राजस्थान सहित पूरे देश में अरावली बचाने की मुहिम चल रही है। मुहिम की शुरुआत हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की नई परिभाषा को मंजूरी दे दी। इस परिभाषा के अनुसार 100 मीटर या इससे ऊंची पहाड़ी को ही अरावली माना जाएगा। चिंताजनक ये है कि 2010 की फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया रिपोर्ट के मुताबिक करीब 12 हजार पहाड़ियों में करीब 8% ही 100 मीटर से ऊंची हैं। कांग्रेस इस मुद्दे पर लगातार केंद्र सरकार को घेर रही है। केंद्र सरकार और बीजेपी का दावा है कि यह परिभाषा पहले से ज्यादा सख्त है। इस फैसले का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले अरावली के सभी इलाके खनन के लिए खोल दिए जाएंगे। पूरे मामले में कई सवाल उठ रहे हैं… भास्कर ने अरावली रिसर्चर प्रो. एम.के. पंडित एवं अन्य एक्सपट्र्स से बात कर इन सवालों के जवाब जाने… भास्कर : अरावली में दशकों से अवैध खनन क्यों होता रहा? माफिया किस बात का फायदा उठाते रहे? एक्सपर्ट : दशकों से अरावली में अवैध खनन का मुद्दा बना हुआ है। खनन माफिया इन स्थितियों का फायदा उठाते रहे हैं… भास्कर : सुप्रीम कोर्ट ने अरावली खनन मामले में कब और क्यों दखल किया?
एक्सपर्ट : 1992 में एक्टिविस्ट एमसी मेहता दिल्ली में अरावली के अवैध खनन के विरोध में सुप्रीम कोर्ट गए। कोर्ट ने माना कि कोई स्पष्ट फाॅर्मूला नहीं होने का फायदा माफिया उठा रहे हैं। 1996 में दिल्ली में अरावली इलाके में अवैध निर्माण पर और 2002 में दिल्ली एनसीआर में खनन पर पूरी तरह से रोक लगाई गई थी। 2009 में अरावली स्थित सभी जिलों में खनन पर पाबंदी लगा दी गई। राजस्थान व हरियाणा के अवैध खनन माफिया पर कार्रवाई के लिए कहा गया। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बीच-बीच में कई आदेश दिए। अरावली में खनन को लेकर सही फॉर्मूला तय करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के तहत मार्च 2024 में एक समिति गठित करने के आदेश दिए। मई 2024 में केंद्रीय सशक्त समिति (सीईसी) का गठन किया गया। इस समिति में केंद्र और राज्यों के वन एवं पर्यावरण सचिव, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) के प्रतिनिधि शामिल रहे। इस समिति ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट दी। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के तहत बनी समिति की सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को स्वीकार किया और इस परिभाषा को मान्यता दे दी है। भास्कर : सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में 100 मीटर की ऊंचाई को ही क्यों लिया?
एक्सपर्ट : पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के तहत बनी समिति की सिफारिशों में बताया गया है कि किसी पहाड़ी को अरावली का हिस्सा तभी माना जाएगा, जब उसकी ऊंचाई 100 मीटर या उससे अधिक होगी। इसके अलावा कमेटी ने सिफारिशों में कहा है… सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं सिफारिशों को माना है। 100 मीटर वाला फॉर्मूला राजस्थान सरकार द्वारा 2003 में खनन नीतियों के लिए अपनाया गया था, ताकि कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों (100 मीटर से कम) पर खनन की अनुमति मिल सके, लेकिन विवाद लगातार चलता ही रहा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बनी समिति ने भी 100 मीटर का फाॅर्मूला माना, फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी सिद्धांत को माना है। एक्सपट्र्स का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक बैलेंस निर्णय दिया है। कोर्ट की मंशा है कि अरावली का संरक्षण भी हो जाए और विशेष परिस्थितियों में खनन की स्वीकृतियां भी दी जाएं। भास्कर : 100 मीटर का फाॅर्मूला क्या पहाड़ की सीधी ऊंचाई (बिल्कुल खड़ा हिस्सा) के लिए माना जाएगा या चोटी से चारों ओर की ढलान इसमें शामिल होंगी?
एक्सपर्ट : पहाड़ की पूरी और सभी संरचनाएं दायरे में आएंगी। जब पहाड़ की ऊंचाई की बात होती है तो इसका मतलब केवल चोटी की खड़ी ऊंचाई वाले पॉइंट (शिखर) से नहीं होता। पहाड़ की ऊंचाई में शिखर (चोटी) से लेकर जहां ढलान खत्म हुई है, सारा पहाड़ इसमें शामिल होता है। पहाड़ की ऊंचाई में सभी तरह की ढलानें शामिल रहती हैं, चाहे सीधी हों या झुकी हुईं। भास्कर : सरकार का तर्क कितना उचित है कि 100 मीटर या इससे अधिक ऊंचे दो पहाड़ों के बीच सभी तरह की छोटी पहाड़ियों पर भी 100 मीटर वाले ही नियम लागू होंगे, चाहे दूरी आधा किलोमीटर ही क्यों न हो?
एक्सपर्ट : सरकार का ये तर्क बिल्कुल सही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मकसद भी यही है। नई परिभाषा में अरावली श्रेणी को भी साफ किया गया है। इसमें कहा गया है कि अगर दो या उससे ज्यादा 100 मीटर वाली अरावली पहाड़ियां एक-दूसरे से पांच सौ मीटर के अंदर हैं, तो उन्हें अलग-अलग नहीं माना जाएगा। बीच की सभी पहाड़ियों को एक अरावली श्रेणी माना जाएगा। मतलब साफ है कि इन पहाड़ियों के बीच की जमीन, छोटे टीले और घाटियां भी उसी श्रेणी का हिस्सा होंगी। इससे ये तस्वीर साफ है कि ऐसी पहाड़ियों के बीच खनन या निर्माण नहीं हो सकेगा और पूरा क्षेत्र सुरक्षित रहेगा। भास्कर : पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह रहे हैं कि ऊंचाई वाला फाॅर्मूला आने के बाद अरावली की छोटी पहाड़ियां खनन से नष्ट हो जाएंगी?
