रिंग रोड पास होते ही आसपास की खरीदी 56 जमीने:पूर्व कानूनगो आलोक दुबे की और संपत्तियां आई सामने, 60 करोड़ के ऊपर की है कीमत

कानपुर के पूर्व कानूनगो आलोक दुबे के प्रकरण में और संपत्तियां सामने आई हैं। आलोक दुबे, उसकी पत्नी और बच्चों के नाम जो जमीन है उसकी कीमत 60 करोड़ से भी अधिक हैं। कानपुर ही नहीं बल्कि दिल्ली, नोएडा जैसे शहरों में भी कई फ्लैट ले रखें हैं। उस पर प्रशासन द्वारा जांच की जा रही हैं। फिलाहल अभी सटीक संपत्तियां सामने नहीं आ पाई हैं। जिला प्रशासन का दावा है कि आलोक दुबे के पास इससे और कही ज्यादा संपत्तियां हैं। रिंग रोड बनने से पहले ही खरीद ली दूल गांव की जमीनें दूल गांव के लोगों ने बताया कि जब रिंग रोड पास हुई तो ये किसी को मालूम नहीं था, लेकिन आलोक दुबे को पहले ही पता चल गया था क्योंकि ये विभाग के थे। इसलिए इन्होंने दूल गांव के लोगों से संपर्क करना शुरू किया और फिर एक-एक उन्होंने उस रिंग रोड पर करीब 56 से अधिक संपत्ति खरीद ली। जिसकी कोई संतान नहीं होती थी उसको करते थे टारगेट आलोक दुबे ने भीमसेन गांव के संदीप सिंह की जमीन पर विपक्षियों के साथ मिलकर हेराफेरी की थी। संदीप ने दावा किया है कि रिंग रोड हो या फिर कहीं और की जमीन हर जगह पर आलोक दुबे ने उसको टारगेट किया जिसके आगे की कोई पीढ़ी नहीं होती थी। अगर सभी संपत्तियों की जांच की जाए तो बात भी सामने आ जाएगी। प्राइवेट कंपनी को रखता था अपने साथ जांच में ये बात भी सामने आई है कि आलोक दुबे इस जमीन के खेल में एक प्राइवेट कंपनी को अपने साथ रखता था। हालांकि अभी उस कंपनी की जांच चल रही हैं। कई जमीन ऐसी भी है जिसको आलोक ने उस कंपनी को बेचा है या फिर उसके मालिक के नाम से विक्रय की हैं। ये जमीन सचेंडी के आसपास की हैं। 60 करोड़ से अधिक की संपत्ति आई अभी सामने जिला प्रशासन की जांच में आलोक दुबे की जमीन पर अभी 60 करोड़ की संपत्ति सामने आ चुकी हैं। इसमें 56 संपत्ति तो केवल सचेंडी थाना क्षेत्र की बताई जाती हैं। इसके अलावा बताया जाता है कि शिवली रोड पर एक 500 वर्ग गज में आलीशान गेस्ट हाउस भी बना रखा हैं। जांच में उसे भी शामिल किया गया हैं। अब बताते है क्या है पूरा मामला…… विपक्षियों से मिलकर करते थे हेराफेरी भीमसेन निवासी संदीप सिंह ने कोतवाली थाने में मार्च 2024 में मुकदमा दर्ज कराया था कि कानूनगो आलोक दुबे ने बुआ राजपति और राज कुमारी के साथ मिलकर दादी द्वारा हम लोगों को वरासत की गई जमीन के फर्जी दस्तावेज तैयार किए थे। इसके बाद उस जमीन को पहले आलोक दुबे और वहां की लेखपाल अरुणा द्विवेदी ने खुद खरीद लिया। इसके बाद इस जमीन को एक आरएनजी इंफ्रा नाम की कंपनी को बेच दिया था। इस मामले की जांच बैठी तो उसमें आलोक और अरुणा दोनों दोषी पाए गए। इसके बाद जिलाधिकारी ने आलोक को वापस लेखपाल के पद पर नियुक्त कर दिया और लेखपाल अरुणा को निलंबित कर दिया था।

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