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हरियाणवी ने अमेरिका की सबसे ऊंची चोटी फतह की,VIDEO:हाड़ गला देने वाली ठंड में 5,636 मीटर चढ़ फहराया तिरंगा, नरेंद्र बोले-अब टारगेट एवरेस्ट

हरियाणा के हिसार के हाई-एल्टिट्यूड क्लाइंबर नरेंद्र कुमार के नेतृत्व में भारतीय पर्वतारोहियों के एक दल ने ग्लोबल लेवल पर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। नरेंद्र की टीम ने दिसंबर 2025 में मेक्सिको की सबसे ऊंची चोटी पिको डी ओरिजाबा पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की। इसे उत्तरी अमेरिका का सबसे ऊंचा ज्वालामुखी भी माना जाता है। यहां हालात ऐसे होते है कि ऑक्सीजन लेवल काफी कम होता है, साथ ही शरीर को जमा देने वाली अत्यधिक ठंड और बर्फीला तूफान पर्वतारोहियों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण रहता है। इस चढ़ाई में शरीर के साथ-साथ दिमाग की भी कड़ी परीक्षा होती है। अभियान के बाद नरेंद्र कुमार ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि यह उपलब्धि पूरी टीम के सामूहिक प्रयास का नतीजा है। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि उनका अगला लक्ष्य और भी कठिन होने वाला है। वे सर्दियों में माउंट एवरेस्ट बेस कैंप तक चढ़ाई करने की योजना बना रहे हैं। पिको डी ओरिजाबा के बारे में 2 पॉइंट में जानिए… ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी और बर्फीला तूफान बड़ी चुनौती
नरेंद्र कुमार के मुताबिक, 5,636 मीटर यानी 18,491 फीट की ऊंचाई पर स्थित पिको डी ओरिजाबा पर्वतारोहियों के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। यहां की ठंडी तेज हवा, बर्फ से ढकी सतह और अचानक बदलने वाला मौसम हर कदम पर चुनौती खड़ी करता है। उन्होंने ने अपनी यात्रा को “कदम दर कदम, सांस दर सांस” बताया, जिससे साफ है कि इस चढ़ाई में शरीर के साथ-साथ दिमाग की भी कड़ी परीक्षा हुई। ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी और ठंडे तापमान ने हालात को और कठिन बना दिया। पिएद्रा ग्रांडे रिफ्यूज से जमापा ग्लेशियर रूट के जरिए चढ़ाई शुरू
नरेंद्र कुमार ने बताया कि उनके दल ने पिएद्रा ग्रांडे रिफ्यूज से जमापा ग्लेशियर रूट के जरिए चढ़ाई शुरू की। यह रास्ता आमतौर पर सात से आठ घंटे में पूरा होता है और इसे पार करने के लिए तकनीकी कौशल बेहद जरूरी है। इस रूट पर क्रैम्पोन और आइस एक्स का इस्तेमाल जरूरी होता है, क्योंकि फिसलन भरी चट्टानें, ग्लेशियर और ताजा बर्फ हर पल खतरा पैदा करती है। नरेंद्र कुमार के मुताबिक, जमा देने वाली ठंड के बावजूद टीम के आपसी तालमेल और अनुशासन ने इस चढ़ाई को सुरक्षित और सफल बना दिया। दुनिया में पिको डी ओरिज़ाबा की अहमियत
पिको डी ओरिजाबा को पर्वतारोहण की दुनिया में खास स्थान हासिल है। इसे अक्सर वोल्कैनिक सेवन समिट्स की तैयारी करने वाले पर्वतारोहियों के लिए ट्रेनिंग ग्राउंड माना जाता है। भले ही यह कुछ हिमालयी चोटियों जितना तकनीकी न हो, लेकिन इसकी ऊंचाई और परिस्थितियां इसे सहनशक्ति और अनुकूलन क्षमता परखने के लिए आदर्श बनाती हैं। रेवाड़ी के नरेंद्र यादव लहरा चुके यूरोप की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा
हरियाणा के पर्वतारोही नरेंद्र यादव ने 15 अगस्त को यूरोप की सबसे ऊंची माउंट एल्ब्रुस की चोटी पर तिरंगा फहराया था। चोटी पर पहुंचते ही जय श्रीराम और भारत माता का जयघोष किया था। साथ ही नशा मुक्ति का संदेश दिया। रूस में स्थित इस चोटी पर यह उनकी तीसरी चढ़ाई थी। वह इस पर सबसे ज्यादा चढ़ाई करने वाले पहले भारतीय बन गए थे। यह काकेशस पर्वत श्रेणी में आता है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 18,150 फीट है। यूरोप और एशिया की सीमा पर स्थित है, लेकिन एल्ब्रुस का पश्चिमी हिस्सा भौगोलिक रूप से यूरोप में गिना जाता है। इस कारण से यह यूरोप का सबसे ऊंचा पर्वत माना जाता है। अभियान को लीड करने के लिए 30 वर्षीय नरेंद्र यादव ने जिस 12 सदस्यीय दल का नेतृत्व किया, उसमें नेपाल, स्वीडन, रूस, बंगलादेश, ऑस्ट्रेलिया और चिली के पर्वतारोही शामिल रहे थे। —————— ये खबर भी पढ़ें
यूरोप की सबसे ऊंची चोटी पर गूंजा जय श्रीराम:हरियाणवी ने फहराया तिरंगा, माइनस 30 डिग्री तापमान, हाड़ गलाती ठंड और बर्फीली हवाएं झेली हरियाणा के पर्वतारोही नरेंद्र यादव ने 15 अगस्त को सुबह सवा 9 बजे यूरोप की सबसे ऊंची माउंट एल्ब्रुस की चोटी पर तिरंगा फहराया था। पर्वतारोहण व साहसिक क्षेत्र में 23 रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज करा चुके रेवाड़ी के गांव नेहरूगढ़ के नरेंद्र इस अभियान को लीड करने के लिए 6 अगस्त को भारत से रूस रवाना हुए थे। (पूरी खबर पढ़ें)


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