मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार को राजनीति में लाने की मांग तेज होती जा रही है। 28 दिसंबर को तो JDU कार्यकर्ताओं ने पटना के गर्दनीबाग में भूख हड़ताल भी की। अंदरखाने चर्चा है कि निशांत कुमार की राजनीति में एंट्री तय है। 2026 में वह कभी भी पार्टी में एक्टिव हो सकते हैं। इस पर सहयोगी भाजपा को भी एतराज नहीं है। नीतीश कुमार के हालिया दिल्ली दौरे पर भी निशांत के राजनीति में आने पर गृह मंत्री अमित शाह से चर्चा होने की खबरें हैं। नीतीश कुमार की स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स देखें तो साफ लगता है कि निशांत कुमार को JDU में आना ही है। आज के एक्सप्लेनर बूझे की नाही में 4 पॉइंट में समझते हैं- कैसे धीरे-धीरे निशांत को राजनीति में लाने का माहौल बनाया गया। सालों तक राजनीति से दूर रहने वाले निशांत अब पार्टी की जरूरत कैसे बन गए। पॉइंट-1ः नेताओं को किनारे लगाकर नेतृत्व संकट खड़ा किया नीतीश कुमार के बाद कौन? JDU के अंदर और सियासी गलियारों में सबसे ज्यादा पूछा जाने वाला सवाल है। नीतीश कुमार 74 साल के हो गए हैं। उनके हेल्थ को लेकर तरह-तरह की चर्चा है। JDU के अंदर नेतृत्व संकट नीतीश कुमार की स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स के कारण ही है। इसे ऐसे समझिए… सेकेंड लाइन नेताओं को किया किनारे सीनियर जर्नलिस्ट संजय सिंह कहते हैं, ‘नीतीश कुमार ने बहुत चालाकी से पार्टी के सीनियर नेताओं को समय-समय पर किनारे किया। इससे पार्टी में सेकेंड लाइन के नेता तैयार नहीं हो पाए। ऐसी स्थिति क्रिएट की गई है कि निशांत कुमार पार्टी की जरूरत बन गए हैं। अब उनको लाना ही होगा।’ संजय सिंह कहते हैं, ‘नेता कभी-कभी अपनी बात बनवाने के लिए ऐसी परिस्थिति जानबूझकर तैयार करते हैं कि उनकी चाहत ही सबकी जरूरत बन जाए। आज निशांत JDU की जरूरत हैं।’ पॉइंट-2ः एक साल पहले से मीडिया में निशांत एक्टिव सालों तक मीडिया से दूर रहने वाले निशांत कुमार इस साल जनवरी से मीडिया के बीच बने हुए हैं। 17 जनवरी 2025 को बख्तियारपुर में निशांत ने लोगों से अपील करते हुए कहा था, ‘पिता ने अच्छा काम किया है। इसलिए उन्हें और JDU को वोट दीजिए और फिर से लाइए।’ सीनियर जर्नलिस्ट संजय सिंह बताते हैं, ‘एक साल से निशांत कुमार मीडिया की सुर्खियों में हैं। बहुत सधी हुई भाषा का इस्तेमाल करते हैं। कोई विवादित बयान नहीं देते हैं। इससे उनकी पॉजिटिव इमेज बन रही है। पार्टी सधी हुई रणनीति के तहत उनको धीरे-धीरे पब्लिक के बीच कंफर्ट कर रही है।’ संजय सिंह कहते हैं, ‘निशांत कुमार जिस तरह से अपना स्पेस बना रहे हैं, यह बिना नीतीश कुमार की मर्जी के नहीं हो सकता है। जरूर उनकी सहमति है। चूंकि नीतीश कुमार हमेशा परिवारवाद के खिलाफ रहे हैं, ऐसे में वह खुलकर कुछ नहीं करना चाहते।’ पॉइंट-3ः चुनाव के रिजल्ट के बाद सब निशांत पर माने विधानसभा चुनाव से पहले तक निशांत कुमार के राजनीति में आने को लेकर पार्टी के अंदर दो राय थी। कुछ नेता निशांत के आने की पुरजोर वकालत कर रहे थे तो कुछ नीतीश कुमार की आदर्शवादी राजनीति की दुहाई देकर नकार रहे थे। JDU के 101 में 85 सीटें जीतने के बाद सबकी राय एक हो गई है- निशांत को अब राजनीति में आना चाहिए। इसे JDU के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा के 2 बयान से समझिए… सीनियर जर्नलिस्ट राकेश प्रवीर कहते हैं, ‘चुनाव में जीत के बाद JDU के नेता उत्साहित हैं। पहले जिन नेताओं का मोरल डाउन था, अब वह हाई है। ऐसी स्थिति में सब नेता चाहते हैं कि पार्टी बची रहे। और पार्टी तब ही बची रहेगी, जब निशांत आएंगे।’ राकेश प्रवीर कहते हैं, ‘निशांत का व्यवहार ऐसा नहीं है कि किसी सीनियर लीडर को दिक्कत होगी। ऐसे में पार्टी के अंदर रजामंदी के तौर पर निशांत सबकी चॉइस हो सकते हैं।’ पॉइंट-4ः प्रशांत के डर से भाजपा निशांत पर मानी पिछले 30 सालों की बिहार की राजनीति को देखें तो यहां हमेशा तीसरी धुरी रही है। तीसरी धुरी का नेतृत्व नीतीश कुमार करते हैं। 16% से ज्यादा वोट बैंक हमेशा नीतीश कुमार के साथ रहा है। उनके वोटरों पर उनके पाला बदलने का कोई फर्क नहीं पड़ता। फिलहाल बिहार में JDU के 85 विधायक और 12 सांसद हैं। सीनियर जर्नलिस्ट राकेश प्रवीर कहते हैं, ‘नीतीश कुमार के पास अपनी जाति कुर्मी के साथ महिला और EBC का वोट बैंक हैं। उनके जाने के बाद पूरा वोट भाजपा में ट्रांसफर होगा, इसकी गारंटी नहीं है। ऐसे में भाजपा की मजबूरी है कि JDU बची रहे। वह कतई नहीं चाहेगी कि बिहार में JDU के अलावा तीसरा प्लेयर कोई और बने।’ राकेश प्रवीर कहते हैं, ‘अगर तीसरा ध्रुव कोई और बना तो भाजपा को दिक्कत हो सकती है। यही कारण है कि भाजपा को निशांत कुमार को किसी तरह बचाकर रखना होगा।’
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