जापान में कैसे चुना जाता है PM, कितनी चुनौतियों का सामना करना होगा?

जापान में कैसे चुना जाता है PM, कितनी चुनौतियों का सामना करना होगा?

जापान के प्रधानमंत्री (PM) शिगेरू इशिबा ने 7 सितंबर 2025 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. अब उनके स्थान पर लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी अपने अध्यक्ष पद के लिए चुनाव करा रही है. यह चुनाव आज यानी शनिवार (4 अक्तूबर 2025) को है. जो भी इस पद के लिए चुना जाएगा, वह संसद में मतदान के बाद जापान का अगला प्रधानमंत्री बनेगा.

आइए जान लेते हैं कि जापान में कैसे चुना जाता है प्रधानमंत्री? नए PM के सामने कितनी चुनौतियां हैं और कितना पावरफुल होता है यह पद? कौन-कौन लोग अगले PM के लिए लाइन में हैं.

बहुमत वाली पार्टी का अध्यक्ष बनता है PM

दरअसल, जापान में जिस पार्टी को बहुमत मिलता है, उसी पार्टी का अध्यक्ष PM बनता है. बहुमत वाली पार्टी में पहले अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होता है. फिर वही अध्यक्ष प्रधानमंत्री पद के लिए नामित किया जाता है. फिलहाल जापान में किसी भी दल के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है. सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी जापानी संसद के दोनों सदनों में बहुमत खो चुकी है, फिर भी सत्ता में बनी हुई है, क्योंकि फिलहाल यह संसद में सबसे बड़ी पार्टी है और किसी दूसरे दल या गठबंधन के पास भी बहुमत नहीं है.

हालांकि, चुनाव में बहुमत न मिलने के कारण ही जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा को इस्तीफा देना पड़ा था. अब उनकी पार्टी नया अध्यक्ष चुनने जा रही है.

पार्टी अध्यक्ष ऐसे चुना जाता है

लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष के चुनाव में पार्टी के सभी विधायकों और सांसदों के अलावा पार्टी के सदस्य भी मतदान करते हैं. अध्यक्ष पद जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार को स्पष्ट बहुमत यानी 51 फीसदी वोटों की जरूरत होती है. अगर किसी उम्मीदवार को पहली बार में स्पष्ट बहुमत न मिले, तो अव्वल रहे दो उम्मीदवारों के बीच दूसरे दौर का मुकाबला होता है. जो भी उम्मीदवार पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव जीतता है, उसको संसद में PM पद के लिए नामित किया जाता है. संसद में बहुमत हासिल करने के बाद वह PM पद की शपथ लेता है.

Sanae Takaichi, Shinjiro Koizumi, Yoshimasa Hayashi, Toshimitsu Motegi, And Takayuki Kobayashi

ताकायुकी कोबायाशी, तोशिमित्सु मोटेगी, साने ताकाइची, योशिमासा हयाशी और शिंजिरो कोइजुमी.

अध्यक्ष पद के साथ PM बनने की रेस में कौन-कौन शामिल?

लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) का अध्यक्ष बनने की दौड़ में पांच उम्मीदवार शामिल बताए जा रहे हैं. इनमें से एक हैं साने ताकाइची, जो पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो अबे की करीबी मानी जाती हैं. दक्षिणपंथी कंजर्वेटिव के रूप में वह संविधान संशोधन और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर मुखर रहती हैं.

साल 2024 में हुए एलडीपी अध्यक्ष पद के चुनाव में वह दूसरे स्थान पर रही थीं. अक्तूबर 2024 में हुए चुनाव में शिगेरू इशिबा ने बाजी मारी थी और प्रधानमंत्री पद तक पहुंच गए थे. अगर इस बार साने ताकाइची जीतती हैं तो वह देश की पहली महिला प्रधानमंत्री होंगी. इनके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री जुनिचिरो कोइजुमी के बेटे युवा चेहरे शिंजिरो कोइजुमी और देश के कृषि मंत्री भी इस दौड़ में शामिल हैं. कैबिनेट में कई पदों पर काम कर चुके योशिमासा हयाशी, अर्थव्यवस्था और व्यापार के विशेषज्ञ तोशिमित्सु मोटेगी, हार्वर्ड ग्रेजुएट ताकायुकी कोबायाशी भी इस दौड़ का हिस्सा हैं.

