था, जिसके आधार पर तत्काल प्रभाव से उस दवा की बिक्री पर रोक लगनी चाहिए थी। लेकिन हुआ ठीक उलटा। रिपोर्ट मिलने के बाद भी स्थानीय स्वास्थ्य विभाग ने दवा को प्रतिबंधित करने में 3 दिन का कीमती वक्त बर्बाद कर दिया। 29 सितंबर को जाकर सिरप पर प्रतिबंध लगाया गया। लेकिन यह प्रतिबंध भी आधा-अधूरा था। छिंदवाड़ा में सिरप बैन हुआ, लेकिन जबलपुर में बैठे इसके सुपर स्टॉकिस्ट के यहां से प्रदेश के दूसरे हिस्सों में सप्लाई बेरोकटोक जारी रही। यानी एक जिले में ज़हर बैन था, तो दूसरे जिलों में बांटा जा रहा था। तीसरी लापरवाही: संदिग्ध सैंपल छोड़कर बाकी की जांच और फिर दशहरे की छुट्टी
जब चौतरफा दबाव बढ़ा, तो 30 सितंबर को छिंदवाड़ा से संदिग्ध कफ सिरप ‘कोल्ड्रिफ’ और ‘नेक्सट्रा डीएस’ के सैंपल जांच के लिए भोपाल भेजे गए। डॉक्टरों ने इन्हीं दो दवाओं पर संदेह जताया था। लेकिन भोपाल की ड्रग लेबोरेटरी के कर्मचारियों ने जानलेवा ‘कोल्ड्रिफ’ और ‘नेक्सट्रा डीएस’ के सैंपल को छोड़कर बाकी दवाओं (आल्टो-ई, वोक्सम डीएस, और डी-फ्रॉस्ट) के सैंपल की जांच पहले शुरू कर दी। इन तीनों की रिपोर्ट 1 अक्टूबर को ही आ गई और उनमें कोई गड़बड़ी नहीं मिली। इसके बाद भी मुख्य संदिग्ध दवाओं की जांच को आगे नहीं बढ़ाया गया। फिर दशहरे की छुट्टी आ गई और लैब में ताला लग गया। एक तरफ बच्चे मर रहे थे, और दूसरी तरफ सरकारी लैब के कर्मचारी त्योहार मना रहे थे। जब तमिलनाडु सरकार की रिपोर्ट आई तब 4 अक्टूबर देर रात को रिपोर्ट जारी हुई। मध्यप्रदेश की सरकारी रिपोर्ट में यह पाया गया कोल्ड्रिफ (Coldrif) में 46.2% डायएथिलिन ग्लायकॉल (DEG) की पुष्टि हुई है। वहीं नेक्स्ट्रो-डीएस (Nextro-DS) और मेफटॉल पी सिरप की रिपोर्ट ‘ओके’ पाई गई। यह दोनों स्टैंडर्ड क्वालिटी के कफ सिरप करार दिए गए हैं। चौथी लापरवाही: सरकारी डॉक्टर ही निजी क्लिनिक से बांटता रहा ‘मौत इस पूरे मामले में एक और चौंकाने वाला पहलू सामने आया। परासिया सिविल अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सोनी, नागपुर से आई बायोप्सी रिपोर्ट के बावजूद, अपने निजी क्लिनिक पर बच्चों को वही ज़हरीला ‘कोल्ड्रिफ’ कफ सिरप लिखते रहे। और तो और, उनकी पत्नी ज्योति सोनी के मेडिकल स्टोर से इस दवा की बिक्री भी धड़ल्ले से जारी रही। जब भास्कर ने डॉ. सोनी से इस बारे में पूछा, तो उन्होंने बड़ी सहजता से अपनी जिम्मेदारी ड्रग इंस्पेक्टर पर डाल दी। उन्होंने कहा, ‘मैं कई सालों से यह दवा लिख रहा हूं। जिस दवा का रिजल्ट अच्छा लगता है, उसे प्रिस्क्राइब करता हूं। हम दवा के सैंपल तो ले नहीं सकते। यह ड्यूटी ड्रग इंस्पेक्टर की है।’ जब मप्र सरकार की रिपोर्ट आई तब डॉ. प्रवीण सोनी को शनिवार देर रात गिरफ्तार किया गया। 1 अक्टूबर को तमिलनाडु सरकार को पत्र लिखा और अफसर छुट्टी पर मप्र के ड्रग कंट्रोलर ने 1 अक्टूबर को तमिलनाडु सरकार को पत्र लिखकर दवा बनाने वाली कंपनी की जांच करने का अनुरोध किया और अपनी जिम्मेदारी पूरी मान ली। इसके बाद डिप्टी ड्रग कंट्रोलर और राज्य की लाइसेंसिंग अथॉरिटी, शोभित कोष्टा, आधिकारिक छुट्टी लेकर रामेश्वरम की तीर्थयात्रा पर रवाना हो गए। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर छुट्टी के दिन तमिलनाडु की सरकारी टीम ने दवा कंपनी पर छापा मारा। वहीं मप्र की ड्रग लेबोरेटरी में ताला लटका हुआ था। जब भास्कर ने ड्रग कंट्रोलर दिनेश कुमार मौर्य से पूछा तो उन्होंने कहा कि दशहरे के दिन सैंपल की जांच नहीं हो सकी थी। उन्होंने ये भी कहा कि सैंपल जिस क्रम में मिले, उसी क्रम में जांच की जा रही थी। ये पूछने पर कि तमिलनाडु सरकार ने पहले जांच कैसे कर ली, तो उन्होंने कहा वहां मैन्युफैक्चरिंग यूनिट है इसलिए उन्हें इन्फॉर्म किया था।

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