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इंदौर के डॉक्टरों ने बचाई उज्बेकिस्तान की महिला की जान:फेफड़े का 40% खराब हिस्सा निकाला; नई जिंदगी मिली तो नाचते-गाते वापस अपने देश लौटीं

उज्बेकिस्तान की एक 70 वर्षीय महिला डेढ़ साल से सांस लेने की तकलीफ से गुजर रही थी। स्थिति काफी नाजुक थी। वहां एडवांस सर्जरी की व्यवस्था नहीं होने के चलते उन्हें इंदौर भेजा गया। यहां हाल ही में उनकी सर्जरी हुई। यह सर्जरी काफी जटिल थी और 5 घंटे तक चली। डॉक्टरों ने ट्यूमर को फेफड़े सहित पहले बाहर निकाला। फिर उसमें से ट्यूमर और फेफड़े का 40% खराब हिस्सा अलग कर 60% स्वस्थ फेफड़ा फिर से सांस की नली से जोड़ दिया। सर्जरी के बाद तेजी से रिकवरी होने लगी। छह दिन बाद बुजुर्ग विदेशी महिला डिस्चार्ज होकर हॉस्पिटल से नाचते-गाते अपने देश रवाना हो गई। दरअसल, अल्ला सिमरोनोवा को उज्बेकिस्तान के टिब्ब हेल्थ केयर एंड नेफ्रो मेडिकेयर के डायरेक्टर डॉ. फरीद खान (नेफ्रोलॉजिस्ट) ने इंदौर के चोइथराम हॉस्पिटल में रेफर किया था। इसके लिए वहां के लोकल को-ऑर्डिनेटर परवेज खान ने भारत और उज्बेकिस्तान के बीच मेडिकल वीजा सहित अन्य दस्तावेजी प्रक्रिया कराई और उन्हें लेकर इंदौर आ गए। लेप्रोस्कोपिक जांच में पता चली घातकता
इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. गौरव गुप्ता ने बताया कि लेप्रोस्कोपिक जांच में पता चला कि उनके बाएं फेफड़े में बड़ा ट्यूमर था। यह ऐसा ट्यूमर था, जो तेजी से बढ़ रहा था। इस तरह के ट्यूमर को सर्जरी कर निकालना ही पर्याप्त नहीं होता। इसके लिए उसका एक-एक अंश निकालना पड़ता है, नहीं तो यह फिर से विकसित हो जाता है। इस महिला को टिपिकल तरह का ट्यूमर था। इससे एक फेफड़े की सांस की नली बंद हो गई थी, जिससे उन्हें सांस लेने में काफी तकलीफ हो रही थी। यह सबसे क्रिटिकल रेस्पिरेटरी कंडीशन थी, जिसमें तुरंत ऑपरेट करना जरूरी था। महिला की सहमति के बाद 18 दिसंबर को सर्जरी की गई। 5 घंटे चली सर्जरी, ब्लीडिंग का था जोखिम
मिनिमल इन्वेसिव जीआईएल लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ. संदीप राठौर ने बताया कि सर्जरी पांच घंटे चली। ऐसी सर्जरी में ब्लीडिंग ज्यादा होती है, जिससे स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। हार्ट और फेफड़े आपस में कनेक्ट रहते हैं, इसलिए एक छोटी सी नस से भी ब्लीडिंग होने का जोखिम रहता है। हमने सर्जरी काफी सावधानी से की और ब्लीडिंग को कंट्रोल किया। इससे ब्लीडिंग काफी कम हुई। चैलेंज यह था कि फेफड़ा ट्यूमर के साथ निकालना था और फिर पूरे ट्यूमर को अलग करना था। इसके आसपास मौजूद लिम्फ नोड (Lymph Node), जिन्हें ड्रेनेज या गठानें कहा जाता है, उन्हें भी निकालना जरूरी था। साथ ही फेफड़े का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा बचाना भी चुनौती थी। दरअसल, यह पेशेंट की पोस्ट-ऑप रिकवरी के लिए बेहतर होता है। इसके लिए पहले पूरे ट्यूमर को ब्रोंकाई के साथ निकाला गया। फिर बचे हुए आधे फेफड़े को दोबारा अंदर फेफड़े से कनेक्ट किया गया। कुल मिलाकर पहले ट्यूमर के साथ पूरे फेफड़े को निकाला गया और फिर उसे जोड़ा गया। अगर सर्जरी नहीं की जाती तो ट्यूमर तेजी से फैलता। ऐसे में अगर ट्यूमर शरीर के अंदर दूसरे ऑर्गन्स के पास मूव करता, तो मरीज की जान का खतरा और बढ़ जाता। मध्य क्षेत्र में इस तरह की पहली सर्जरी
देश में इस तरह की सर्जरी हैदराबाद, बेंगलुरु, दिल्ली और मुंबई में होती है। इंदौर में हुई यह सर्जरी मध्य क्षेत्र की पहली ऐसी सर्जरी है। इसमें खास बात यह रही कि मरीज 70 वर्षीय बुजुर्ग और विदेशी नागरिक थी। वहां के डॉक्टरों और इस मरीज ने भारत के इलाज पर विश्वास जताया और इंदौर में यह सर्जरी कराई। उज्बेकिस्तान का मेडिकल साइंस अलग
महिला के को-ऑर्डिनेटर परवेज खान ने बताया कि वह डेढ़ साल से सांस लेने की तकलीफ से जूझ रही थी। इंदौर में सर्जरी कराने को लेकर स्थिति स्पष्ट होने के बाद भारत और उज्बेकिस्तान के बीच समन्वय कर मरीज को लाया गया। इसके लिए मेडिकल वीजा सहित अन्य दस्तावेजी प्रक्रिया की गई। इंडिगो की फ्लाइट की करनी पड़ी व्यवस्था
चोइथराम अस्पताल के डिप्टी डायरेक्टर अनिल कुमार लखानी ने बताया कि जिस दिन सर्जरी के लिए डॉ. मंजूनाथ बाले को इंदौर आना था, उस दौरान बमुश्किल इंडिगो की फ्लाइट की व्यवस्था हो पाई। हालांकि पूरी टीम के प्रयासों से मरीज की सफल सर्जरी हुई। वह 24 दिसंबर को डिस्चार्ज होकर रवाना हो गई। विदेशी महिला को इस टीम ने दिया नया जीवन
यह सर्जरी डॉ. सुनील चांदीवाल (डायरेक्टर) के नेतृत्व में हैदराबाद के डॉ. मंजूनाथ बाले (रोबोटिक एंड मिनिमली इनवेसिव थोरेसिक सर्जन), अस्पताल के डॉ. गौरव गुप्ता (इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजिस्ट), डॉ. संदीप राठौर (मिनिमल इनवेसिव जीआईएल लेप्रोस्कोपिक सर्जन), डॉ. राजेश पाटीदार (मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट), डॉ. राजेंद्र आंजने (रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट) और डॉ. दीपक खेतान की टीम ने की। यह सर्जरी पांच घंटे तक चली।


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