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DDU में ग्रेस मार्क्स पर लगा ब्रेक:एक पेपर में फेल छात्रों को साल भर करना होगा इंतजार, कमेटी ने प्रस्ताव किया खारिज

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय और इससे जुड़े एफिलिएटेड कॉलेजों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को ग्रेस मार्क्स को लेकर बड़ा सेटबैक लगा है। एक सब्जेक्ट में फेल होने वाले छात्रों को राहत देने के लिए गठित कमेटी ने ग्रेस मार्क्स के प्रपोजल को इम्प्रैक्टिकल बताते हुए रिजेक्ट कर दिया है। DDU और एफिलिएटेड कॉलेजों में हर एकेडमिक ईयर बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स सिर्फ एक पेपर में फेल हो जाते हैं। कई छात्र पासिंग मार्क्स से बेहद कम अंतर से चूकते हैं, लेकिन एग्जिस्टिंग रूल्स के चलते उन्हें पूरा एक साल वेट करना पड़ता है। इसी वजह से लंबे समय से ग्रेस मार्क्स लागू करने की डिमांड उठ रही थी। फेल होने के बाद स्टूडेंट्स के पास लिमिटेड चॉइस
एक पेपर में फेल होने के बाद स्टूडेंट्स के सामने सिर्फ तीन ऑप्शन बचते हैं। पहला, अवॉर्डेड मार्क्स को चैलेंज करना। दूसरा, आरटीआई के जरिए आंसर शीट मंगाकर स्क्रूटनी कराना। तीसरा और सबसे ज्यादा यूज होने वाला ऑप्शन बैकलॉग यानी बैक पेपर देना। ज्यादातर स्टूडेंट्स बैकलॉग को ही कंपेरेटिवली सेफ और प्रैक्टिकल ऑप्शन मानते हैं। बैक पेपर सिस्टम की वजह से स्टूडेंट्स को पूरा एक साल का एकेडमिक गैप झेलना पड़ता है। इस डिले की वजह से कई स्टूडेंट्स कोर्स बीच में छोड़ देते हैं, जबकि कई के लिए नेक्स्ट अटेम्प्ट में पेपर क्लियर करना और ज्यादा प्रेशर वाला हो जाता है। करियर प्लानिंग पर भी पड़ता है डायरेक्ट इम्पैक्ट
एक साल का एकेडमिक गैप सिर्फ पढ़ाई तक सीमित नहीं रहता। इसका असर हायर एजुकेशन एडमिशन, कॉम्पिटिटिव एग्जाम, इंटर्नशिप और प्लेसमेंट पर भी पड़ता है। इसी कारण स्टूडेंट्स ग्रेस मार्क्स को करियर-फ्रेंडली ऑप्शन मानते रहे हैं। स्टूडेंट्स की लगातार डिमांड को देखते हुए यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने सितंबर महीने में एक स्पेशल कमेटी का गठन किया था। कमेटी को यह टास्क दिया गया था कि ग्रेस मार्क्स पॉलिसी को NEP-2020 के तहत इम्प्लीमेंट किया जा सकता है या नहीं। NEP-2020 के प्रोविज़न बने सबसे बड़ी बाधा
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ किया कि नई शिक्षा नीति 2020 के एग्जिस्टिंग प्रोविज़न के तहत ग्रेस मार्क्स देना फीजीबल नहीं है। पॉलिसी फ्रेमवर्क में इसे लेकर कोई क्लियर गाइडलाइन या स्कोप नहीं पाया गया।कमेटी की रिपोर्ट सबमिट होने के बाद यह क्लियर हो गया है कि फिलहाल ग्रेस मार्क्स को लेकर कोई इमीडिएट रिलीफ मिलने वाली नहीं है। यूनिवर्सिटी लेवल पर रूल्स में बदलाव की कोई रिकमेंडेशन नहीं की गई है। वाइस चांसलर ने डिसीजन किया कन्फर्म
DDU की वाइस चांसलर प्रो. पूनम टंडन ने बताया कि ग्रेस मार्क्स को लेकर बनाई गई कमेटी ने NEP-2020 के सभी ऐस्पेक्ट्स का डिटेल्ड स्टडी किया। इसके बाद ग्रेस मार्क्स न देने की रिकमेंडेशन की गई, जिसे यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन ने एक्सेप्ट कर लिया है। कमेटी की रिकमेंडेशन के बाद अब साफ है कि एक पेपर में फेल स्टूडेंट्स को मार्क्स चैलेंज, स्क्रूटनी या बैकलॉग जैसे एग्जिस्टिंग ऑप्शन पर ही डिपेंड रहना होगा। फिलहाल यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से रूल्स चेंज को लेकर कोई फ्यूचर रोडमैप सामने नहीं आया है।


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