आयुर्वेद को लोकप्रिय बनाने में गोरक्षपीठ की अहम भूमिका:अब आयुर्वेद दिवस 23 सितंबर को, धनतेरस पर नहीं मनाया जाएगा
गिरीश कुमार पांडेय “पहला सुख, निरोगी काया”, यह सार्वभौमिक सत्य है। स्वयं, परिवार, समाज और देश के हित में स्वास्थ्य जरूरी है। इस आरोग्यता का सबसे प्रभावी और आसान तरीका है- योग और आयुर्वेद। संयोग से विश्व को यह भारत की ही देन है। यह ऐतिहासिक सत्य है कि ऋषि पतंजलि के अष्टाध्यायी योग को मौजूदा स्वरूप देकर सबके लिए सुलभ बनाने का श्रेय नाथपंथ के प्रवर्तक गुरु गोरखनाथ को जाता है, इसीलिए उन्हें महायोगी भी कहा जाता है। आज गुरु गोरखनाथ के उसी योग की दुनिया दीवानी है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) इसका प्रमाण है। रही बात आयुर्वेद की, तो आरोग्य हासिल करने और रोग होने पर इलाज की ये हानिरहित विधा भी विश्व को भारत की बहुमूल्य सौगात है। माना जाता है कि शिव की नगरी और तीनों लोकों से प्यारी काशी पर कभी राज करने वाले भगवान धन्वंतरि इसके जनक हैं। पहले आयुर्वेद दिवस उनकी जयंती (धनतरेस) के दिन मनाई जाती थी। आयुर्वेद के बढ़ते क्रेज को वैश्विक कैलेंडर में मुकम्मल पहचान मिले, इसके लिए केंद्र की नरेन्द्र मोदी की अगुआई वाली सरकार ने इस साल से इसका आयोजन 23 सितंबर से करने का निर्णय लिया है। उल्लेखनीय है कि आयुर्वेद और योग एक दूसरे के पूरक हैं। इसीलिए योग के साथ आयुर्वेद पर भी गोरक्षपीठ का शुरू से जोर रहा है। आज से करीब साढ़े पांच दशक पहले 1971 में गोरखनाथ मंदिर परिसर में स्थापित श्री दिग्विजय नाथ धर्मार्थ आयुर्वेदिक चिकित्सालय इसका प्रमाण है। योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं। इसीलिए पद के अनुसार वह आयुर्वेद की परंपरा को और विस्तार दे रहे हैं। उनके ही प्रयास से प्रदेश का इकलौता आयुष विश्वविद्यालय महायोगी गुरु गोरखनाथ के नाम से गोरखपुर में खुला है। लोकार्पण के बाद अब तो इसमें विधिवत इलाज भी चल रहा है। हाल ही में यहां के फार्मेसी विभाग ने करेले सहित 10 अन्य औषधियों को मिलाकर मधुमेह के किए मधुमेहारी नाम से दवा भी तैयार की है। महायोगी गुरु गोरखनाथ विश्वविद्यालय और आयुर्वेद गोरखनाथ मंदिर के शैक्षिक प्रकल्प, “महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद” से संबद्ध महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर में इसके स्थापना वर्ष (2021)से ही बीएएमएस की कक्षाएं संचालित हो रही हैं। विश्वविद्यालय परिसर आयुर्वेद की उत्कृष्ट चिकित्सा का केंद्र बन रहा है। यहां के आयुर्वेद अस्पताल में उच्च स्तरीय इलाज की सुविधा है। आयुर्वेद अस्पताल के विश्व स्तरीय 11 कॉटेज वाले पंचकर्म केंद्र ने कम समय में ही विश्वसनीय उपचार की ख्याति अर्जित की है। यहां कई दुर्लभ बीमारियों का सफल इलाज हो चुका है। कुल मिलाकर योगी की मंशा आयुर्वेद के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश को बड़ा खिलाड़ी बनाने की है। यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वदेशी की धारणा के भी अनुरूप है। साथ ही इससे वोकल फॉर लोकल और लोकल फॉर ग्लोबल को भी बल मिलेगा। यही वजह है कि आयुष विश्वविद्यालय के अलावा इस क्षेत्र को मजबूत बनाने के लिए योगी सरकार ने और भी कई कदम उठाए हैं। कितनी बढ़ी है योग और आयुर्वेद की लोकप्रियता योग और आयुर्वेद एक दूसरे के पूरक हैं। इसलिए एक के साथ स्वाभाविक रूप से दूसरा भी बढ़ेगा। आंकड़े भी इसके प्रमाण हैं। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा के बाद से योग करने वालों की संख्या 35% बढ़ी है। करीब 25 करोड़ लोग योग की ट्रेनिंग ले रहे हैं। इसकी वजह से योग और आयुर्वेद से जुड़े उत्पादों का कारोबार बढ़ रहा है। भारत में आयुर्वेद से जुड़े उत्पादों का कारोबार 12 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इसी तरह योग से जुड़े उत्पादों का कारोबार 480 अरब रुपये तक पहुंच चुका है। शीघ्र ही इसके 875 अरब तक पहुंचने की उम्मीद है। योगी की मंशा-दोनों की बढ़ती लोकप्रियता का यूपी को अधिकतम लाभ दिलाना योगी आदित्यनाथ की मंशा है कि योग और आयुर्वेद की तेजी से बढ़ती वैश्विक लोकप्रियता का अधिकतम लाभ इनसे जुड़े यूपी के हर हितधारकों (स्टेक होल्डर) को मिले। पीठ की परंपरा के कारण इन दोनों विषयों में योगी की निजी रुचि है और इसी वजह से इन पर फोकस भी। ऐसे में उम्मीद की जाती है कि यूपी को इसका सर्वाधिक लाभ होगा और भविष्य में उत्तर प्रदेश योग और आयुष के सहारे हेल्थ टूरिज्म का हब बनेगा। इनकी संभावनाओं के मद्देनजर योगी सरकार ने इसकी तैयारियां पहले से शुरू कर दी थीं। इस क्रम में गोरखपुर में “महायोगी गुरु गोरखनाथ के नाम से प्रदेश का पहला आयुष विश्वविद्यालय (पिपरी भटहट) का संचालन शुरू हो चुका है। लोकार्पण के पहले ही इसमें नियमित कुलपति की नियुक्ति हो चुकी थी और ओपीडी भी चल रही थी। अयोध्या का आयुष और काशी का होम्योपैथिक कॉलेज भी शीघ्र होगा शुरू अयोध्या में राजकीय आयुर्वेदिक और वाराणसी में राजकीय होम्योपैथिक कॉलेज भी शीघ्र संचालित होने लगेंगे। फिलहाल प्रदेश में इस समय 2110 आयुर्वेदिक, 254 यूनानी,1585 होम्योपैथिक चिकित्सालय हैं। इसके साथ आठ आयुर्वेदिक कॉलेज एवं इनसे संबद्ध चिकित्सालय, दो यूनानी कॉलेज और इनसे संबद्ध चिकित्सालय और 9 होम्योपैथिक कॉलेज उनसे संबद्ध चिकित्सालय और वेलनेस सेंटर भी हैं। आयुष के बाबत मुख्यमंत्री की राय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई बार कह चुके हैं कि आयुष चिकित्सा पद्धति सिर्फ सम्पूर्ण आरोग्यता के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र में हेल्थ टूरिज्म से रोजगार की असीम संभावनाएं भी हैं। आयुष विश्वविद्यालय न केवल इस विधा के अन्य संस्थानों का नियंत्रण करेगा, बल्कि पाठ्यक्रमों में एकरूपता लाकर इसे और उपयोगी बनाएगा। इससे शिक्षा की गुणवत्ता तो सुधरेगी ही, संबंधित क्षेत्र में शोध और नवाचार को भी बढ़ावा मिलेगा। योगी सरकार इलाज की इस विधा के प्रोत्साहन के लिए पहले ही आयुष बोर्ड का गठन कर चुकी है। यूपी को हेल्थ टूरिज्म का हब बनाने की भी मंशा जता चुके हैं योगी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समय समय पर योग और आयुर्वेद से होने वाले लाभ और इनके जरिए उत्तर प्रदेश को हेल्थ टूरिज्म का हब बनाने की मंशा जताते रहे हैं। प्रयागराज महाकुंभ के आयोजन के बाद 23 फरवरी को एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, “धार्मिक पर्यटन के बाद उत्तर प्रदेश हेल्थ टूरिज्म में भी नंबर वन बनेगा। इसके लिए हमें अपने इलाज की प्राचीन विधाओं और दादी नानी के नुस्खों को संग्रहित करना होगा। क्योंकि निरोगी काया ही सबसे बड़ा सुख है।” आयुष क्षेत्र की संभावनाएं आयुष संभावनाओं का क्षेत्र है। बिना किसी दुष्प्रभाव के निरोग और रोग होने पर इलाज का यह परंपरागत एवं प्रभावी जरिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हर्बल उत्पादों को मान्यता देना भारत खासकर उत्तर प्रदेश के लिए सुअवसर हो सकता है। आयुर्वेद की ये लोकप्रियता और वैश्विक स्वीकार्यता भारत के स्वदेशी ज्ञान और विरासत की संपन्नता का भी प्रमाण है। यकीनन आने वाले वर्षों में भी आयुष की स्वीकार्यता और लोकप्रियता का ये सिलसिला जारी रहेगा, इसीलिए योगी सरकार का पूरा फोकस इलाज की इस विधा पर है। आयुष उत्पादों के वैश्विक बाजार में एक दशक में 15 गुने से अधिक की वृद्धि आयुष का बढ़ता बाजार भी इसकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता का प्रमाण है। आंकड़े इसके गवाह हैं। वर्ष 2014 में आयुष उत्पादों का वैश्विक बाजार 2.85 अरब अमेरिकी डॉलर का था, जो 2024 में बढ़कर 43.4 अरब डॉलर का हो गया। यह 10 साल में 15 गुना से अधिक की वृद्धि है। 100 से अधिक देशों में भारत के बने हर्बल उत्पाद निर्यात किए जाते हैं। वैश्विक महामारी कोविड 19 के बाद इसमें अभूतपूर्व विस्तार हुआ। माना जा रहा है कि शैक्षिक और आर्थिक स्तर के बढ़ने के साथ लोग सेहत के प्रति और जागरूक होंगे। इससे आयुष का क्रेज और कारोबार दोनों बढ़ेगा। आयुष के कारोबार में अभूतपूर्व वृद्धि और योग की वैश्विक लोकप्रियता इस बात का सबूत है कि आने वाला समय इलाज की इसी प्राचीन विधा है। आयुष संपन्न स्वदेशी ज्ञान और विरासत की संपन्नता का प्रमाण आयुष की यह लोकप्रियता और स्वीकार्यता हमारे स्वदेशी ज्ञान और विरासत की संपन्नता का भी प्रमाण है। यही क्रम जारी रहा तो परंपरा और विज्ञान के इस संगम के जरिये आयुष पूरी दुनिया को आरोग्यता की राह दिखा सकता है। भविष्य की इन्हीं व्यापक संभावनाओं के मद्देनजर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश को आयुष के लिहाज से देश में अग्रणी श्रेणी में लाना चाहते हैं। ऐसा होने पर उत्तर प्रदेश धार्मिक टूरिज्म के बाद हेल्थ और वेलनेस टूरिज्म का भी बड़ा बड़ा केंद्र बन जाएगा। किसानों की खुशहाली व युवाओं के लिए रोजगार के खुलेंगे द्वार आयुष के बढ़ते क्रेज और कारोबार से स्थानीय स्तर पर औषधीय खेती को प्रोत्साहन मिलेगा। इनके प्रसंस्करण के लिए स्थानीय स्तर पर कुटीर उद्योग लगेंगे। इनमें ग्रेडिंग, प्रसंस्करण, पैकेजिंग, लोडिंग, अनलोडिंग और मार्केटिंग के लिए रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे। लोग आसपास उगने वाली जड़ी-बूटियों का संग्रह कर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकेंगे। इसका सर्वाधिक लाभ स्थानीय किसानों, छोटे उद्यमियों और इससे जुड़े अन्य हितधारकों को होगा।
Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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