हार्ट ट्रांसप्लांट के बाद लोगों के बदल गए शौक:किसी को चाइनीज, किसी को करेले तो किसी को मिठाइयां आने लगी पसंद
‘मैं पिछले सात सालों से कार चला रहा हूं और मुझे बाइक्स बिल्कुल पसंद नहीं हैं। इतना ही नहीं, मुझे बाइक्स खतरनाक भी लगती हैं। अब पिछले छह महीनों से मेरा स्पोर्ट्स बाइक खरीदने का बहुत मन कर रहा है और मैं कहता रहता हूं कि मेरे पास एक बाइक होनी ही चाहिए। मैंने दो-तीन बाइक्स देखी भी हैं और उनकी कीमत भी पता कर ली है। मेरे घरवाले और दोस्त भी यही कहते हैं कि अगर बाइक नहीं चलाई, तो अचानक बाइक क्यों खरीदने का मन कर रहा है? फिर मुझे अचानक याद आया कि जिस लड़के का दिल मुझे ट्रांस्पलांट किया गया था, उसकी बाइक चलाते हुए हादसे में मौत हो गई थी। उसे बाइक का भी बहुत शौक था। हो सकता है कि उसी के हार्ट की वजह से मुझे बाइक्स का शौक हुआ हो। मुझे लगता है कि उस युवक को बाइक्स का शौक रहा होगा, तभी तो अब मुझे भी बाइक्स का शौक हो गया है। हार्ट ट्रांसप्लांट से पहले, मैंने बाइक से लेह-लद्दाख जाने के बारे में सोचा भी नहीं था, लेकिन अब वहां जाने का बहुत मन है। इसके अलावा पहले मुझे चाइनीज खाना पसंद नहीं था। मैं कभी बाहर चाइनीज खाना खाने नहीं जाता था, लेकिन अब हर हफ्ते खाने लगा हूं।’ ये शब्द हैं नरहरिभाई पटेल के, जिनका जनवरी 2024 में हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ था। सिर्फ नरहरि भाई ही नहीं, हार्ट ट्रांसप्लांट करवाने वाले ऐसे कई लोग हैं, जिनके बाद में शौक बदल गए। आज, 29 सितंबर को वर्ल्ड हार्ट डे है। इसी मौके पर दिव्य भास्कर ने हार्ट ट्रांसप्लांट के मरीजों से खास बातचीत की। इस बातचीत में उन्होंने उनके स्वभाव, खान-पान और शौक में आए बदलावों के बारे में जाना। हमारी टीम ने हार्ट देने वाले के परिवार से भी बात की। इसके अलावा, गुजरात के जाने-माने हार्ट ट्रांसप्लांट स्पेशलिस्ट डॉ. धीरेन शाह से भी बात की और मरीजों में इन बदलावों के पीछे के कारणों को समझने की कोशिश की। 38 साल की उम्र में हुआ था हार्ट ट्रांसप्लांट
अहमदाबाद में रहने वाले नरहरिभाई पटेल ने कहा- 2018 में मुझे हार्ट की समस्या हुई। मेरा दिल बड़ा हो रहा था। मुझे दवाइयां भी दीं गईं, लेकिन फायदा नहीं हो रहा था। 2018 में ही मुझे हार्ट ट्रांसप्लांट करवाने के लिए कहा गया था, लेकिन उस समय कुछ जटिलताओं के कारण यह संभव नहीं था। फिर मेरे दिल में एक CRT (कार्डियक रीसिंक्रोनाइज़ेशन थेरेपी) डिवाइस प्रत्यारोपित किया गया। 2022 में, जब डिवाइस की बैटरी खत्म हो गई, तो इसे फिर से प्रत्यारोपित किया गया और तब मेरी सेहत में थोड़ा सुधार होने लगा। 2023 में डॉक्टर्स ने कहा कि हार्ट ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपाय है। मैंने पंजीकरण कराया और जनवरी 2024 में हार्ट ट्रांसप्लांट करवाया। उस समय मेरी उम्र 38 साल थी। मुझे 24 साल के लड़के का हार्ट मिला
नरहरिभाई कहते हैं- मुझे सूरत के एक 24 साल के लड़के का हार्ट ट्रांसप्लांट किया गया था, जो मूल रूप से नेपाल का रहने वाला है। मुझे एक ऐसा हार्ट मिला था, जो मेरी उम्र से 14 साल छोटा है। प्रत्यारोपण के बाद, ऐसा लग रहा है जैसे यह मेरा दूसरा जन्म है। चाइनीज खाना पसंद आने लगा
