बिहार के ‘माउंटेन मैन’ दशरथ मांझी की तरह, सत्यदेव मांझी भी व्यवस्था से लड़ रहे हैं। 64 वर्षीय सत्यदेव मांझी 2013 से लगातार ईवीएम के विरोध में साइकिल यात्रा पर हैं। उन्होंने अब तक देश के लगभग सभी हिंदी भाषी राज्यों में करीब 30 हजार किलोमीटर की यात्रा पूरी की है। उनका कहना है कि जब तक ईवीएम पर पूरी तरह प्रतिबंध नहीं लगेगा, तब तक उनकी यह यात्रा जारी रहेगी। सत्यदेव मांझी अन्ना हजारे के आंदोलन से प्रेरित होकर इस संघर्ष में उतरे। बिहार के सीवान जिले की बलिया पंचायत के निवासी सत्यदेव हाल ही में साइकिल से हरदोई पहुंचे। यहां उन्होंने चंद्रशेखर की जनसभा में भाग लिया। इसके बाद वे दिल्ली और हरियाणा की ओर रवाना होंगे। हाथ में झंडा, साइकिल पर बंधे पोस्टर और लोकतंत्र बचाने का जुनून उनकी पहचान है। जहां भी वे पहुंचते हैं, लोग रुककर उनकी कहानी सुनते हैं। सत्यदेव की निजी जिंदगी संघर्षों से भरी रही है। वर्ष 2012 में हरियाणा के गुरुग्राम सेक्टर-4 में उनकी चाय की दुकान सरकारी कार्रवाई में गिरा दी गई थी। दुकान टूटने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। उनके बड़े बेटे राहुल कुमार को आठवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी और मजदूरी करनी पड़ी। छोटा बेटा रबी कुमार इस समय 12वीं का छात्र है, जिसकी पढ़ाई का खर्च राहुल उठा रहा है। परिवार का खर्च चलाने के लिए सत्यदेव की पत्नी कलावती देवी घर-घर झाड़ू-पोछा करती हैं। सत्यदेव का आरोप है कि बीजेपी सरकार आने के बाद गुरुग्राम में लगभग 50 हजार बिहारियों का रोजगार छिन गया। दुकान टूटने के सदमे से उनकी मां चनिया देवी और भाई फुलन मांझी की भी मृत्यु हो गई। सत्यदेव मांझी कहते हैं कि उन्होंने सब कुछ खोया है, लेकिन लोकतंत्र की लड़ाई नहीं छोड़ेंगे। उनका संघर्ष उस आम नागरिक की आवाज है, जो व्यवस्था से सवाल पूछता है और साइकिल पर देश भर में लोकतंत्र की मशाल लिए घूम रहा है।
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