‘ये तो गिरना ही था। पिलर 2 फीट के फाउंडेशन पर खड़ा था। ट्रायल के दौरान जैसे ही लोड बढ़ा और झटका लगा, मंदिर के नजदीक वाले पिलर के साथ ग्राउंड का पिलर भी जड़ से उखड़ गया। शुक्र है कि ट्रॉली में कोई नहीं बैठा था। हादसे के समय कोई नजदीक नहीं था।’ यह कहना है हादसा होते अपनी आंखों से देखने वाले मुकेश सिंह का। वह रोहतास के चौरासन मंदिर समिति के सदस्य हैं। चौरासन मंदिर के पास रोपवे निर्माण को लेकर स्थानीय लोगों में उत्साह था। उन्हें उम्मीद थी कि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। लोग दूर-दूर से आएंगे। रोपवे परियोजना का आखिरी ट्रायल चल रहा था। नए साल के मौके पर 1 जनवरी से इसकी शुरुआत होनी थी। हादसे से स्थानीय लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। रोपवे कैसे टूटा? निर्माण में क्या अनियमितता बरती गई है? स्थानीय लोग क्यों गुस्से में हैं? यह जानने के लिए भास्कर रिपोर्टर रोहतास के चौरासन मंदिर पहुंचे। पढ़िए रिपोर्ट… पहले समझिए कैसे हुआ हादसा? पहाड़ की चोटी पर भगवान शिव का चौरासन मंदिर है। 84 सीढ़ी चढ़कर भक्त मंदिर पहुंचते हैं। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। सावन माह में रोज हजारों लोग इस मंदिर में पूजा करते हैं। दक्षिण भारत से भी श्रद्धालु आते हैं। हादसे को समझने के लिए हम मंदिर पहुंचे। वहां सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे। सभी सीढ़ी से चढ़कर मंदिर जा रहे थे। हमने स्थानीय लोगों से बात की। स्थानीय संतोष कुमार ने कहा, ‘रोपवे 5 पिलर पर टिका था। शुक्रवार को ट्रायल के दौरान रोपवे के तार आपस में फंस गए। इस वजह से दो पिलरों को जोरदार झटका लगा। पिलर पर मशीन का प्रेशर बढ़ता जा रहा था, जिसके चलते दोनों पिलर जड़ से उखड़ गए। रोपवे टूटने से स्थानीय लोग काफी गुस्से में हैं। लोगों को उम्मीद थी कि रोपवे बन जाने से बाहर से पर्यटक आएंगे। टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा, लेकिन हादसे के बाद स्थानीय लोगों में निराशा है।’ अब जानें यह योजना क्या थी और इसके क्या फायदे थे? रोहतास में टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए चौरासन मंदिर के पास 5 पिलर का रोपवे बनाया जा रहा था। इसका निर्माण BSBCCL (बिहार स्टेट ब्रिज कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन लिमिटेड) के तहत कराया जा रहा था। रोपवे बनाने का ठेका RRPL (रोपवे एंड रिसोर्स प्राइवेट लिमिटेड) कंपनी को मिला था। DPR बनने के बाद फरवरी 2020 में निर्माण शुरू हुआ। इसे 14 महीने में तैयार करने का लक्ष्य था, लेकिन समय पर काम पूरा नहीं हो सका। रोपवे बनाने में 6 साल लग गए। रोपवे बनाने की लागत 13.65 करोड़ है। इसकी लंबाई 1324 मीटर है। इसमें 5 पिलर और 12 ट्रॉली केबिन हैं। हर केबिन में 4 लोग बैठ सकते हैं। इसे 1 जनवरी 2026 को शुरू करने का लक्ष्य था। निर्माण कंपनी के ऑफिस में लगा ताला, अधिकारी गायब चौरासन मंदिर में हर रोज करीब 10 हजार से अधिक श्रद्धालु आते हैं। रोहतासगढ़ किला जाने का रास्ता मंदिर से जुड़ा है। किले पर घूमने वाले लोग मंदिर होते हुए जाते हैं। हमने निर्माण कंपनी के कर्मचारियों और अधिकारियों को ढूंढने की कोशिश की, लेकिन निर्माण कंपनी के ऑफिस में ताला लगा था। उसके अधिकारी गायब थे। वहां न कोई कर्मचारी था और न मजदूर। हमने उनके अधिकारियों से फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन किसी से बात