हड्डियों की बीमारी में कितनी फायदेमंद है फिजियोथेरेपी, एक्सपर्ट्स से जानें

हड्डियों की बीमारी में कितनी फायदेमंद है फिजियोथेरेपी, एक्सपर्ट्स से जानें

हड्डियों की बीमारी शरीर की हड्डियों, जोड़ों और मांसपेशियों को प्रभावित करती है, जिससे दर्द, जकड़न, सूजन और चलने-फिरने में परेशानी होने लगती है. ये समस्याएं उम्र बढ़ने के साथ ज्यादा देखने को मिलती हैं, लेकिन अब कम उम्र में भी बदलती लाइफस्टाइल, पोषण की कमी और गलत बैठने की आदतों के कारण हड्डियों की दिक्कतें बढ़ रही हैं. महिलाओं में हॉर्मोनल बदलाव के कारण ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डियों की कमजोरी का खतरा अधिक रहता है. बुज़ुर्गों में हड्डियों की डेंसिटी में कमी और गिरने की घटनाओं से फ्रैक्चर का रिस्क बढ़ जाता है. वहीं, बच्चों में कैल्शियम व विटामिन डी की कमी से हड्डियों का विकास प्रभावित हो सकता है. समय रहते सही पहचान और इलाज न मिलने पर ये समस्याएं लंबे समय तक बनी रह सकती हैं और जीवन की गुणवत्ता पर असर डालती हैं.

हड्डियों की कई प्रकार की बीमारियां होती हैं. इनमें ऑस्टियोपोरोसिस यानी हड्डियों का कमजोर होना, ऑस्टियोआर्थराइटिस यानी जोड़ों में सूजन और दर्द, रूमेटाइड आर्थराइटिस, फ्रैक्चर, बोन इंफेक्शन और स्पाइन की समस्याएं जैसे स्लिप डिस्क शामिल हैं. इन बीमारियों के पीछे कई कारण होते हैं, जैसे उम्र बढ़ना, पौष्टिक आहार की कमी, कैल्शियमविटामिन डी की कमी, लंबे समय तक बैठे रहना, फिजिकल एक्टिविटी की कमी, चोट, जेनेटिक फैक्टर और कुछ मेडिकल कंडीशन्स. इसके अलावा महिलाओं में मेनोपॉज के बाद हड्डियों की डेंसिटी तेजी से घटने लगता है. युवाओं में मोबाइल और लैपटॉप पर लंबे समय तक झुककर बैठना भी रीढ़ व जोड़ों की तकलीफें बढ़ा रहा है. समय पर सही देखभाल और एक्सरसाइज न करने से ये समस्याएं धीरे-धीरे गंभीर रूप ले सकती हैं.

हड्डियों की बीमारी में फिजियोथेरेपी कितनी फायदेमंद है?

MMG जिला अस्पताल, गाजियाबाद में फिजियोथेरेपी विभाग के हेड, सैयद जौहर अली नक़वी बताते हैं कि फिजियोथेरेपी हड्डियों और जोड़ों की समस्याओं के इलाज में एक प्रभावी तरीका मानी जाती है. यह शरीर की मूवमेंट को सुधारने, दर्द कम करने और मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मदद करती है. हड्डियों की बीमारियों में मरीजों को अक्सर चलने-फिरने में दिक्कत, जकड़न या दर्द होता है, ऐसे में दवाइयों के साथ नियमित फिजियोथेरेपी तेजी से राहत देती है. ऑस्टियोपोरोसिस में हल्के व्यायाम और बैलेंस ट्रेनिंग से हड्डियों पर दबाव कम होता है और गिरने की संभावना घटती है.

फ्रैक्चर के बाद फिजियोथेरेपी मांसपेशियों को फिर से एक्टिव करने और जोड़ की गतिशीलता वापस लाने में मदद करती है. आर्थराइटिस के मरीजों में यह सूजन और जकड़न कम कर जोड़ों को लचीला बनाती है. नियमित थेरेपी से पैन किलर दवाओं पर निर्भरता घटती है और रिकवरी की गति बढ़ती है. सही एक्सरसाइज तकनीक और गाइडेंस से मरीज अपनी रोज़मर्रा की एक्टिविटी में वापसी जल्दी कर पाते हैं.

इन चीजों का रखें ध्यान

रोजाना हल्की फिजिकल एक्टिविटी या वॉक को रूटीन में शामिल करें.

कैल्शियम और विटामिन डी से भरपूर पौष्टिक डाइट लें.

गलत पोजीशन में बैठने या झुककर काम करने से बचें.

हड्डियों में दर्द, सूजन या अकड़न दिखे तो देर न करें, डॉक्टर से जांच कराएं.

धूम्रपान और शराब जैसी आदतों से दूरी बनाए रखें, ये हड्डियों को कमजोर करती हैं.

उम्र या किसी चोट के कारण हड्डियों में बदलाव दिखे तो फिजियोथेरेपिस्ट से सलाह लें.

गिरने से बचाव के लिए घर में फर्श सूखा रखें और पर्याप्त रोशनी सुनिश्चित करें.

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