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भइया उठ जाओ…मेरा सहारा चला गया… अब कैसे जियूंगी:सहारनपुर में डी–फार्मा के छात्र ने लगाई फांसी, मां बेटे की किताबों और कपड़ों को सीने से लगाकर रोई

सहारनपुर में शनिवार की सुबह थाना फतेहपुर क्षेत्र के छुटमलपुर की नई बस्ती में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई। डी–फार्मा के छात्र वंश (20) ने अपने ही कमरे में खुद के मफलर से फांसी लगाकर जान दे दी। वंश दिन में पढ़ाई करता था और शाम को एक फैक्ट्री में काम कर परिवार का सहारा बन रहा था। उसकी मौत की खबर से मोहल्ले में मातम पसर गया। मां और बहनों का रो-रोकर बुरा हाल है। सुबह की खामोशी चीखों में बदली शनिवार की सुबह नई बस्ती में रोज की तरह शांति थी। रीता अपने काम में लगी थीं। घर की पहली मंजिल पर बने कमरे में वंश गया था। काफी देर तक जब वह नीचे नहीं आया तो मां को चिंता हुई। रीता छत पर पहुंचीं तो उनकी आंखों के सामने जो दृश्य था, उसने उनकी दुनिया उजाड़ दी। वंश कमरे में मफलर के सहारे पंखे से लटका हुआ था। मां की चीख पूरे घर और मोहल्ले में गूंज उठी। चीख सुनकर पड़ोसी दौड़े आए। किसी ने हिम्मत जुटाकर वंश को नीचे उतारा। तब तक उसकी सांसें थम चुकी थीं। घर में कोहराम मच गया। मां रीता बेटे के शरीर से लिपटकर बेसुध हो गईं। बहनें वंशिका (18) और छोटी बहन (16) रोते-रोते जमीन पर बैठ गईं। “भइया उठ जाओ…” की आवाजें हर दिल को चीर रही थीं। घटना की सूचना मिलते ही थाना फतेहपुर पुलिस और फोरेंसिक टीम मौके पर पहुंची। फोरेंसिक टीम ने कमरे से सैंपल उठाए। पुलिस ने आवश्यक कानूनी प्रक्रिया पूरी करते हुए शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। शुरुआती जांच में आत्महत्या का मामला सामने आया है, हालांकि पुलिस हर पहलू से जांच कर रही है। वंश डी–फार्मा का छात्र था। दिन में कॉलेज जाता और शाम को एक फैक्ट्री में काम करता था। पड़ोसियों के मुताबिक वह मेहनती और शांत स्वभाव का लड़का था। परिवार की जिम्मेदारियां उसके कंधों पर थीं। मां रीता पिछले छह महीनों से अपने तीन बच्चों के साथ मायकेनुमा इस घर में रह रही थीं। पति जितेन्द्र से उनका विवाद चल रहा था, जिसके चलते अलग रहना पड़ रहा था। चार-पांच दिन पहले हुआ था विवाद पड़ोसियों ने बताया कि चार-पांच दिन पहले वंश के पिता जितेन्द्र यहां आए थे। उस दौरान पत्नी और बच्चों से तीखी बहस हुई थी। आरोप है कि झगड़े के दौरान वंश को भी गालियां दी गई थीं। उस दिन के बाद से वंश काफी परेशान और गुमसुम रहने लगा था। लोगों ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था कि वह इतना बड़ा कदम उठा लेगा। मां का विलाप, बहनों की तड़प घटना के बाद घर में मातम का माहौल है। मां रीता बार-बार बेहोश हो रही थीं। वह बेटे की किताबों और कपड़ों को सीने से लगाकर फूट-फूटकर रोती रहीं। “मेरा सहारा चला गया… अब कैसे जियूंगी,” कहते हुए उनका गला भर आता था। बहनें बार-बार भाई के कमरे की ओर देखतीं और चीख पड़तीं। पड़ोसी महिलाएं उन्हें संभालती रहीं, लेकिन हर किसी की आंखें नम थीं। मोहल्ले में शोक, हर चेहरा उदास नई बस्ती के लोग बताते हैं कि वंश किसी से ऊंची आवाज में बात नहीं करता था। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर कोई उसे पसंद करता था। घटना के बाद मोहल्ले की दुकानें बंद रहीं। लोग समूह में खड़े होकर बस यही कहते रहे—“अगर किसी को पता होता कि वह इतना परेशान है, तो शायद बचाया जा सकता था।” मां और बहनों की हालत देख हर कोई सहमा हुआ है। जिस घर में कल तक पढ़ाई और मेहनत की बातें होती थीं, वहां आज सिर्फ सिसकियों की आवाजें हैं।


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