श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र द्वारा आयोजित द्वितीय प्रतिष्ठा द्वादशी समारोह में मोहित शेवानी व उनके समूह द्वारा ‘गाथा श्री राम की’ कार्यक्रम का अंगूठा मंचन होगा| आक्रांताओं द्वारा तहस-नहस की गई अयोध्या में प्रभु श्रीराम की पुन र्प्रतिष्ठा के लिए किस तरह संघर्ष व बलिदान हुए, गाथा की रोमांचकारी प्रस्तुति होगी। श्री राम मंदिर मात्र मंदिर नहीं, बल्कि एक यात्रा है कार्यक्रम को मोहक बनाने के लिए आधुनिक तकनीक व एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का भी सहारा लिया गया है।
मोहित शेवानी के अनुसार 22 जनवरी 2024 के उस ऐतिहासिक दिन जब पूरे विश्व के सनातन धर्मियों ने ऐसे क्षण जिया था, जिसका इंतज़ार कई सदियों का था। अयोध्या का श्री राम मंदिर मात्र मंदिर नहीं, बल्कि एक यात्रा है। ये एक अंतर्भावना है, जो हर एक भारतीय के धामनियों में खून बनकर दौड़ता आ रहा है।
मान्यता है कि उज्जैन के प्रतापी राजा विक्रमादित्य श्रीराम जन्मभूमि को प्रणाम करने आए और सरयू के निकट पहुंचे। उन्हें राम जन्म का ठीक स्थान पता नहीं था| तभी उन्होंने देखा कि एक काले घोड़े पर सवार काला व्यक्ति सरयू में स्नान करने आया। स्नान करते ही वह और घोड़ा दोनों उजले हो गए।
महाराज ने हाथ जोड़कर पूछा, “प्रभु, आप कौन हैं और यह चमत्कार कैसे हुआ?” व्यक्ति ने बताया, “मैं तीर्थराज प्रयाग हूँ। लोग मुझमें अपने पाप धोते हैं, जिससे मेरा रंग काला हो जाता है। सरयू में स्नान करने से मैं फिर से स्वच्छ हो जाता हूँ।” महाराज विक्रमादित्य ने पूछा, “हे तीर्थराज, मैं यहाँ श्रीराम जन्मस्थान को ढूंढ़कर वहाँ पूजन करना चाहता हूँ और एक राम मंदिर बनवाना चाहता हूँ। परंतु ठीक जन्मस्थान का पता कैसे मिलेगा?” जहाँ यह गाय के चारों थनों से अपने आप दूध बहने लगे, वही श्रीराम जन्मस्थान है
“तीर्थराज ने कहा, ” इस प्रश्न का उत्तर काशी विश्वनाथ धाम में मिलेगा।” यह कहकर वे चले गए। महाराजा विक्रमादित्य काशी पहुँचे। वहाँ एक ब्राह्मण मिला, कहते हैं कि वे स्वयं शिव थे। ब्राह्मण के पास एक गाय थी। उन्होंने कहा, “राजन, आप यह गाय अयोध्या ले जाइए। जहाँ यह गाय के चारों थनों से अपने आप दूध बहने लगे, वही श्रीराम जन्मस्थान है।” महाराज विक्रमादित्य ने ऐसा ही किया और जन्मस्थान का पता लगा लिया
महाराज विक्रमादित्य ने ऐसा ही किया और जन्मस्थान का पता लगा लिया। उन्होंने वहाँ पूजन कर एक भव्य राम मंदिर बनवाया, जो इतिहास का पहला श्रीराम मंदिर कहलाया। अयोध्या फिर से धर्मनगरी बन गई। उन्होंने 250 से अधिक मंदिर भी बनवाए। श्रीराम मंदिर की सुंदरता और भव्यता देखने लायक थी। दूर-दूर से भक्त अयोध्या आने लगे, जैसे रामराज्य वापस आ गया हो।
लेकिन जिस तरह श्री राम को अपने जीवन में संघर्षों का सामना करना पड़ा, उसी तरह उनके भक्त भी श्रीराम जन्मस्थान के लिए संघर्षों की पटरी पर चल पड़े थे ! ऐसे ही संघर्ष की शुरुवात हुई। लेकिन इस युद्ध में राजा महताब सिंह बलिदान हो गए
1526 में बाबर ने सेनापति मीर बाक़ी द्वारा हमला करवा कर श्रीराम मंदिर को ध्वस्त करवा दिया और वहाँ मस्जिद का निर्माण करवा दिया, जिसे कालान्तर में विवादित ढांचा कहा गया। भीटी रियासत के राजा महताब सिंह ने जन्मस्थान की मुक्ति के लिए मीर बाक़ी की सेना से एक बड़ा युद्ध लड़ा लेकिन इस युद्ध में राजा महताब सिंह बलिदान हो गये। उसके बाद हंसवर के राजा रणविजय सिंह ने जन्मस्थान मुक्ति के लिए बाबर की सेना से युद्ध किया लेकिन राजा रणविजय को भी अपने प्राणों का उत्सर्ग करना पड़ा। संत बलरामाचार्य ने जन्मभूमि मुक्ति के लिए संघर्ष जारी रखा
