आगरा में श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज के प्रकाश पर्व के अवसर पर शनिवार को गुरुद्वारा माई थान में विशेष कीर्तन समागम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन सिख समाज की केंद्रीय संस्था श्री गुरु सिंह सभा माईथान द्वारा पौष सुदी सप्तमी के दिन किया गया। कीर्तन समागम की शुरुआत श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के प्रकाश के साथ हुई। इसके बाद अखंड कीर्तनी जत्थे के भाई जसपाल सिंह जी और उनके जत्थे ने आसा दी वार का कीर्तन किया। गुरुद्वारा माईथान के हजूरी रागी भाई बिजेंद्र पाल सिंह, रागी भाई हरजिंदर सिंह और बीबी कश्लीन कौर ने रसमई कीर्तन की हाजिरी भरी। इस अवसर पर चंडीगढ़ से पहली बार आगरा पहुंचे रागी भाई गुरविंदर सिंह जी ने गुरबाणी का कीर्तन कर संगत को गुरु चरणों से जोड़ा। उनके कीर्तन से पूरा माहौल भक्ति से सराबोर हो गया। इसके साथ ही आगरा शहर के अन्य रागी जत्थों और धर्म प्रचारकों ने भी गुरु जस का गायन किया। श्री गुरु सिंह सभा माईथान के प्रधान कवलदीप सिंह ने बताया कि गुरु गोविंद सिंह जी एक शहीद पिता के पुत्र और चार शहीद पुत्रों के पिता थे। उन्होंने कहा कि नौ वर्ष की आयु में गुरु गोविंद सिंह जी के आग्रह पर गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने धर्म और सनातन परंपरा की रक्षा के लिए बलिदान दिया। वहीं उनके चारों पुत्रों ने मुगल अत्याचार के सामने धर्म से समझौता किए बिना शहादत स्वीकार की। कीर्तन समागम के अंत में आनंद साहिब का पाठ हुआ। इसके बाद हेड ग्रंथी ज्ञानी कुलविंदर सिंह जी ने सरबत के भले की अरदास की और हुकमनामे के साथ समागम की समाप्ति हुई। इसके बाद संगत को गुरु का अटूट लंगर वितरित किया गया। मीडिया प्रभारी जसबीर सिंह ने बताया कि 27 दिसंबर को गुरु गोविंद सिंह जी का प्रकाश पर्व और उनके छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह का शहीदी दिवस एक साथ मनाया गया। सिख परंपरा में शहीदी दिवस शोक के रूप में नहीं बल्कि शौर्य, गर्व और उत्साह के साथ मनाए जाते हैं। इसी क्रम में शाम का केंद्रीय कीर्तन दरबार गुरुद्वारा कालगीधर, सदर बाजार में आयोजित किया गया। समागम की शुरुआत ग्रंथी ज्ञानी अमरीक सिंह ने रहरास साहिब के पाठ से की। इसके बाद बीबी बलजिंदर कौर और रागी भाई गुरविंदर सिंह जी ने कीर्तन कर संगत को गुरु इतिहास से जोड़ा। गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अनुसार, इस आयोजन का उद्देश्य नई पीढ़ी को गुरु गोविंद सिंह जी के संघर्ष, बलिदान और आदर्शों से परिचित कराना था। समागम का समापन आनंद साहिब, अरदास और हुकमनामे के साथ हुआ। इसके बाद संगत ने पंक्तिबद्ध होकर गुरु घर का प्रसाद और लंगर ग्रहण किया।
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