‘तुम परेशान हो, तुम्हे कुछ नहीं होगा। भइया सब कुछ मैनेज कर लेंगे, भैया संभाल लेंगे। किसी को कुछ नहीं होगा। बस थोड़े दिन काम रोक दो। बात चल रही है हमारी और प्रतीक की जल्द ही सब ठीक हो जाएगा। किसी को कुछ नहीं होगा। बस कुछ दिन शांत रहना होगा।’ ये चैट है वाराणसी की सारनाथ पुलिस के गिरफ्त में कोडीन कफ सिरप के मास्टरमाइंड के खास लोकेश अग्रवाल के वॉट्सऐप की। जिसे पुलिस ने उसके करीबी विष्णु पांडेय की निशानदेही पर गिरफ्तार किया है। शुभम के कोडीन कफ सिरप सिंडिकेट में हवाला का पैसा इधर से उधर करने वाले प्रतीक गुजराती का भी लोकेश अग्रवाल खास है। उसकी भी कई चैट पुलिस को मिली है। फिलहाल पुलिस ने ड्रग इंस्पेक्टर की ओर से दर्ज मुकदमे में लोकेश और विष्णु को जेल भेज दिया है। जेल जाने के पहले दोनों पुलिस को अहम सुराग दिए हैं। जिसमें वॉट्सऐप चैट और हवाला के कारोबार का काला-चिटठा बाहर आ गया है। ऐसे में दैनिक भास्कर ने एसीपी सारनाथ विदुष सक्सेना से बातचीत कर इस पूरे मामले में लोकेश की मौजूदगी को समझा साथ ही इस पूरे क्राइम की Modus Operandi को समझा। पढ़िए रिपोर्ट… सबसे पहले जानिए लोकेश को कैसे पुलिस ने किया गिरफ्तार और शुभम से क्या थे उसके संबंध… ड्रग इंस्पेक्टर ने दर्ज कराया था मुकदमा एसीपी सारनाथ विदुष सक्सेना ने बताया – 18 दिसंबर 2025 को ड्रग इंस्पेक्टर जुनाब अली ने सारनाथ थाने पर मुकदमा दर्ज कराया था। यह मुकदमा पीडी फार्मा के खिलाफ था आरोप बिना किसी पेपर वर्क के लाखों के कोडीन कफ सिरप की सप्लाई का था। विष्णु की इस फर्म ने कोडीन सिरप की फर्जी बिलिंग की है। जिसमें 25 हजार फेंसिड्रिल की और एस कफ की 89 हजार शीशियां हैं। जिसकी बिलिंग हुई है। लेकिन इस सिरप का कहीं भी मूवमेंट नहीं हुआ है। सिर्फ बिलिंग की गई है। पुलिस ने मुकदमा दर्ज जांच शुरू की और 27 दिसंबर को विष्णु पांडेय ऑनर पीडी फार्मा को सारनाथ स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया। शुभम और लोकेश ने खुलवाई थाई फर्जी फार्मा एजेंसी एसीपी ने बताया – विष्णु ने पूछताछ में बताया – मेरी पीडी फार्मा फर्म बोगस थी। उसे बनवाने में मेरी शुभम जायसवाल और लोकेश अग्रवाल ने कागजात से मदद की थी। सारे डाक्यूमेंट इस फार्मा को खोलने में जो लगे थे सभी कूटरचित दस्तावेज हैं। इस दौरान विष्णु ने लोकेश अग्रवाल का भी नाम लिया था। जिसे पुलिस ने ढूंढना शुरू कर दिया था। उसी दिन लोकेश को भी उसके घर मोहनीगंज, महमूरगंज थाना सिगरा वाराणसी को पूछताछ के लिए थाने बुलाया गया। पूछताछ के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया है। शुभम के खास आदमियों में से एक पुलिस की मानें तो लोकेश अग्रवाल शुभम का सबसे खास आदमी है। यह शुभम के सभी काले धन को वाइट करने में उसकी मदद करता था और सप्तसागर मंडी में दवा की दुकान चलाने वाले प्रतीक गुजराती के साथ मिलकर शुभम को लाभ पहुंचा रहा था। अब जानिए लोकेश ने पूछताछ में क्या-क्या कुबूला है और कैसे होता था हवाला का काम… पीडी फार्मा का फाइनेंशिल ट्रांसफर करता था मैनेज एसीपी सारनाथ ने बताया – लोकेश को गिरफ्तार करने के बाद हमने उससे कड़ाई से पूछताछ की तो कई तथ्य सामने आये हैं। लोकेश ने बताया -विष्णु पांडेय की पीडी फार्मा से जितना भी ट्रांजेक्शन होता था। इन सब की जिम्मेदारी मेरी हुआ करती थी। बिलिंग के जरिए जो भी तस्करी बांग्लादेश तक होती थी। उसे एडजस्ट किया जाता था। जो भी पैसा बिहार या बिहार बार्डर से यूपी में आता था। नीला और पीला यानी पैसा और गोल्ड के रूप में आता था। उसे बदलकर बार्डर से लोकेश और शुभम का दोस्त प्रतीक गुजराती के जरिए दोबारा कैश करवाकर शुभम के शैली ट्रेडर्स में वापस चला जाता था। भैया सब संभाल लेंगे लोकेश और विष्णु की पुलिस को चैट और वाइस रिकार्डिंग भी मिली है। एसीपी ने बताया – लोकेश हाल ही में हो रही गिरफ्तारियों के बाद डरे हुए विष्णु को समझा रहा था। जिसमें वो कह रहा था – ‘तुम परेशान हो, तुम्हे कुछ नहीं होगा। भइया सब कुछ मैनेज कर लेंगे, भैया संभाल लेंगे। किसी को कुछ नहीं होगा। बस थोड़े दिन काम रोक दो। बात चल रही है हमारी और प्रतीक की जल्द ही सब ठीक हो जाएगा। किसी को कुछ नहीं होगा। बस कुछ दिन शांत रहना होगा।’ इसके अलावा उसकी और विष्णु की कई सारी चैट मिली है। जिसमें हापुड़ में हुए मामले में भी ये दोनों समझौता करवाने की बात कर रहे थे। यह गणेशु फार्मा हापुड़ से जुड़ा मामला था। 10 की नोट से हो रह था हवाला का कारोबार एसीपी ने बताया – हमने जब लोकेश के फोन को खंगाला तो हमें प्रतीक गुजरती की चैट पर हर दस दिन बाद एक दस की नॉट की फोटो और कुछ कोडिंग मिली है। इसपर लोकेश ने बताया कि यह प्रतीक गुजरती की कोडिंग है। जिसके जरिए हमें हवाला का भुगतान बॉर्डर पर होता था। नोट के सीरियल नंबर से देने का पता, समय और दिन तय होता था। फिलहाल दोनों को जेल भेजा जा रहा है। अब जानिए इनका अपराध करने का तरीका (Modus Operandi) क्या था ?… फर्जी फर्मों का गठन (Creation of Shell Firms) एसीपी ने बताया – आरोपियों ने ‘पीडी फार्मा’ और ‘गनेशू फर्म’ जैसी कई कंपनियां खोलीं और डमी संचालक विष्णु कुमार पाण्डेय जैसे लोगों को केवल दस्तावेजों (आधार, पैन, बैंक खातों, फर्जी दस्तावेज आदि) का उपयोग कर मालिक बनाया गया परन्तु असली मालिक लोकेश अग्रवाल व शुभम जायसवाल थे और चेकबुक, एटीएम, लॉगिन आईडी और डिजिटल हस्ताक्षर अपने पास रखते थे। डमी संचालक को इन सब का लाभांस ₹2 लाख वर्ष मिलता था । Abbott कंपनी का सुपर स्टाकिस्ट है शुभम कोडीन युक्त कफ सिरप शुरुआत में स्थानीय स्टॉकिस्टों व अपनी फर्जी फर्मों से क्रय किया बाद में शुभम जायसवाल ने रांची में ‘शैली ट्रेडर्स’ नाम से फर्म खोलकर कंपनी (Abbott) से ‘सुपर स्टॉकिस्ट’ बनकर सीधा माल उठाना शुरू कर दिया तथा माल की बिलिंग जानबूझकर ₹50,000 से कम की जाती थी ताकि ई-वे बिल जनरेट न करना पड़े। इससे माल के परिवहन का कोई सरकारी डिजिटल रिकॉर्ड नहीं बनता था। हवाला और गोल्ड नेटवर्क का हो रहा था उपयोग यह सिंडिकेट न केवल दवाओं की तस्करी कर रहा था, बल्कि मुनाफे को वापस लाने के लिए एक जटिल ‘हवाला’ और ‘गोल्ड’ नेटवर्क का उपयोग कर रहा था। जिसमें नशीली दवा को नीला और सोने को पीला सांकेतिक करते हुए “नीले से पीला” कोड वर्ड इजाद किया गया। कफ सीरप को होलसेल रेट 100/- रुपए प्रति शीशी में खरीद कर, बांग्लादेश व अन्य राज्यों में शीशियों की तस्करी करते हुए 700/- रुपए प्रति शीशी पर बेची जाती थी और मुनाफा सोने की के रूप में तस्करी कर पश्चिम बंगाल आता था और सोने को पैसे/करेन्सी में कन्वर्ट कर हवाला ऑपरेटर प्रतीक गुजराती के माध्यम से कोड 10 रुपए या 100 रुपए ,500 रुपए की गड्डी मे 100 की नोट के कोड नम्बर से मैच करवा कर पैसों को एडजस्ट किया जाता था। जांच के क्रम में पाया गया कि पीडी फार्मा में लोकेश द्वारा प्रतीक के माध्यम से करीब 6 करोड़ से ज्यादा का कैश डिपाजिट कर काले धन को अन्य फर्जी फर्मों के माध्यम से मनी लान्ड्रिंग की गयी। बांग्लादेश व अन्तरराज्यीय जनपदों में शराब के विकल्प के रूप में कोडीन युक्त सीरप की तस्करी कर 10 गुना मुनाफा कमाना । इस अपराध को अंजाम देने के लिए एक सुव्यवस्थित नेटवर्क का उपयोग किया गया, जिसे नीचे दिए गए इंफोग्राफिक फ्लो-चार्ट के माध्यम से समझा जा सकता है –
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