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यूपी में पुलिस अफसरों ने सीएम योगी को साधा:पुलिस वीक की जगह पुलिस मंथन किया; भाजपा सरकार आने के बाद से पहला सम्मेलन

8 साल के बाद दिसंबर महीने में पुलिस अफसरों का बड़ा सम्मेलन हुआ। प्रदेश में भाजपा सरकार आने के बाद केवल एक बार पुलिस वीक मनाया गया। अब सीएम योगी ने कहा है कि पुलिस मंथन का कार्यक्रम हर साल दिसंबर के आखिरी शनिवार और रविवार को किया जाए। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि पुलिस मंथन और पुलिस वीक में क्या फर्क है? पुलिस वीक को आखिर बंद क्यों किया गया था? पुलिस वीक में अधिकारियों के सम्मेलन के अलावा क्या-क्या कार्यक्रम होते थे? क्या-क्या कार्यक्रम हुए? इसका उद्देश्य क्या था? इस तरह के आयोजन का क्या जमीन पर भी कोई प्रभाव पड़ता है? आखिर आईपीएस एसोसिएशन अस्तित्व में है भी या नहीं? है तो इसका अध्यक्ष कौन है, सचिव कौन है, बाकी पदाधिकारी कौन हैं? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… पुलिस वीक और पुलिस मंथन में क्या फर्क?
पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह कहते हैं- ये कोई नया कार्यक्रम नहीं है। पुलिस मंथन पुलिस वीक का एक पार्ट मात्र है, जो हर साल दिसंबर के अंतिम सप्ताह में होता रहा है। मौजूदा दौर के अफसरों में इतना साहस नहीं कि वो मुख्यमंत्री के सामने ये कह सकें कि अपना एक कार्यक्रम करना चाहते हैं। सुलखान सिंह कहते हैं- पुलिस वीक का कार्यक्रम ब्यूरोक्रेसी के गले भी नहीं उतरता था। शायद यही वजह रही है कि लंबे अरसे तक यूपी में पुलिस वीक नहीं हुआ। हालांकि, मायावती के दौर में भी इस तरह के आयोजन पर रोक लगा दी गई थी। दरअसल, पुलिस वीक पुलिस महकमे की एक पुरानी परंपरा रही है। इसके तहत अफसर एक जगह एकजुट होते हैं। उनके परिवारवाले भी शामिल होते हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। खेल प्रतियोगिता भी होती रही है। जिसमें पुलिसिंग की समीक्षा, चुनौतियों पर चर्चा और भविष्य की योजनाएं बनाई जाती थीं। सिर्फ पुलिस ही नहीं, आईएएस वीक भी मनाया जाता है। इस दौरान आईपीएस और आईएएस अफसरों के बीच क्रिकेट मैच के भी आयोजन होते रहे। सम्मेलन में बड़े-बड़े अफसरों का नामकरण किया जाता था। इसमें किसी को भी नहीं छोड़ा जाता था, चाहे वह पावरफुल हो, डीजीपी हो या एडीजी कानून व्यवस्था हो, सबकी खिंचाई होती थी। सिपाही से लेकर डीजीपी तक एक साथ बैठकर खाना खाते थे। जिसे पुलिसिया भाषा में बड़ा खाना कहा जाता है। लेकिन, 2017 में यूपी में आखिरी बार पुलिस वीक आयोजित किया गया था। लेकिन, भाजपा सरकार आने के बाद इस तरह के आयोजन खत्म कर दिए गए। अब उसके स्थान पर पुलिस मंथन कार्यक्रम शुरू किया गया है। ये आयोजन पहली बार किया गया। इसमें केवल पुलिस अधिकारियों का सम्मेलन किया गया। इसमें 11 सत्र आयोजित किए गए। पहले दिन डीजीपी की ओर से उनके घर पर डिनर आयोजित किया गया, जिसमें मुख्यमंत्री शामिल हुए। दूसरे दिन मुख्यमंत्री की ओर से पुलिस अफसरों को लंच पर बुलाया गया। क्यों बंद किया गया था पुलिस वीक?
