अलोप शंकरी मंदिर में नवरात्रि का विशेष महत्व:मां सती की हथेली गिरने वाले स्थान पर पालने की होती है पूजा, 52 शक्तिपीठों में एक

संगम नगरी प्रयागराज के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व की चर्चा हमेशा विशेष रहती है। यहां स्थित अलोप शंकरी देवी मंदिर अपनी अनोखी परंपरा और आस्था के कारण देशभर में प्रसिद्ध है। नवरात्रि के पावन अवसर पर यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र बन जाता है। भारत के 52 शक्तिपीठों में अलोप शंकरी मंदिर को विशेष स्थान प्राप्त है। इसकी खासियत यह है कि यहां न तो देवी मां की कोई प्रतिमा है और न ही किसी अंग की प्रतीकात्मक मूर्ति। यहां श्रद्धालु एक लाल चुनरी से ढके पालने की पूजा करते हैं। यही पालना मां सती का प्रतीक माना जाता है। भक्त मानते हैं कि इस अद्भुत स्वरूप की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। चबूतरे की परिक्रमा कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं मंदिर परिसर में एक पवित्र कुंड भी है, जहां से भक्त जल लेकर पालने पर चढ़ाते हैं और चबूतरे की परिक्रमा कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यहां की परंपरा के अनुसार मां को केवल नारियल और पुष्प ही अर्पित किए जाते हैं। नवरात्र के दिनों में मंदिर में विशेष उत्सव का माहौल रहता है। दूर-दराज से हजारों श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचकर इस अनोखी पूजा का हिस्सा बनते हैं। भक्त की मन्नत पूरी होती है, तो वे मंदिर में कड़ाही चढ़ाते हैं अलोप शंकरी मंदिर में एक और परंपरा काफी लोकप्रिय है। जब किसी भक्त की मन्नत पूरी होती है, तो वे मंदिर में कड़ाही चढ़ाते हैं और हलवा-पूड़ी का भोग लगाकर प्रसाद रूप में परिवार व अन्य भक्तों संग ग्रहण करते हैं। इस परंपरा के चलते नवरात्र में यहां मेला सा माहौल रहता है। नवरात्रि के अवसर पर मंदिर की भव्य सजावट और विशेष पूजा-अर्चना भक्तों को आकर्षित करती है। सुबह-शाम की आरती में शामिल होने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रशासन ने मंदिर परिसर और आसपास सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। पूरे देश में आस्था और विश्वास का प्रतीक अलोप शंकरी मंदिर की यह अनूठी परंपरा न केवल प्रयागराज नहीं, बल्कि पूरे देश में आस्था और विश्वास का प्रतीक है। नवरात्र के दिनों में यहां की छटा देखते ही बनती है, जब हर ओर भक्ति, उल्लास और देवी मां के जयकारे गूंजते हैं।

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Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर