कटिहार के बुद्ध नगर में आयोजित श्री श्री 108 ऐतिहासिक मां काली पूजा और पांच दिवसीय मेले का समापन हो गया है। मंदिर समिति के सदस्यों ने ढोल-नगाड़ों और गाजे-बाजे के साथ मां काली की प्रतिमा को कंधे पर बिठाकर विदाई दी। इस दौरान ‘जय मां काली’ के जयकारों से पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। बंगाल से आए डाक की थाप पर महिलाएं हाथों में दीप लिए मां की आरती उतारती नजर आईं। श्रद्धालुओं ने मां को पुष्प अर्पित कर सुख-समृद्धि की कामना की। सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन पांच दिवसीय मेले के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया। इसमें पूर्णिया, भागलपुर, गया सहित पड़ोसी राज्यों बंगाल और झारखंड के कलाकारों ने अपनी शानदार प्रस्तुतियां दीं, जिस पर दर्शक रात भर झूमते रहे। रविवार को प्रसिद्ध आदिवासी मेले में झारखंड सहित आसपास के जिलों से बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। मेले में गया शहर का प्रसिद्ध राम झूला, थिएटर, जादुई स्टॉल और अन्य झूलों का लोगों ने पांच दिनों तक खूब आनंद उठाया। 1940 में हुई थी काली मंदिर की स्थापना मंदिर कमेटी के अध्यक्ष लड्डू सिंह ने बताया कि कटिहार के बुद्ध नगर काली मंदिर की स्थापना 1940 में हुई थी। यह मंदिर सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होने के लिए प्रसिद्ध है। यहां बलि प्रथा की जगह कुम्हड़ा चढ़ाने की परंपरा है। पूजा के दौरान सैकड़ों प्रतिमाएं चढ़ाई जाती हैं, जिसके लिए श्रद्धालु पहले से ही अर्जी देते हैं। काली पूजा में दो सौ से अधिक प्रतिमाएं चढ़ाई जाती हैं और बिहार व बंगाल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। इस पूजा और मेले के सफल आयोजन में अध्यक्ष लड्डू सिंह, सचिव सुधीर मंडल, कार्यकर्ता प्रमोद केवट, महेश केवट और अखिलेश शाह की प्रमुख भूमिका रही।
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