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं- भाजपा की सरकारों में इस तरह का चलन नहीं रहा है। यूपी में भी पहले साल तो अफसरों ने मुख्यमंत्री को इसके लिए मना लिया, लेकिन इसके बाद से दोबारा पुलिस वीक नहीं मनाया गया। ऐसा नहीं है कि अफसरों ने इसकी कोशिश नहीं की। लेकिन जब भी मुख्यमंत्री के सामने पुलिस वीक का नाम लिया जाता, वह मना कर देते। इस बार इसे राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले आईजी सम्मेलन से जोड़कर केवल अफसरों के सम्मेलन और उसमें नवाचार, एआई का उपयोग, बीट पुलिसिंग, मिशन शक्ति जैसे विषय पर सत्र के आयोजन की बात कही गई। जिससे मुख्यमंत्री सहमत हो गए। मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में पूरा समय दिया। पुलिस के प्रयास को सराहा भी और इस तरह के आयोजन हर साल करने की बात कही। क्या था इसका उद्देश्य
यूपी पुलिस देश की सबसे बड़ी फोर्स है। पहले पुलिस वीक और आईएएस वीक के बहाने सभी अफसर इकट्‌ठा होते थे। इसके अलावा भी साल में एक-दो बैठकें ऐसी होती थीं, जिनमें सभी अफसरों को लखनऊ बुलाया जाता था। लेकिन, तकनीक के दौर में चीजें गूगल मीट, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और जूम के जरिए मीटिंग होने लगी। अफसरों के एसोसिएशन का चुनाव होता था, एनुअल जनरल मीटिंग होती थी। एसोसिएशन के लोग मुख्यमंत्री के सामने अपनी मांग रखते थे। पूरे साल के घटनाक्रम पर चर्चा होती थी। जमीन पर कितना होता था अफसर?
पुलिस वीक हो या आईएएस वीक, इसकी तैयारी पहले से शुरू होती थी। जो चीजें निकल कर आती थीं, उन्हें जमीनी स्तर पर लागू किया जाता था। बीट पुलिसिंग से लेकर, महिला सुरक्षा, पुलिस महकमे के लोगों को आने वाली दिक्कतों को चिह्नित कर उनके समाधान के लिए अफसरों को जिम्मेदारी दी जाती थी। इसमें अफसरों को पोस्टिंग का भी मुद्दा उठता था, नए लोगों को मौका देने की बात भी होती थी। एसोसिएशन का होता था चुनाव
पुलिस वीक में अफसरों के सम्मेलन के दौरान एसोसिएशन का चुनाव होता था। इसमें अध्यक्ष के साथ अध्यक्ष, महामंत्री, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष जैसे पदों पर अफसरों को चुना जाता था। कॉडर के सबसे वरिष्ठ अधिकारी को अध्यक्ष चुना जाता था, बशर्ते वो डीजीपी न हो। बाकी पदाधिकारियों का चुनाव आम सहमति से किया जाता था। एसोसिएशन का काम अपने कॉडर के लोगों की समस्याओं, चुनौतियों का समाधान करना होता था। मसलन मौजूदा समय में कई अफसर ऐसे हैं, जिन्हें फील्ड में पोस्टिंग का मौका ही नहीं दिया गया। एक अफसर बीते 7 साल से निलंबित है, सरकार उसको 90 प्रतिशत वेतन भी दे रही है। इस तरह के मुद्दे उठाए जाते थे, सरकार इन पर गौर भी करती थी। कौन है इस वक्त एसोसिएशन का पदाधिकारी
मौजूदा समय में संदीप सालुंके सबसे वरिष्ठ डीजी रैंक के अफसर हैं। वरिष्ठता के आधार पर वे खुद आईपीएस एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। संदीप सालुंके भी 2026 के फरवरी महीने में रिटायर हो रहे हैं। इसके बाद वरिष्ठता के क्रम में रेणुका मिश्रा हैं, जो फरवरी 2027 में रिटायर होंगी। लेकिन बाकी पदाधिकारी कौन हैं? कौन महासचिव है, कौन सचिव है, कौन उपाध्यक्ष और कौन कोषाध्यक्ष है? इसकी जानकारी पुलिस महकमे के लोगों को भी नहीं है। ———————— ये खबर भी पढ़ें… क्या यूपी में चुनाव लड़ पाएगा कुलदीप सेंगर, रेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर लगाई रोक उन्नाव रेप केस में भाजपा नेता और बांगरमऊ से तत्कालीन विधायक कुलदीप सेंगर की सजा सस्पेंड कर दी गई। हालांकि, इसके बाद भी वो जेल से बाहर नहीं आ पाया। क्योंकि, रेप पीड़ित के पिता की हत्या के मामले में सेंगर उम्रकैद की सजा काट रहा। पढ़ें पूरी खबर


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