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कब्जा सौंपे बिना लीज़ रेंट नहीं वसूलें नोएडा : हाईकोर्ट:ऐसे मामलों में आवंटी को ‘ज़ीरो पीरियड’ का लाभ दिया जाना चाहिए

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (नोएडा) उस भूमि पर लीज़ रेंट वसूलने का अधिकार नहीं रखती, जिसका वास्तविक कब्जा अभी तक आवंटी को नहीं दिया गया। अदालत ने कहा कि बिना कब्जा सौंपे लीज़ रेंट की मांग करना कानूनन सही नहीं है। ऐसे मामलों में आवंटी को ‘ज़ीरो पीरियड’ का लाभ दिया जाना चाहिए। जस्टिस प्रकाश पडिया ने आलूर डेवलपर प्राइवेट लिमिटेड बनाम राज्य सरकार व अन्य मामले में यह टिप्पणी की। कोर्ट ने अपने पूर्व के फैसलों के साथ-साथ दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए यह सिद्धांत दोहराया कि जब तक कब्जा प्रमाणपत्र जारी नहीं होता, तब तक लीज़ रेंट देय नहीं हो सकता। मामले के अनुसार याची के पूर्ववर्ती हितधारक को सेक्टर – 94, नोएडा में भूमि आवंटित की गई थी। बाद में प्राधिकरण द्वारा क्षेत्रफल घटाया गया, प्रीमियम का भुगतान हुआ और लीज़ डीड निष्पादित की गई। सुधार विलेख के माध्यम से प्लॉट को दो हिस्सों में बांटा गया, जिनमें से एक प्लॉट याचिकाकर्ता को हस्तांतरित किया गया। इसके बावजूद नोएडा ने कब्जा प्रमाणपत्र जारी नहीं किया। नोएडा ने वर्ष 2010 में बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट में परिवर्तन के नाम पर याचिकाकर्ता से सात करोड़ रुपये से अधिक की मांग की, जिसे जमा कर दिया गया। इसके बाद अतिरिक्त एफ ए आर के लिए भी भारी भरकम की मांग उठाई गई। हालांकि अंततः वर्ष 2023 में आवेदन खारिज कर दिया गया। इसी बीच लीज़ रेंट न चुकाने के आधार पर नोएडा ने आवंटन रद्द कर दिया, जबकि याचिकाकर्ता का कहना था कि उसे कब्जा ही नहीं दिया गया। कोर्ट ने पाया कि लीज़ की शर्त संख्या-3 के तहत कब्जा प्रमाणपत्र अलग से जारी किया जाना था, जो कभी दिया ही नहीं गया। ऐसे में नोएडा को दोहरे मानदंड अपनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अदालत ने कहा कि जब वैध कब्जा न तो पूर्व आवंटी को मिला और न ही याचिकाकर्ता को, तो इस अवधि को ‘ज़ीरो पीरियड’ माना जाएगा और लीज़ रेंट की मांग अवैध है। अदालत ने अपने पूर्व के डिवीजन बेंच के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि केवल शेयरहोल्डिंग में बदलाव होने से सीआईसी ( चेंज इन कांस्टिट्यूशन) शुल्क नहीं लगाया जा सकता, जब तक कंपनी की कानूनी पहचान में कोई परिवर्तन न हो। कोर्ट ने नोएडा द्वारा लगभग 7.38 करोड़ रुपये की राशि रोके जाने को अवैध, अनुचित और अवमाननापूर्ण बताया। अदालत ने नोएडा को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को सीआईसी के रूप में वसूली गई पूरी राशि 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित वापस करे। साथ ही लीज़ रेंट की अवैध मांग को रद्द करते हुए याचिका स्वीकार कर ली गई। इस फैसले से नोएडा क्षेत्र के उन कई आवंटियों को राहत मिलने की उम्मीद है, जिन्हें कब्जा दिए बिना वर्षों तक लीज़ रेंट और अन्य शुल्कों का सामना करना पड़ा है।


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