1556 में अकबर राजा बना। उसके निकट बीरबल और राजा टोडरमल थे। संत बलरामाचार्य ने जन्मभूमि मुक्ति के लिए संघर्ष जारी रखा। संतों ने बीरबल और टोडरमल से मिलकर जन्मभूमि मुक्ति की मांग की।
1600 में अकबर ने मंदिर परिसर में हिन्दुओं को पूजा के लिए चबूतरा दिया और हनुमान गढ़ी में 6 बीघा जमीन भी दी। यह संघर्ष की जीत थी, न कि अकबर की दया। इसके बाद जहाँगीर और शाहजहाँ के समय अयोध्या में शांति रही और हिन्दुओं का पूजा-पाठ जारी रहा। फिर औरंगज़ेब आया, जिसने अयोध्या पर हमला किया। बाबा वैष्णव दास, कुँवर गोपाल सिंह और ठाकुर जगदेव सिंह के नेतृत्व में साधुओं ने डटकर मुकाबला किया। 30 युद्ध हुए, लेकिन संतों ने अधिकतर में मुगलों को हराया गुरु गोविंद सिंह की भेजी सिख सेना ने भी मदद की। 30 युद्ध हुए, लेकिन संतों ने अधिकतर में मुगलों को हराया। अंत में औरंगज़ेब ने पूजा पर रोक लगा दी, पर हनुमान गढ़ी साधुओं के कब्जे में रही। 1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद साधुओं ने चबूतरे पर पूजा फिर शुरू कर दिया। मराठा राजा मल्हार राव और सदाशिव राव भाऊ ने भी अयोध्या की भूमि की मांग की
नवाबों के दौर में भी संघर्ष जारी रहा। नवाब सफ़दर जंग ने अभयराम दास जी की मदद से हनुमान गढ़ी की सुरक्षा की और मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया। मराठा राजा मल्हार राव और सदाशिव राव भाऊ ने भी अयोध्या की भूमि की मांग की, पर पानीपत की लड़ाई में विजय न हासिल करने के कारण उनकी मांग पूरी नहीं हुई। 1784 में माता अहिल्याबाई होल्कर अयोध्या आईं 1784 में माता अहिल्याबाई होल्कर, जो सनातन संस्कृति की महान जीर्णोद्धारक थीं, अयोध्या आईं। उन्होंने त्रेता का राम मंदिर और सरयू के किनारे कई घाटों का जीर्णोद्धार करवाया। इससे अयोध्या में पुनः रंगत लौट आई और श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ गई। 25 साल बाद अगले नवाब ने फिर पूजा पर पाबंदी लगा दी। मकरही के राजा के नेतृत्व में कई राजाओं ने मिलकर हमला किया और परिसर को अपने कब्जे में ले लिया। नवाब ने बाद में विशाल सेना के साथ हमला किया, जिसमें राजाओं और हिन्दू नागरिकों का भारी नरसंहार हुआ। यह अयोध्या के इतिहास का एक काला अध्याय था।
1856 में अंग्रेजी हुकूमत ने अयोध्या को अपने कब्जे में ले लिया और परिसर को दो भागों में बाँटते हुए एक बाड़ा लगा दिया। मस्जिद वाले भाग में, जो की वास्तव में जन्म स्थान था, मुसलमानों को नमाज पढ़ने की इजाजत दी गई और चबूतरे वाले भाग में हिन्दुओं को पूजा की। चबूतरा जन्मस्थान नहीं था, जो सटीक जन्मस्थान था, वहाँ तब मस्जिद थी। रामलला को लगभग 150 वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी।
1949 की 22 और 23 दिसम्बर की आधी रात को एक बड़ी घटना हुई। रामलला की मूर्ति वास्तविक गर्भगृह, में प्रकट हुई।
इस तरह लगभग 75 मिनट की मंचित “गाथा श्रीराम की” एआई के माध्यम से मंचित दृश्यों को पीछे के परदे पर भी चित्रित करेगा।
गाथा के मुख्य बिंदु
*भगवान श्री राम के बाद अयोध्या का क्या हुआ?
