सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी नहीं खाली कर रहे थे किराए का मकान, जुर्माने के साथ भेजे गए तिहाड़ जेल
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में किराए के घर खाली न करने और कोर्ट के आदेश न मानने पर दो किरायेदारों को अवमानना का दोषी ठहराया. इन दो आरोपियों में से एक को SC ने आर्थिक दंड के साथ-साथ दीवानी कारावास की सजा भी सुनाई है, वहीं एक किराएदार पर बस आर्थिक दंड लगाया गया है.
न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और विजय बिश्नोई की पीठ ने एक अवमाननाकर्ता को तीन महीने के दीवानी कारावास की सजा सुनाई और निर्देश दिया कि उसे हिरासत में लेकर तिहाड़ जेल में रखा जाए. अवमाननाकर्ता को दो महीने के अंदर सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी को एक लाख का जुर्माना भी भरने का आदेश दिया गया है, अगर वह ऐसा नहीं करता तो उसकी सजा एक महीने और बढ़ा दी जाएगी.
दूसरे अवमाननाकर्ता को SC ने क्यों नहीं भेजा जेल
वहीं कोर्ट ने जेल की सजा एक ही किराएदार को सुनाई है. दरअसल दूसरा अवमाननाकर्ता 82 साल का था. इसलिए अदालत ने उसे जेल भेजने से परहेज किया, लेकिन उस पर 5 लाख का जुर्माना लगाया, जिसे दो महीने के अंदर जमा करना होगा, अन्यथा उसे एक महीने की दीवानी कारावास की सजा काटनी होगी.
पुलिस के मदद से खाली कराए जाएंगी संपत्ति
सालों से किराएदारों के कब्जें में संपत्ति को खाली कराने के लिए अदालत ने जिला न्यायाधीश को पुलिस सहायता से एक बेलिफ नियुक्त करने का निर्देश दिया, जो दो हफ्तों में परिसर का कब्जा लेगा. आदेश में कहा गया है कि अगर अवमाननाकर्ताओं का सामान अंदर पाया जाता है, तो उसकी एक सूची तैयार की जानी चाहिए और सामान को मांग पर सुपुर्दगी के लिए सुरक्षित रखा जाना चाहिए.
पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया था आदेश
यह विवाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश से उपजा है, जिसमें किराया नियंत्रण प्राधिकरण के किरायेदारों को बेदखल करने के निर्देश को बरकरार रखा गया था. किरायेदारों ने तर्क दिया कि एक अपंजीकृत फर्म द्वारा बेदखली की कार्यवाही भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 69(2) के तहत गलत है. हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि बेदखली का अधिकार संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 के तहत एक वैधानिक अधिकार है, न कि संविदात्मक.
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