पीलीभीत के पूरनपुर से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रदेश अध्यक्ष हाफिज नूर अहमद अजहरी ने बिहार के राज्यपाल के हालिया बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है। शुक्रवार को जारी एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा कि धार्मिक ग्रंथों और रंगों को राजनीति से जोड़ना समाज के लिए उचित नहीं है और इससे सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचता है। हाफिज नूर अहमद अजहरी ने संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों से पद की गरिमा बनाए रखने की अपील करते हुए कहा कि यह समझ से परे है कि उच्च पदों पर पहुंचने के बाद कुछ लोग कुरान, हदीस और उलमाओं को राजनीतिक निशाना क्यों बनाते हैं। उन्होंने कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को अपने काम और विकास से पहचान बनानी चाहिए, न कि राजनीति चमकाने के लिए धार्मिक ग्रंथों का सहारा लेना चाहिए। अल्लाह की कुदरत के रूप में अनेक रंगों का उल्लेख राज्यपाल के बयान का तथ्यात्मक जवाब देते हुए अजहरी ने स्पष्ट किया कि कुरान अल्लाह का कलाम है और उसमें अल्लाह की कुदरत के रूप में अनेक रंगों का उल्लेख मिलता है। उन्होंने बताया कि कुरान में हरा, लाल, नीला, काला और पीला जैसे कई रंगों को अल्लाह की निशानियों के रूप में वर्णित किया गया है। रंगों को लेकर विवाद खड़ा करना अज्ञानता का परिचायक है, क्योंकि रंग किसी एक व्यक्ति या समुदाय की संपत्ति नहीं, बल्कि पूरी सृष्टि के लिए हैं। उन्होंने रंगों की सांस्कृतिक और धार्मिक व्याख्या करते हुए कहा कि जिस रंग को कुछ लोग ‘भगवा’ कहकर विवाद से जोड़ रहे हैं, उसे सूफी परंपरा में ‘चिश्तिया रंग’ कहा जाता है। अजमेर शरीफ में ख्वाजा गरीब नवाज के मुरीद इसी रंग का रुमाल पहनते हैं, जबकि देवा शरीफ में इसे ‘वारसी रंग’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें ‘भगवा’ शब्द से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इसके आधार पर कुरान की गलत व्याख्या स्वीकार नहीं की जाएगी। अंत में हाफिज नूर अहमद अजहरी ने सभी राजनीतिक दलों और संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों से अपील की कि वे धार्मिक ग्रंथों को राजनीतिक बहस का विषय न बनाएं और समाज में सौहार्द बनाए रखने की दिशा में जिम्मेदारी निभाएं।
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