नरहरिभाई शारीरिक बदलाव के बारे में कहते हैं- खाने की बात करें तो पहले मुझे चाइनीज खाना पसंद नहीं था। मैं कभी बाहर चाइनीज खाना खाने नहीं जाता था। हालांकि, अब मुझे चाइनीज खाना बहुत पसंद आने लगा है। अब मेरे घर पर हफ्ते में एक बार जरूर चाइनीज खाना बनता है। गुस्सा बहुत जल्दी आता है
अपने स्वभाव में आए बदलाव के बारे में नरहरिभाई कहते हैं, ‘पहले मुझे किसी से झगड़ा करना बिल्कुल पसंद नहीं था और मेरा स्वभाव भी बहुत शांत था। बेशक, अब मेरी पत्नी और दोस्त हमेशा मेरे स्वभाव को लेकर बातें करते हैं कि अब तुम्हें बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है। जिंदगी को देखने का मेरा नजरिया पूरी तरह बदल गया है। पहले मैं करियर और पैसे, घर और गाड़ी पर ज्यादा ध्यान देता था। अब मुझे लगता है कि ये सब बस दिखावे के लिए है। अगर हमारे पास गुजारा करने लायक पैसा है, तो ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। दोस्तों और परिवार को समय देना ही सबसे बड़ी पूंजी है। अहमदाबाद में रहने वाली साक्षीताबेन जैन को प्रसव के दौरान हार्ट पंपिंग की समस्या हुई और बाद में 2020 में हार्ट ट्रांस्प्लांट हुआ। प्रसव के दौरान हार्ट की समस्या हुई
साक्षीताबेन कहती हैं- मेरा हार्ट केवल 10-15% ही पंप कर रहा था। इसलिए मेरे बचने की संभावना बहुत कम थी। इसी वजह से हार्ट ट्रांस्प्लांट का सुझाव दिया गया। उस समय कोरोना के कारण संभव नहीं था। फिर 10 जुलाई, 2020 को हार्ट ट्रांस्प्लांट हुआ। तब मेरी उम्र 35 वर्ष थी। 24 साल के लड़के का हार्ट मिला
साक्षीताबेन कहती हैं- मुझे सूरत के 24 साल के महर्ष पटेल का हार्ट मिला है। एक दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी। मैं आज भी उनके माता-पिता से मिलती हूं। वे मेरे साथ बिल्कुल बेटी की तरह व्यवहार करते हैं। उनके सभी रिश्तेदार मुझे जानते हैं। मैं उनसे नियमित रूप से बात करती हूं। मैं उन्हें महर्ष के जन्मदिन पर विशेष रूप से फोन करती हूं। इसके अलावा, जब वे जन्माष्टमी, कृष्ण महोत्सव और नवरात्रि पर गरबा का आयोजन करते हैं तो वे हमेशा वीडियो कॉल करते हैं। साक्षीताबेन खुद में आए बदलावों के बारे में कहती हैं- सर्जरी के बाद मुझे थोड़ा गुस्सा आने लगा है। पहले मैं किसी को जल्दी जवाब नहीं देती थी। अब मैं जल्दी गुस्सा आ जाता है। खान-पान में आए बदलाव के बारे में साक्षीताबेन ने बताया- मैं गुजराती खाना या मिठाई नहीं खाती थी, लेकिन अब मैंने इन्हें खाना शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं, अब मैं आइसक्रीम भी ज्यादा खाने लगी हूं। पहले मैं सैंडविच नहीं खाती थी, लेकिन अब मैंने इन्हें भी खाना शुरू कर दिया है। मुझे पता चला कि महर्ष को यह पसंद था। इसलिए सर्जरी के बाद मुझमें इजाफा हुआ। पहले मैं जंक फूड ज़्यादा खाती थी और हेल्दी खाना नहीं खाती थी। इसके अलावा अब मैं ज्यादा घूमने-फिरने भी लगी हूं। पहले मैं जल्दी उठती थी, लेकिन अब देर तक नींद नहीं खुलती हूं। महर्ष सैंडविच और मिठाइयों का शौकीन था