नहीं हुई। जमीन के नीचे 2 फीट गहराई तक था पिलर का बेस इसके बाद हम वहां पहुंचे, जहां से पूरा रोपवे ऑपरेट होने वाला था। वहां इलेक्ट्रिक मोटर लगे थे, जिससे रोपवे चलाया जाना था। वहीं, पास में लैंडिंग पिलर (ग्राउंड का पहला पिलर) गिरा पड़ा था। हम जब पिलर के पास पहुंचे तो देखा कि पिलर के फाउंडेशन का हिस्सा (जो जमीन में था) पूरी तरह उखड़ गया था। साफ-साफ दिख रहा था कि पिलर का बेस लगभग 2 फीट ही जमीन में गाड़ा गया था। उसे सीमेंट-बालू से जाम कर दिया गया था। जब हम सबसे ऊपर मंदिर के पास पहुंचे तो वहां भी पिलर की वही हालत थी। स्थानीय बोले- इसे तो गिरना ही था हमने हादसे के वक्त मौके पर मौजूद स्थानीय लोगों से बात की। एक ने बताया, ‘रोपवे के ट्रायल के दौरान वायर फंस गया था। सिर्फ 4 खाली केबिन के साथ ही ट्रायल हो रहा था। उसे ग्राउंड से ऊपर मंदिर के तरफ भेजा जा रहा था। जैसे ही मशीन से लोड बढ़ा पहले ग्राउंड का पिलर नंबर 5 फिर मंदिर के पास का पिलर उखड़ गया। मंदिर में हमारी मुलाकात चौरासन मंदिर समिति के सदस्य मुकेश सिंह से हुई। मुकेश ने बताया, ‘हमारी मांग के बाद यहां रोपवे निर्माण शुरू हुआ, लेकिन काफी खराब क्वालिटी का मटेरियल यूज किया गया था।’ उन्होंने कहा, ‘हमने उसी समय इसका विरोध किया। इसको लेकर पर्यटन विभाग से शिकायत की थी। इसके बाद यहां पर्यटन विभाग के सचिव पहुंचे थे। उन्हें खराब क्वालिटी के मटेरियल के प्रूफ भी दिए। इसके बाद भी मनमाने तरीके से इसका निर्माण होता रहा। हमने स्थानीय लोगों के सहयोग और चंदे से मंदिर में पानी की व्यवस्था, नहाने और कपड़े बदलने की व्यवस्था की है। शौचालय का भी निर्माण करवा रहे हैं।’ मुकेश सिंह ने कहा, ‘अभी तक सरकार की तरफ से कोई सहयोग नहीं मिला है। जब रोपवे का निर्माण हो रहा था तो हमने उनके लिए अपनी तरफ से पानी और जनरेटर की व्यवस्था की। इसके बाद भी निर्माण कंपनी ने सही तरीके से इसका काम नहीं किया।’ उन्होंने बताया, ‘यहां सिर्फ पत्थर है। उसी पत्थर में ड्रिल करके पिलर डालनी थी, लेकिन मात्र 2 फीट फॉउंडेशन पर ही पूरा पिलर खड़ा कर दिया गया था।’ इस रोपवे को लेकर हमने स्थानीय लोगों से भी बात की। उनका मानना था कि इस रोपवे के निर्माण से इलाके में पर्यटन को बढ़ावा मिलता। यहां बाहर से लोग घूमने आते तो लोकल लोगों को रोजगार मिलता। अब रोपवे टूटने पर वे क्या कहते हैं, जाने…. स्थानीय निवासी तोहराब नियाजी ने कहा, ‘यह मंदिर हिंदू-मुस्लिम सभी के लिए रोजी-रोटी का एक साधन था, लेकिन भ्रष्टाचारियों की वजह से यहां के स्थानीय लोगों के उम्मीद पर पानी फिर गया।’ उन्होंने कहा, ‘यह इलाका कभी नक्सल प्रभावित रहा, लेकिन अब पूरी तरह नक्सल मुक्त है। हमें उम्मीद थी कि पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा तो स्थानीय लोगों का विकास होगा। यहां रोजगार बढ़ेगा। बाहर से ज्यादा श्रद्धालु और पर्यटक आते।’ तोहराब नियाजी आगे बताते हैं, ‘एक समय भारत के राजनीति का केंद्र रोहतास रहा है। यहां शेरशाह सूरी का मकबरा है। राजा हरिश्चंद्र के बेटे रोहितेश्वर के नाम से इस जिले को जाना जाता है। लाखों हिंदुओं के आस्था का केंद्र चौरासन मंदिर है। इसके अलावा आसपास तुजला भवानी, दशशिशा नाथ महादेव मंदिर सहित कई मंदिर हैं।’ रोपवे इतना कमजोर बना कि फाउंडेशन ही उखड़ गया: संतोष कुमार स्थानीय व्यक्ति संतोष कुमार कहते हैं, ‘हम सभी को इस रोपवे से बड़ी उम्मीद थी। जबसे हमने जन्म लिया है तब से देखते हैं कि यह इलाका टूरिज्म के तौर पर बढ़िया रहा है। यहां प्राकृतिक सुंदरता है। कई झरने हैं, रोहतासगढ़ किला है। सभी चीजों में सम्पन्न रहा है। यह इलाका विकास में बहुत पिछड़ा रहा है। जब सरकार ने ध्यान दिया और कुछ विकास योजनाएं शुरू हुई तो ये भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।’ संतोष आगे कहते हैं, ‘कई साल बाद यहां एक उम्मीद जगी थी कि इलाके में पर्यटन में बढ़ावा होगा तो हमारा भी विकास होगा, लेकिन बार-बार हमारी उम्मीद पर पानी फिर जाता है। एक तो समय सीमा से 5 साल देरी से काम पूरा हुआ था। अब इस रोपवे को फिर से बनाने में पता नहीं कितने साल लगेंगे। योजनाओं के नाम पर हमें सिर्फ मूर्ख बनाया जा रहा है।’ वहीं, मनीष कुमार बताते हैं, ‘हम बहुत एक्साइटेड थे कि नए साल पर इसका उद्घाटन होगा तो यहां पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। लेकिन सब पर पानी फिर गया। इसके टूटने से यह साफ हो गया कि बिहार में काफी करप्शन है।’ चौरासन मंदिर में 84 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचते हैं भक्त चौरासन मंदिर, रोहतास जिले का प्राचीन शिव मंदिर है। जहां 84 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचा जाता है। यह स्थल धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सुंदरता का संगम है। चौरासन मंदिर को रोहितेश्वर महादेव मंदिर भी कहा जाता है। इसका नाम “चौरासन” (84) उन 84 सीढ़ियों के कारण पड़ा, जिन्हें चढ़कर मंदिर तक पहुंचा जाता है। स्थानीय भाषा में इसे “चौरासना सिद्धि” भी कहा जाता है। ये सीढ़ियां जैसे-जैसे चढ़ते हैं, श्रद्धालुओं को आत्मिक ऊंचाई का अनुभव होने लगता है। माना जाता है कि यह मंदिर 7वीं सदी ईस्वी में राजा हरिश्चंद्र द्वारा बनवाया गया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार, उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए यहां 84 बार यज्ञ किया था। आखिर में उन्हें पुत्र रोहिताश्व की प्राप्ति हुई। उन्होंने यज्ञ की राख पर यह मंदिर बनवाया। यही कहानी इस स्थान की अलौकिकता को दर्शाती है। जब यह मंदिर बादलों की चादर में लिपटा होता है, तो दृश्य इतना मनोरम होता है कि मानो प्रकृति स्वयं इसका श्रृंगार कर रही हो। श्रद्धालु कहते हैं कि यह स्थान ऐसा प्रतीत होता है, जैसे धरती पर स्वर्ग उतर आया हो। यह दृश्य न सिर्फ श्रद्धालुओं, बल्कि प्रकृति प्रेमियों को भी सम्मोहित कर देता है। सासाराम से करीब 55km दूर है रोहतासगढ़ किला रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है। किले का घेराव 28 मील तक फैला हुआ है। इसमें कुल 83 दरवाजे हैं। जिनमें मुख्य घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट और मेढ़ा घाट है। ये किला रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि सोन नदी के बहाव वाली दिशा में पहाड़ी पर स्थित इस प्राचीन और मजबूत किले का निर्माण त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा त्रिशंकु के पौत्र और राजा सत्य हरिश्चंद्र के बेटे रोहिताश्व ने कराया था। इतिहासकारों की मानें तो किले की चारदीवारी का निर्माण शेरशाह से सुरक्षा को देखते हुए कराया था, ताकि किले पर कोई भी हमला न कर सके। बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई (1857) के समय अमर सिंह ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का संचालन किया था।
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