गोरखपुर में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने बिजली कर्मियों को मिल रही रियायती बिजली सुविधा समाप्त करने के पॉवर कारपोरेशन के आदेश को कर्मचारी विरोधी बताते हुए तीखा ऐतराज जताया है। समिति ने कहा कि यह फैसला वर्षों से चले आ रहे कानूनी प्रावधानों के विपरीत है और इससे बिजली कर्मियों में भारी असंतोष फैल गया है। संघर्ष समिति ने स्पष्ट किया है कि बिजली के निजीकरण, उत्पीड़नात्मक कार्यवाहियों और रियायती बिजली सुविधा समाप्त करने के आदेश के विरोध में एक जनवरी 2026 को बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर और अभियंता सामूहिक रूप से विरोध दिवस मनाएंगे। 22 दिसंबर के आदेश से बढ़ा असंतोष समिति के अनुसार विरोध दिवस के दिन बिजली कर्मी पूरे दिन दाहिने हाथ पर काली पट्टी बांधकर काम करेंगे। साथ ही सभी जनपदों और परियोजनाओं पर भोजन अवकाश अथवा कार्यालय समय समाप्त होने के बाद संगठित विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। संघर्ष समिति ने बताया कि पॉवर कारपोरेशन की ओर से 22 दिसंबर को जारी आदेश में सभी बिजली कर्मियों और पेंशनरों के आवासों पर 31 दिसंबर तक हर हाल में स्मार्ट मीटर लगाने के निर्देश दिए गए हैं। आदेश का पालन न होने की स्थिति में कर्मचारियों और अधिकारियों पर प्रतिकूल कार्रवाई की चेतावनी से कर्मियों में आक्रोश है। कानून से संरक्षित है रियायती बिजली सुविधा समिति ने कहा कि बिजली कर्मियों को रियायती बिजली की सुविधा किसी रियायत के रूप में नहीं, बल्कि इलेक्ट्रिसिटी रिफॉर्म एक्ट 1999, यूपी ट्रांसफर स्कीम 2000 और इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 के तहत कानूनी अधिकार के रूप में प्राप्त है। इसमें किसी भी तरह का बदलाव सीधे तौर पर अधिनियमों का उल्लंघन है। संघर्ष समिति के मुताबिक इलेक्ट्रिसिटी रिफॉर्म एक्ट 1999 के सेक्शन 23(7) में यह साफ लिखा है कि 14 जनवरी 2000 को बिजली कर्मियों को मिल रही रियायती बिजली सुविधा किसी भी स्थिति में कम नहीं की जा सकती। यूपी ट्रांसफर स्कीम 2000 के सेक्शन 12(बी) में इसे टर्मिनल बेनिफिट बताया गया है, जबकि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 के सेक्शन 133(2) में भी इसी भावना को दोहराया गया है।
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