महर्ष पटेल के पिता हर्षदभाई ने कहा- महर्षि जब भी दोस्तों के साथ बाहर जाता था, तो सैंडविच और पिज्जा खूब खाता था। इतना ही नहीं, महर्ष को गुजराती मिठाइयाँ बहुत पसंद थीं।’ हर्षदभाई से पूछा गया कि महर्ष का स्वभाव कैसा था? तो उन्होंने तुरंत जवाब दिया कि उसका दिमाग बहुत तेज था, मतलब वह गुस्सैल स्वभाव का था। इतना ही नहीं, उसे शॉपिंग करना बहुत पसंद था। वह पैसों का खुलकर इस्तेमाल करता था। जामनगर की रहने वाली भूमिका का हार्ट ट्रांस्प्लांट तब हुआ, जब वे मात्र 13 साल की थी। पिता अमित कुमार और भूमिका ने हार्ट ट्रांस्प्लांट के बाद आए बदलावों के बारे में बात की। पिता ने अपनी बेटी की समस्या के बारे में बात करते हुए कहा- मेरी लाडली को सात साल की उम्र से ही दिल की समस्या होने लगी थी। शुरुआत में कोई पक्का निदान नहीं था। लेकिन बाद में पता चला कि दिल ठीक से पंप नहीं कर रहा है। उम्मीद थी कि दवा से आराम मिल जाएगा। 2015 से दवाइयां शुरू की गईं। इस दौरान अमेरिकी शोधकर्ताओं ने भी उसे दवाइयां दीं और उसने दो साल तक दवाइयां लीं, कुछ सुधार हुआ, लेकिन आखिरकार हार्ट ट्रांसप्लांट की बात हुई। लगातार दवाइयों के कारण भूमिका थोड़ी बेचैन रहती थी। हम पिछले छह-सात सालों से नियमित रूप से जामनगर से अहमदाबाद आते थे। कभी-कभी हमें हफ़्ते में दो बार आना पड़ता था। जनवरी 2022 में, मैं डॉ. धीरेन शाह और डॉ. चिंतन से मिला और तब उन्होंने कहा कि मेरी बेटी को प्रत्यारोपण के लिए मानसिक रूप से तैयार होना होगा। जब तक उसकी इच्छाशक्ति मजबूत नहीं होगी, इलाज और दवा का अपेक्षित असर संभव नहीं है। मेरी बेटी ने भी स्थिति को स्वीकार कर लिया। शुरुआत में, हम सभी सर्जरी को लेकर डरे हुए थे, लेकिन फिर हमें कोई आपत्ति नहीं हुई। 15 मार्च, 2022 को भूमिका का हार्ट ट्रांस्प्लांट हुआ। उस समय वह 13 साल की थी।’ छोटी सी उम्र में ही आ गई बड़ी समझ
17 साल की आज की लड़की, जो उस समय सिर्फ 13 साल की थी। अब बहुत ही परिपक्व व्यक्ति की तरह सोचती है। विल पावर स्ट्रॉन्ग के बारे में कहती है- मैं ज्यादा नहीं सोचती। जो होना है वो होकर रहेगा। आपके पास कोई विकल्प नहीं होता या आप कुछ भी चुन सकते हैं। आपके पास सिर्फ एक ही विकल्प होता है और वो है हार्ट ट्रांसप्लांट और आपको इसे करवाना ही होगा। सर्जरी के बाद भूमिका में आए बदलाव के बारे में पिता कहते हैं- सर्जरी के बाद आए सबसे बड़े बदलाव के बारे में भूमिका कहती हैं- पहले मुझे करेला बिल्कुल पसंद नहीं था। अब करेला मेरी पसंदीदा सब्जी है। सर्जरी के बाद बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में भूमिका ने कहती हैं कि मुझे रोजाना नियमित दवाइयां लेनी पड़ती हैं। अगर रविवार को देर तक सोना हो, तो बीच में दवाइयां लेकर सो जाती हूं। बस मुझे समय पर दवाइयां लेनी होती हैं। ट्रांसप्लांट के बाद भाप लेनी होती है, सही खानपान रखना होता है, वजन बढ़ने-घटने पर नजर रखनी होती है और पेशाब का माप लेना होता है। तीन-चार महीने तक इन सबका ध्यान रखने के बाद दिनचर्या बिल्कुल सामान्य हो जाती है। भूमिका को तीसरी कोशिश में मिला दिल