*कौन थे राजा वृहदबल जिनके बाद अयोध्या सूनी सूनी हो गई?
*कलयुग में सबसे पहले किसने और कैसे ढूँढा सटीक जन्मस्थान ?
*किसने बनवाया श्रीराम जन्मभूमि मंदिर ?
*बाबर ने क्यों तोड़ा राम मंदिर ?
*मुग़ल काल में क्या क्या हुआ?
*नवाबों के काल में क्या क्या हुआ?
*लाखों हिन्दू कैसे मार दिए गए?
*संघर्ष में साधुओं का क्या योगदान रहा ?
*अंग्रेज़ों के काल में क्या क्या हुआ?
*कैसे आज़ादी के बाद अचानक प्रकट हुए रामलला ?
*1949 से ले कर क्या क्या राजनीतिक उथल-पुथल हुई? कैसे जीता मंदिर पक्ष?
गाथा में समाहित है ह्रदय बैंड एक ऐसा बैंड है जिसने भक्ति गीतों, दोहों, मानस की चौपाइयों और छन्दों की प्रस्तुति पर कौशल प्राप्त किया। मार्मिक दोहों के गायन से संवेदनाओं को झकझोर देने वाले हृदय बैंड की साधना इस प्रस्तुति में साफ़ दिखाई देती है। ध्वनि के नवीनतम तकनीकों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्स के माध्यम से प्रस्तुति में दिए जाने वाले विभिन्न साउंड इफ़ेक्ट के माध्यम से गाथा की रोचकता को एक नई दिशा मिलती है।
प्रबुद्ध सौरभ बॉलीवुड लेखक एवं गीतकार प्रबुद्ध सौरभ ने इस गाथा का शोध व पटकथा लेखन किया है। इतिहास और आध्यात्म के क्षेत्र में कई शोधपरक कामों को करने के लिए विख्यात प्रबुद्ध सौरभ ने इस पटकथा में हज़ारों वर्षों के संघर्ष के सभी महत्वपूर्ण पड़ावों को उजागर किया है। कहानी के हर उतार चढ़ाव को इतनी रोचकता से लिखा गया है कि श्रोता पलक तक झपकाना नहीं चाहते।
मोहित शेवानी मोहित शेवानी एक अभिनेता और वक्ता हैं जो पिछले एक दशक से अधिक समय में पूरी दुनिया में बतौर अभिनेता, वक्ता, सूत्रधार और संचालक के तौर पर प्रस्तुति दे चुके हैं। पूरी गाथा को रोचक, रोमांचक और संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत करने का उत्तरदायित्व मोहित शेवानी पर है। मोहित अपने वाचन कौशल से संवेदना के वाक्यों पर आँसू निकलवा देने, शौर्य के वाक्यों पर भुजाएँ फड़का देने, रोचक बातों पर रोमांच करवा देने और महत्वपूर्ण बातों को याद करवा देने की क्षमता रखते हैं जो इस प्रस्तुति में समय-समय पर परिलक्षित होता है।
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