महाकुंभ के बाद का संगम की रेती पर तीन जनवरी से माघ मेले की शुरुआत हो रही है। माघ मेले के शुरू हाेने में महज 5 से 6 दिन शेष बचे हैं लेकिन स्थिति यह है कि यहां अभी तक तमाम साधु-संतों व विभिन्न संस्थाओं को जमीन तक आवंटित नहीं हो पायी है। जिन्हें जमीन मिल गई है वह अपने शिविर में सुविधा पाने के लिए अफसरों का चक्कर काट रहे हैं। यही कारण है कि लगातार साधु संत व मेला प्राधिकरण के अफसर आमने-सामने दिख रहे हैं। सवाल यह उठता है जो माघ मेला 800 हेक्टेयर में बसने जा रहा है उसके बाद भी यहां जमीन के लिए मारामारी क्यों हो रही है? यहां सबसे पहले जमीन के लिए सतुआ बाबा धरने पर बैठे। उन्हें जमीन मिल गई। इसके बाद तीर्थ पुरोहित व अन्य साधु संत व विभिन्न संस्थाओं से जुड़े लोग आए दिन धरना प्रदर्शन करते रहे। शुक्रवार की रात को एक बार बवाल हो गया। रात में विभिन्न शहरों से आए साधु संत जमीन व सुविधा न मिलने से धरने पर बैठ गए थे। रात में ही 2 लोगों ने तो अपने ऊपर पेट्रोल तक छिड़क लिया। शनिवार को भी यही स्थिति रही। वहीं, अपर मेला अधिकारी दयानंद प्रसाद का कहना है कि जमीन आवंटन का कार्य पूरा हो चुका है। सुविधाओं के लिए संबंधित सेक्टर कार्यालय में संपर्क किया जा सकता है। कुल 4900 संस्थाओं को जमीन दी गई है। 2 दिसंबर से जमीन के लिए लगा रहा हूं चक्कर वृंदावन से आए गोपाल नंद गिरि महाराज ने कहा, मैं 1998 से निरंजनी अखाड़े से यहां आ रहा हूं। मैं 2 दिसंबर से मेला प्राधिकरण कार्यालय पर आ रहा हूं, लेकिन जमीन और सुविधा के संबंध में किसी अधिकारी ने कुछ सुना। गोपाल नंद गिरि ने आरोप लगाया कि जमीन व सुविधा लेने के लिए रुपए डिमांड की जा रही है। क्या यही सनातन की सरकार है। संतों को लात मारकार भगाया जा रहा है। जहां जूता चप्पल रखा जाता है वहां हम जमीन पर बैठकर अफसरों के आने का इंतजार कर रहे हैं। पूरा सिस्टम भ्रष्ट है। ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जरूरत है। ‘46 संस्थाओं को पहले ही दी दी जमीन’ निराश्रय फाउंडेशन से शिवसागर शुक्ला कहते हैं, हमारी संस्था की तरफ से इस बार के माघ मेले में पहली बार शिविर लगाने की तैयारी है। मेले में जमीन लेने के लिए बहुत कठिन प्रक्रिया है यहां। यहां पता चला कि जमीन चाहिए तो पेट्रोल छिड़कना होगा या धरना प्रदर्शन करना होगा। सामान्य तरीके से जमीन व सुविधाएं यहां नहीं मिल पा रही हैं। यहां बताया गया कि 26 दिसंबर से नई संस्थाओं को जमीन दी जाएगी लेकिन एक दिन पहले यानी 25 को ही 46 नई संस्थाओं को जमीन दे दी गई। ऐसा क्यों किया गया? पवन कुमार द्विवेदी कहते हैं, कि मेला के अधिकारी व वेंडर लल्लू जी मनमानी तरीके से काम कर रहे हैं। 20 दिसंबर से ही सामान गिरा है लेकिन हम लोगों के शिविरों के लिए नहीं दी जा रही है। वह कहते हैं, कि यदि हमें सुविधा नहीं दी जाती है तो हम लोग भी आत्मदाह को मजबूर होंगे। पूर्व डिप्टी कमिश्नर डा. श्याम धर तिवारी भी जमीन के लिए यहां धरने पर बैठे दिखे। उन्होंने कहा, संस्था की जमीन के लिए हमने यहां आवेदन किया है। हम लोगों को जमीन नहीं मिली। ‘दुकान के लिए 45 हजार मांग रहे अफसर’ यहां सिर्फ साधु संत व संस्थाओं से जुड़े लोग ही नहीं बल्कि रेहड़ी पटरी वाले भी जमीन के लिए परेशान हैं। उनका कहना है कि माघ मेला क्षेत्र में दुकान लगाने के लिए 45 हजार रुपये मांगे जा रहे हैं। रासमुनि कहती हैं कि वह मेले में खिलौने का दुकान लगाती हैं। इसी बार 44 हजार रुपए मांगा जा रहा है। इतना ज्यादा रुपए कहां से लाएं। प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री महिलाओं को रोजगार देने की बात कर रहे हैं लेकिन अधिकारी मनमाने रुपए मांग रहे हैं। अमित कहते हैं, सेक्टर 5 में हम दुकान लगाए हुए हैं लेकिन हमारी दुकान तोड़वा दी गई। जानिए, 2026 के माघ मेले का स्वरूप कैसा होगा जानिए, कब है प्रमुख स्नान पर्व
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