मेरठ की दुर्गा बाड़ी में हो रही 219वीं पूजा:खास बंगाल से आते है कारीगर, नवरात्रों के बाद होता है माता का विसर्जन
नवरात्रों में जहां पूरे शहर में मां दुर्गा की आराधना धूमधाम से होती है, वहीं दुर्गा बाड़ी की पूजा को सबसे प्राचीन और प्रतिष्ठित माना जाता है। यह पूजा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक विरासत को भी संजोए हुए है। 219वीं पूजा मेरठ की दुर्गा बाड़ी में दुर्गा पूजा की शुरुआत दो सौ साल पहले हुई थी। उस समय बंगाली परिवारों ने इस पूजा की नींव रखी थी और धीरे-धीरे यह पूरे शहर की पहचान बन गई। इस बार मेरठ में यह 219वीं पूजा हो रही है। यही वजह है कि इसे मेरठ की सबसे पुरानी दुर्गा पूजा कहा जाता है। खास बंगाल से आते है कारीगर मां दुर्गा की मुर्ति को तैयार करने के लिए खास बंगाल से कारीगर आते है जो माता की मुर्ति को तैयार करते है। पूजा होने के बाद इस मुर्ति काे विसर्जित कर दिया जाता है। धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व दुर्गा बाड़ी पूजा केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यहां हर साल नवरात्रों में सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन, नृत्य और नाटक भी होते हैं। भव्य प्रतिमा स्थापना और पारंपरिक विधि-विधान से होने वाली आरती भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र रहती है। नवरात्रों में हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि दुर्गा बाड़ी की पूजा में शामिल होने से मां दुर्गा का विशेष आशीर्वाद मिलता है। शहर की पहचान बनी दुर्गा पूजा मेरठ की दुर्गा बाड़ी आज शहर की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है। यहां की पूजा न केवल बंगाली समाज बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के श्रद्धालुओं को जोड़ती है।
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