इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अंतरिम भरण- पोषण भत्ता आवेदन की तारीख से दिया जाना चाहिए, न कि आदेश की तारीख से। न्यायमूर्ति राजीव लोचन शुक्ल की एकल पीठ ने कौशांबी की सोनम यादव की याचिका स्वीकार कर परिवार न्यायालय का आदेश संशोधित करते हुए यह आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि अगर आवेदन की तारीख से भरण-पोषण नहीं दिया जाता है तो इससे पत्नी को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। मुकदमे से जुड़े तथ्य यह हैं कि सोनम यादव ने अक्टूबर 2023 में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आवेदन किया था और अगस्त 2024 में अंतरिम भरण-पोषण के लिए आवेदन किया था। फेमिली कोर्ट ने अप्रैल 2025 में दिए गए आदेश कहा था कि भरण-पोषण उसके आदेश की तारीख से दिया जाएगा, न कि आवेदन की तारीख से। कौशांबी की परिवार अदालत ने केस नंबर 573/2023 (सोनम यादव बनाम उत्तेजन यादव) में आदेश सुनाया था। याची के अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के रजनीश बनाम नेहा (2021) मामले का उल्लेख किया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आमतौर पर भरण-पोषण के लिए आवेदन की तारीख से भरण-पोषण दिया जाना चाहिए। इस फैसले में यह भी कहा गया है कि यह नियम अंतरिम भरण-पोषण के लिए भी लागू होता है, जो मुख्य आवेदन के दौरान दिया जाता है। प्रतिवादी के वकील का तर्क था कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश केवल अंतिम भरण-पोषण के आदेशों के लिए हैं न कि अंतरिम भरण-पोषण के लिए। अंतरिम भरण-पोषण के लिए अलग से विचार किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि आवेदन की तारीख से ही भरण-पोषण दिया जाना चाहिए, न कि आदेश की तारीख से। अगर आवेदन की तारीख से भरण-पोषण नहीं दिया जाता है, तो इससे महिला को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। भरण-पोषण के आदेश महिलाओं और बच्चों के लिए होते हैं, जो अपने पति या पिता द्वारा छोड़ दिए गए हैं या जिनके पास रहने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं। कोर्ट का कहना था कि अभी तक कोई अंतिम आदेश नहीं आया है, लेकिन इस स्थिति में भी महिला को भरण-पोषण का अधिकार है, और अधिकार आवेदन की तारीख से ही लागू होना चाहिए।
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