ऐतिहासिक नालंदा विश्वविद्यालय ने जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए शुद्ध शून्य उत्सर्जन रणनीति पर कार्यकारी प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम का शुभारंभ किया है। इस अभिनव पाठ्यक्रम के पहले सत्र में देश के विभिन्न हिस्सों से आए 60 से अधिक पेशेवरों ने भागीदारी की है, जो इस क्षेत्र में बढ़ती जागरूकता और गंभीरता का प्रमाण है। वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच यह पाठ्यक्रम विशेष महत्व रखता है। भारत सरकार द्वारा 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित करने के बाद, इस तरह के विशेषज्ञ प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता और भी बढ़ गई है। नालंदा विश्वविद्यालय का यह प्रयास न केवल शैक्षणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति में भी सहायक सिद्ध होगा। जानें, कोर्स की क्या विशेषताएं हैं इस विशेष कार्यक्रम में प्रतिभागियों को कार्बन उत्सर्जन को शून्य स्तर पर लाने की प्रक्रिया, जलवायु प्रशासन, सतत वित्त पोषण और मूल नीतिगत ढांचों की व्यापक समझ प्रदान की जा रही है। पाठ्यक्रम की संरचना इस प्रकार तैयार की गई है कि प्रतिभागी सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक कौशल भी अर्जित कर सकें। विश्वविद्यालय प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि यह पाठ्यक्रम जलवायु परिवर्तन जैसी समकालीन वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए पेशेवरों को रणनीतिक दृष्टिकोण और व्यावहारिक समाधान प्रदान करेगा। इसमें शामिल विषय केवल पर्यावरण संरक्षण तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आर्थिक विकास और पर्यावरण संतुलन के बीच समन्वय स्थापित करने पर भी जोर दिया जा रहा है। पाठ्यक्रम में शामिल 60 से अधिक पेशेवर विभिन्न क्षेत्रों से संबंध रखते हैं। इनमें सरकारी अधिकारी, कॉर्पोरेट जगत के प्रतिनिधि, शोधार्थी, पर्यावरण सलाहकार और नीति निर्माण से जुड़े विशेषज्ञ शामिल हैं। यह विविधता पाठ्यक्रम को और अधिक समृद्ध बनाती है, क्योंकि विभिन्न दृष्टिकोणों और अनुभवों का आदान-प्रदान सीखने की प्रक्रिया को गहन बनाता है। नालंदा की विरासत और आधुनिक शिक्षा प्राचीन काल में ज्ञान का प्रमुख केंद्र रहे नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्जीवित स्वरूप आधुनिक युग की चुनौतियों के समाधान में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। जलवायु परिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण विषय पर केंद्रित यह पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वह न केवल अतीत की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाए, बल्कि भविष्य की चुनौतियों के लिए भी नेतृत्व प्रदान करे।
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