अहमदाबाद पुलिस इंस्पेक्टर की डेढ़ दिन में रेबीज से मौत:फॉर्म हाउस में स्ट्रीट डॉग पाल रखे थे, नहीं पता चला कि कैसे नाखून में लग गई थी चोट
अहमदाबाद सिटी पुलिस में ड्यूटी पर तैनात पुलिस इंस्पेक्टर की रेबीज से सोमवार की शाम मौत हो गई। तबियत बिगड़ने पर उन्हें रविवार की रात केडी हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया था। जांच में पता चला था कि रेबीज का इंफेक्शन उनके पूरे शरीर में फैल गया है। 50 वर्षीय इंस्पेक्टर वनराजसिंह मंजारिया 25 वर्षों से पुलिस बल में कार्यरत थे। उनके रिश्तेदारों ने बताया कि उन्हें डॉग्स पालने का बहुत शौक था। उनके फॉर्म हाउस में डॉग्स थे। कुछ दिन पहले ही वे एक स्ट्रीट डॉग लाए थे। इसी डॉग के काटने से उनके पैर के नाखून में चोट लगी थी। हालांकि, मंजारिया को इसका पता नहीं चला या फिर उन्होंने इसे सीरियसली नहीं लिया। पंजारिया के एक वरिष्ठ सहयोगी ने बताया- शुक्रवार दोपहर उन्हें अचानक तेज बुखार आया। इसके बाद उन्हें हाइड्रोफोबिया और एयरोफोबिया हुआ और हालत तेजी से बिगड़ती गई। उन्हें पहले एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। हालात बिगड़ने पर केडी हॉस्पिलट रेफर किया गया। इलाज के बावजूद, उनकी हालत बिगड़ती गई और कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। उनके एक अन्य सहयोगी ने बताया- सोमवार को उन्हें हार्ट अटैक आया और जांच के बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इंस्पेक्टर पीटी चौधरी ने कहा- पंजारिया सर के पास दो-तीन पालतू कुत्ते थे। वे उनकी बहुत अच्छे से देखभाल करते थे। परिवार में पत्नी, एक बेटी जो चार्टर्ड अकाउंटेंसी के फाइनल ईयर और एक बेटा ग्रेजुएशन के फर्स्ट ईयर में है। वायरस कैसे प्रभावित करता है?
रेबीज का वायरस संक्रमित जानवर की लार में रहता है। जब कोई जानवर किसी को काटता है, तो यह वायरस घाव के जरिए शरीर में प्रवेश करता है। यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर हमला करता है। फिर उसके जरिए मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी तक पहुंचता है। इस दौरान 3 से 12 हफ्ते तक का समय लगता है। 25 साल बाद भी वायरस वापस आ सकता है।
रेबीज़ इतना घातक है कि अगर इसका तुरंत इलाज न किया जाए, तो भी यह अपना असर दिखाता है। जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है, उनमें रेबीज़ का असर तुरंत नहीं दिखता, लेकिन 25 साल बाद, जैसे ही रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती है, वायरस वापस आकर आपकी मौत का कारण बन सकता है। पहले 14 इंजेक्शन का कोर्स था, जो अब 5 हो गया है
कुछ साल पहले तक रेबीज से बचाव के लिए वैक्सीन की 14 से 16 खुराकें दी जाती थीं। इतने इंजेक्शन लेना मरीजों के लिए काफी तकलीफदेह होता था। बाद में विकसित वैक्सीन न सिर्फ ज्यादा सुरक्षित है, बल्कि इसमें खुराकों की संख्या भी अब सिर्फ 5 है, हालांकि कई लोग कोर्स पूरा नहीं करते और सिर्फ 3 खुराक ही लेते हैं। यह लापरवाही भी भारी पड़ती है। वही, कई लोग कुत्ते का काटने पर घरेलू नुस्खे अपनाकर ही खुद को सुरक्षित मान लेते हैं। रेबीज मौतों का 36% हिस्सा अकेले भारत से
WHO के अनुसार, रेबीज एक टीके से रोकी जा सकने वाली वायरल बीमारी है, जो दुनिया के 150 से अधिक देशों और क्षेत्रों में पाई जाती है। भारत रेबीज से प्रभावित देशों में शामिल है। विश्व भर में होने वाली रेबीज मौतों का लगभग 36 प्रतिशत हिस्सा अकेले भारत से सामने आता है। भारत में रेबीज का वास्तविक बोझ पूरी तरह ज्ञात नहीं है, लेकिन उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार हर साल लगभग 18,000 से 20,000 मौतें इस बीमारी के कारण होती हैं। रिपोर्टेड मामलों और मौतों में से 30 से 60% पीड़ित बच्चे (15 वर्ष से कम आयु) होते हैं। अक्सर बच्चों को काटे जाने की घटनाएं नजरअंदाज या रिपोर्ट नहीं की जातीं, जिससे स्थिति और गंभीर हो जाती है। 3 माह तक वायरस रह सकता है निष्क्रिय
रेबीज किसी व्यक्ति के शरीर में 1 से 3 महीने तक निष्क्रिय रह सकता है। इसका सबसे पहला संकेत है बुखार का आना है। फिर घबराहट होना, पानी निगलने में दिक्कत होना, लिक्विड के सेवन से डर लगना, तेज सिरदर्द, घबराहट होना, बुरे सपने और अत्यधिक लार आना शामिल हैं। —————————- ये खबर भी पढ़ें… क्या टीका लगाने पर भी होता रेबीज:कुत्ते-बिल्ली का काटना क्यों है खतरनाक, डॉक्टर से जानें हर सवाल का जवाब रेबीज एक वायरल इन्फेक्शन है, जो आमतौर पर कुत्ते, बिल्ली और बंदर के काटने से होता है। यह संक्रमित जानवर के काटने, खरोंचने या उसकी लार के किसी खुले जख्म के संपर्क में आने से इंसानों में फैल सकता है। रेबीज वायरस इंसान के ब्रेन और नर्वस सिस्टम पर हमला करता है। पूरी खबर पढ़ें…
Source: देश | दैनिक भास्कर
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