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नालंदा में सरकारी स्कूलों में 24000 बच्चों की संख्या घटी:31 दिसंबर तक डीईओ को सुधार करने का अल्टीमेटम, इसके बाद कार्रवाई की जाएगी

बिहार की शिक्षा व्यवस्था में एक बड़ी खामी सामने आई है। राज्य के सरकारी स्कूलों में करीब छह लाख बच्चों के आंकड़े यू-डायस पोर्टल से गायब हो गए हैं। यह चौंकाने वाला खुलासा वित्तीय वर्ष 2024-25 और 2025-26 के डाटा की तुलना से हुआ है। बिहार शिक्षा परियोजना परिषद (बीईपीसी) के राज्य परियोजना निदेशक नवीन कुमार ने 35 जिलों के डीईओ को पत्र लिखकर चेतावनी जारी की है। उन्होंने 31 दिसंबर तक डाटा में सुधार करने का अल्टीमेटम देते हुए साफ कहा है कि असफल रहने पर अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी। नालंदा में 24 हजार तो गोपालगंज में 40 हजार बच्चे कम आंकड़ों के मुताबिक, नालंदा जिले में 24,441 बच्चों की संख्या घटी है, जो 5.52 फीसदी की गिरावट दर्शाता है। सबसे बुरी स्थिति गोपालगंज की है, जहां 40,909 विद्यार्थियों के आंकड़े कम हो गए हैं। यह 12.21 फीसदी की भारी कमी है। सारण में 43,464, गयाजी में 30,716, किशनगंज में 25,312 और नवादा में 24,951 छात्रों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। दिलचस्प बात यह है कि तीन जिले पूर्णिया, मुजफ्फरपुर और भागलपुर में 621, 5,386 और 5,748 अधिक छात्रों की डाटा इंट्री हुई है। राज्य स्तर पर देखें तो 2024-25 में कुल 1,70,56,193 बच्चे नामांकित थे, जो 2025-26 में घटकर 1,64,62,348 रह गए हैं। यानी कुल 5,93,845 बच्चों के आंकड़े कम हुए हैं। केंद्रीय बजट और योजनाओं पर सीधा असर यू-डायस (यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन) के आंकड़ों के आधार पर ही केंद्र सरकार शिक्षा बजट तैयार करती है। इसी डाटा के अनुसार पोशाक, पाठ्यपुस्तकें, मिड-डे मील और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए राशि आवंटित की जाती है। जिन बच्चों का डाटा दर्ज नहीं होगा, वे इन सरकारी योजनाओं से पूरी तरह वंचित रह जाएंगे। भौतिक संसाधनों के आंकड़ों में भी गड़बड़ी सिर्फ छात्रों की संख्या ही नहीं, बल्कि स्कूलों में शौचालय, कमरे, पेयजल स्रोत, रैंप, चहारदीवारी, खेल मैदान और आईसीटी लैब जैसे भौतिक संसाधनों के आंकड़ों में भी विसंगतियां पाई गई हैं। इससे भविष्य में कमरा निर्माण और अन्य असैनिक कार्यों पर गंभीर असर पड़ सकता है। बीईपीसी ने इन आंकड़ों के भौतिक सत्यापन के लिए विशेष कर्मियों को तैनात किया है और डीईओ को जवाबदेह ठहराया है। फर्जी नामांकन की आशंका शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पहले कुछ अभिभावक अपने बच्चों का दोहरा नामांकन कराते थे। एक निजी स्कूल में और दूसरा सरकारी स्कूल में। कुछ मामलों में फर्जी नामांकन भी होते थे ताकि योजनाओं का लाभ उठाया जा सके। लेकिन अब सरकार की ओर से सीधे बैंक खातों में राशि भेजने की व्यवस्था से ऐसा करना मुश्किल हो गया है। संभव है कि इसी कारण असली आंकड़े सामने आ रहे हों। हालांकि, यह भी चिंता का विषय है कि वास्तविक रूप से स्कूल जाने वाले बच्चों का डाटा दर्ज न होने से वे योजनाओं से वंचित रह सकते हैं। 31 दिसंबर तक का अल्टीमेटम एसपीडी नवीन कुमार ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जिन 35 जिलों में विद्यार्थियों की संख्या पिछले साल से कम है, वहां के डीईओ को 31 दिसंबर तक सुधार का अंतिम अवसर दिया गया है। इसके बाद जो बच्चे योजनाओं के लाभ से वंचित होंगे, उसके लिए पूरी तरह डीईओ ही जिम्मेवार होंगे।


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