भले ही एलडेपी अध्यक्ष पद की दौड़ में कई चेहरे हैं पर मुख्य मुकाबला दो उम्मीदवारों के बीच ही माना जा रहा है. क्योडो न्यूज ने एक सर्वे कराया है, जिसमें साने ताकाइची को 34.4% वोट मिले हैं और वह सबसे आगे हैं. दूसरे नंबर पर शिंजिरो कोइजुमी हैं, जिनको सर्वे में शामिल 29.3% लोगों का समर्थन मिला है. अगर कोइजुमी चुनाव में बाजी मारते हैं तो वह देश के सबसे युवा PM होंगे. उनकी उम्र 45 साल है.

Japan Pm Ishiba

शिगेरु इशिबा. (फाइल फोटो)

अल्पमत की सरकार चलाना कितनी बड़ी चुनौती?

जापान में शिगेरू इशिबा सितंबर 2024 में PM बने थे. इसके अगले ही महीने यानी अक्तूबर 2024 में संसद के निचले सदन (हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव) के चुनाव में एलडेपी और उसके साथ गठबंधन में शामिल कोमेइतो को बहुमत से दूर रहना पड़ा. इस चुनाव में एलडेपी-कोमेतो गठबंधन को 465 में से 215 सीटें मिलीं, जबकि बहुमत के लिए 233 सीटें चाहिए.

हालांकि, एलडेपी सबसे बड़ी पार्टी रही और दूसरा कोई गठबंधन भी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं था. फिर जुलाई 2025 में ऊपरी सदन (हाउस ऑफ काउंसलर्स) के चुनाव में भी एलडेपी बहुमत से तीन सीटें दूर रह गया. इस तरह से साल 1955 में स्थापना के बाद पहली बार एलडेपी को दोनों सदनों में बहुमत गंवाना पड़ा. ऐसे में विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव का मुद्दा उठाया तो इशिबा ने संसद भंग कर दोबारा चुनाव कराने की चेतावनी दे दी. इस पर विपक्ष पीछे हट गया और इशिबा अल्पमत की सरकार चलाते रहे. छोटे दलों के समर्थन से विधेयक, बजट, सब्सिडी और टैक्स सुधारों पर काम करते रहे. जापान के अगले प्रधानमंत्री के सामने भी यह सबसे बड़ी चुनौती होगी.

इसके अलावा जापान को महंगाई का भी सामना करना पड़ रहा है. उच्च सदन के चुनाव में इसका असर भी दिखाई दिया और सत्तारूढ़ दल की सीटें कम हो गईं. नए प्रधानमंत्री के सामने यह भी एक चुनौती है. फिर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए जा रहे टैरिफ को लेकर भी जापान के लोगों में चिंता है. बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जापान में सत्तारूढ़ गठबंधन के प्रति इन मुद्दों को लेकर लोगों में नाराजगी है. इनसे निपटना नए PM के सामने किसी चुनौती से कम नहीं होगा.

शिगेरु इशिबा और पीएम मोदी.

जापान में कितना ताकतवर पीएम का पद?

जापान में PM का पद सबसे ताकतवर कार्यकारी पद है. जापान में अब भी सम्राट की परंपरा है पर असली शक्ति प्रधानमंत्री के हाथों में ही होती है. वही मंत्रिमंडल के मुखिया होते हैं और मंत्रियों की नियुक्ति-बर्खास्तगी तय करते हैं. मंत्रिमंडल की ओर से संसद में PM ही बिल पेश करते हैं और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर संसद को रिपोर्ट देते हैं. तमाम प्रशासनिक शाखाओं पर उन्हीं का नियंत्रण होता है. यहां तक कि जापानी सुरक्षा बलों के कमांडर-इन-चीफ भी प्रधानमंत्री ही होते हैं. कानूनों और मंत्रिमंडल के आदेशों पर उनके हस्ताक्षर अनिवार्य होते हैं. वह सम्राट को जापानी संसद (नेशनल डाइट) को भंग करने की सलाह भी दे सकते हैं. कुल मिला PM ही जापान में सरकार के वास्तविक कार्यकारी मुखिया होते हैं, जिनकी मंत्रिमंडल पर जितनी अधिक पकड़ होती है, वह उतने ही मजबूत होते हैं.

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