भूमिका को लगे हार्ट के बारे में पिता ने बताया- दानकर्ता एक 21 साल का राजस्थानी युवक था। उसकी एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी। हालांकि, हम आज तक उस परिवार से नहीं मिल सके। न ही उस परिवार ने हमसे कभी संपर्क करने की कोशिश की। अमरेली की रहने वाली सृष्टि का दिसंबर 2020 में हृदय प्रत्यारोपण हुआ था, जब वह 16 साल की थी। सर्जरी के बाद जिंदगी में आए सबसे बड़े बदलाव के बारे में सृष्टि कहती हैं- मैंने नियमित व्यायाम, ध्यान और अच्छा खाना शुरू कर दिया है। अब ये मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं। इसके अलावा जिंदगी को देखने का मेरा नजरिया भी बदल गया है। सूरत में रहने वाली 42 साल की आश्रिताबेन के ब्रेन डेड होने के बाद उनका हार्ट डोनेट किया गया था। मैं अभी तक उनके परिवार से निजी तौर पर नहीं मिली हूं। लेकिन मैंने आश्रिताबेन के पति से एक बार वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए बात की थी। जब मैं अंकल से मिली, तो मुझे बहुत अच्छा लगा और दुख भी हुआ कि अंकल ने अपनी पत्नी को खो दिया। फिर मैंने मुस्कुराते हुए उनसे कहा- अंकल आप बिल्कुल भी टेंशन मत लीजिए। मैं आश्रिता आंटी को अपने दिल में बसाए बैठी हूं। वो जिंदा हैं, बस आप यही मानना। मैं बहुत जिद्दी होने लगी हूं
बदलाव के बारे में बात करते हुए सृष्टि कहती हैं- पहले मुझमें बिल्कुल भी धैर्य नहीं था, मुझमें काफ़ी धैर्य आ गया है। मेरे परिवार ने मुझे एक बात जरूर बताई है कि ट्रांसप्लांट के बाद मैं बहुत जिद्दी होने लगी हूं। इसके अलावा, पहले मैं आत्ममुग्ध रहती थी और सिर्फ अपने लिए जीती थी, लेकिन अब मैं हर किसी की यथासंभव मदद करने की कोशिश करती हूं। हमने हृदय प्रत्यारोपण के बाद मरीजों में होने वाले बदलावों के बारे में जाने-माने हृदय प्रत्यारोपण चिकित्सक डॉ. धीरेन शाह से बात की। ट्रांसप्लांट के कई मरीज अवसाद से ग्रस्त
डॉ. धीरेन शाह ने बातचीत में कहा- स्वभाव और व्यवहार में बदलाव की संभावनाएं होती हैं और इसके लिए मनोवैज्ञानिक कारण जिम्मेदार होते हैं। हो सकता है कि कोई मरीज करीब पांच साल तक हृदय रोग से पीड़ित रहे और फिर उसे नया हृदय मिल जाए और सर्जरी के बाद वह शुरुआती तीन महीने एक ही कमरे में अकेला रहे। फिर अगले छह महीने उसे घर के अंदर ही रहना पड़े। इन सबका असर स्वभाव पर पड़ता है और बदलाव आते हैं। इसके अलावा कुछ को यह अपराधबोध भी होता है कि कोई मर गया और उसका हृदय चढ़ा दिया गया। यह अपराधबोध भी स्वभाव में बदलाव का कारण बनता है। अक्सर अवसाद होता है। इसके अलावा अगर ट्रांसप्लांट के बाद कोई जटिलता आ जाए और भर्ती होना पड़े और ऐसा बार-बार होता रहे, तो मरीज का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। बदलाव को लेकर चल रही है रिसर्च
डॉ. शाह आगे कहते हैं- हार्ट ट्रांसप्लांट वाले शख्स की पसंद बदलने लगती है, ऐसा जरूरी नहीं कि सबके साथ हो। इस बारे में अभी रिसर्च चल रही है कि क्या वाकई ऐसा होता है या नहीं। कुछ समय पहले सेल मेमोरी पर एक रिसर्च पेपर प्रकाशित हुआ था। शरीर की हर कोशिका की एक मेमोरी होती है। हार्ट सेल्स की भी एक मेमोरी होती है और अगर वह केमिकल फॉर्म में स्टोर हो जाए और उस मेमोरी को रिलीज किया जाए, तो कुछ बदलाव होने की संभावना रहती है। मरीजों ने मुझे कभी नहीं बताया, लेकिन उनके रिश्तेदारों ने बताया। मेरे एक-दो मरीजों को पहले चावल पसंद नहीं थे, लेकिन अब पसंद हैं। पहले वे चिड़चिड़े थे और अब बिल्कुल शांत हो गए हैं।
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