भारत के सोलर इंडस्ट्री को मिलेगा बूस्ट, सरकार ने बनाया ये बड़ा प्लान

भारत के सोलर इंडस्ट्री को मिलेगा बूस्ट, सरकार ने बनाया ये बड़ा प्लान

भारत सरकार अब सौर ऊर्जा से जुड़े उपकरणों के आयात पर सख्त नजर रखने जा रही है. इसका मकसद है घरेलू सोलर इंडस्ट्री को मजबूती देना और विदेशी उपकरणों की अंधाधुंध खरीद को कंट्रोल करना है. ET की एक रिपोर्ट के अनुसार, इसके लिए एक नई इंपोर्ट मॉनिटरिंग सिस्टम शुरू करने की तैयारी की जा रही है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि कौन-से सोलर प्रोडक्ट्स भारत में आ रहे हैं, वे कहां से आ रहे हैं और उनका इस्तेमाल कहां हो रहा है.

क्यों जरूरी है ये नया सिस्टम?

आज भारत में कई सोलर प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं जैसे प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना, पीएम-कुसुम योजना और दूसरी योजनाएं जिनमें घरेलू सोलर मॉड्यूल और सेल का इस्तेमाल अनिवार्य किया गया है. इसके लिए सरकार ने पहले से ALMM (Approved List of Models and Manufacturers) जैसी लिस्ट बनाई हुई है, जिसमें उन्हीं कंपनियों के प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल किया जाता है जो मानकों पर खरे उतरते हैं.

हालांकि सरकार को अब तक इस बात की साफ जानकारी नहीं थी कि भारत में जितने सोलर उपकरण आयात हो रहे हैं, वे कहां और किस मकसद से इस्तेमाल हो रहे हैं. क्या वे निजी कंपनियों द्वारा इस्तेमाल हो रहे हैं, क्या वे कमर्शियल प्रोजेक्ट्स के लिए हैं या फिर किसी घरेलू इस्तेमाल के लिए? इस भ्रम को दूर करने और पारदर्शिता लाने के लिए सरकार अब एक स्वचालित निगरानी प्रणाली लागू करने जा रही है.

कैसे काम करेगा नया सिस्टम?

नई प्रणाली के तहत, जो भी कंपनी या व्यापारी सोलर उपकरण आयात करना चाहता है, उसे पहले से एक ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करना होगा. इसमें उसे उपकरण की जानकारी, उसका स्रोत देश और अन्य जरूरी दस्तावेज देने होंगे. इसके बाद उसे एक पंजीकरण संख्या (Registration Number) मिलेगी जो कस्टम क्लीयरेंस से पहले जरूरी होगी.

इस तरह की प्रणाली पहले से स्टील और कागज के आयात पर लागू है और अब इसे सोलर उपकरणों पर भी लाया जा रहा है. इसका फायदा ये होगा कि सरकार को पहले से मालूम होगा कि कौन-सा माल आ रहा है और कहां से आ रहा है और किसके लिए है.

घरेलू निर्माण को मिलेगा फायदा

भारत में सोलर मॉड्यूल और सेल बनाने की क्षमता तेजी से बढ़ी है. मौजूदा समय में देश की सोलर मॉड्यूल निर्माण क्षमता 100 गीगावाट से ऊपर है, जबकि सोलर सेल की क्षमता लगभग 27 गीगावाट है. मंत्रालय का अनुमान है कि अगले कुछ महीनों में इसमें और इजाफा होगा.

ET की एक रिपोर्ट में केयरएज रेटिंग्स के हवाले से बताया कि, साल 2028 तक यह क्षमता और भी बढ़कर मॉड्यूल के लिए 200 गीगावाट और सेल के लिए 100 गीगावाट तक पहुंच सकती है. जबकि भारत की सालाना जरूरत लगभग 50 गीगावाट ही है यानी भविष्य में देश खुद ही सारा सोलर सामान बना सकेगा और आयात की जरूरत कम हो जाएगी. हालांकि एक चिंता यह भी है कि भारतीय कंपनियों का बड़ा बाजार अमेरिका था, जहां से कुछ अड़चनें सामने आई हैं. इससे निर्यात पर असर पड़ सकता है लेकिन सरकार को उम्मीद है कि घरेलू मांग और नीति के सहयोग से इंडस्ट्री में स्थिरता बनी रहेगी.

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