एक्सपर्ट : पहली बात तो यह कि आमजन के बीच अरावली को लेकर जो आशंका है, वह निराधार नहीं कही जा सकती। चाहे कोई व्यक्ति कम पढ़ा लिखा हो या ज्यादा, सभी को यह मालूम है कि अरावली राजस्थान के लिए जीवनदायिनी है। अरावली से राजस्थान को बहुत फायदा है। बड़ा खतरा लीगल खनन से नहीं है, बल्कि अवैध खनन से है। एफएसआई के आंतरिक आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में कुल 12,081 पहाड़ी ढलान वाले क्षेत्र हैं, जिनकी ऊंचाई 20 मीटर से ऊपर है। उनमें से केवल 1,048 पहाड़ियां ही 100 मीटर से अधिक ऊंची हैं। लगभग 8.7 प्रतिशत ही मानदंड पूरा करती हैं। अब सवाल यह है कि आमजन के बीच आशंकाएं कैसे पैदा हुईं? आसानी से समझा जा सकता है कि हमारे आस-पास या छोटे बड़े रास्तों पर हमने खत्म होती हुई पहाड़ियां देखी हैं। खनन माफिया के चलते बची कुची पहाड़ी दिखती है, तो कहीं पहाड़ियां खत्म कर दी गई हैं। इन सभी नजारों से मन में एक पर्सेप्शन बनता है कि यदि खनन होने लगेगा, तो सभी पहाड़ियां खत्म हो जाएंगी। सरकार को आमजन की आशंकाओं को देखते हुए अवैध खनन पर लगाम कसनी होगी, जिससे लोगों के बीच भरोसा कायम किया जा सके। इससे ही अरावली का संरक्षण हो सकेगा। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने अरावली के लिए एक सतत खनन प्रबंधन योजना (Sustainable Mining Management Plan – MPSM) बनाने का निर्देश दिया है, जिसके तैयार होने तक नई खनन लीज पर रोक रहेगी। सरकार को इस प्लान में साफ बताना होगा कि अरावली का संरक्षण कैसे होगा। खनन आदि की प्रक्रिया उसके बाद ही होगी। भास्कर : केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव का एक तर्क और है कि अरावली में इतने सारे रिजर्व क्षेत्र (वन क्षेत्र, वाइल्ड लाइफ सेंक्चुअरी, नेशनल पार्क, ईको सेंसिटिव जोन आदि) हैं कि खनन हो ही नहीं सकता? एक्सपर्ट : इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से परे देखें तो जब सुप्रीम कोर्ट का निर्णय लागू नहीं था, तब भी वन क्षेत्र या अन्य रिजर्व क्षेत्रों में खनन नहीं हो रहा था। रिजर्व क्षेत्र में किसी भी तरह के खनन पर रोक होती है तो जाहिर है कि स्वीकृति नहीं मिल सकती। हां, अवैध खनन की बात अलग है। रिजर्व क्षेत्रों में भी एक बफर जोन (सेंक्चुअरी या नेशनल पार्क के बाहर के क्षेत्र का एक दायरा) होता है। इस बफर जोन में भी खनन नहीं हो सकता। लीगली खनन के लिए काफी तरह की शर्तें होती हैं। सरकार खनन के क्षेत्र को चिन्हित करती है। खनन वहीं हो सकता है, जहां खनिज हों। संपूर्ण अरावली क्षेत्र खनन योग्य नहीं है। साफ है कि सरकार का तर्क काफी हद तक उचित लगता है कि अरावली के अधिकांश क्षेत्र में खनन नहीं हो सकता। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि जब तक साइंटिस्ट अपना प्लान नहीं बना लेते हैं, तब तक अरावली में कोई नई खनन लीज नहीं दी जाएगी। कुल 1.44 लाख वर्ग किमी अरावली में सिर्फ 0.19% हिस्सा ही खनन के लायक है। भास्कर : क्या 100 मीटर वाले सिद्धांत से अवैध खनन को और हवा मिल सकती है? एक्सपर्ट : अरावली के लिए सबसे बड़ा खतरा है अवैध खनन। इस पर कोई नियंत्रण नहीं है। वैध खनन की बात करें तो ये एक तकनीकी प्रक्रिया है, जिसमें सरकार खनिज का अध्ययन करती है और ब्लॉक्स तय कर देती है। फिर प्राइवेट या सरकारी एजेंसी खनन करने से पहले कई प्रक्रियाओं से गुजरते हैं। अवैध खनन में ऐसा कुछ नहीं है। जब तक अवैध खनन पर रोक नहीं लगाई जाएगी, तो अरावली की रक्षा की कितनी बात कर लें, बेमानी रहेगी। भास्कर : सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने के बाद सरकार का अगला कदम क्या होगा? एक्सपर्ट : सुप्रीम कोर्ट ने 100 मीटर ऊंची पहाड़ी को लेकर जो कहा है, उससे साफ है कि संबंधित पहाड़ियों पर किसी भी तरह का खनन संभव नहीं होगा। सरकार भविष्य में ऐसी पहाड़ियों पर खनन की अनुमति नहीं दे सकेगी। सुप्रीम कोर्ट की दी गई गाइडलाइन के अनुसार केंद्र और राजस्थान सहित अरावली वाले राज्यों की सरकारों को एक प्लान तैयार करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अरावली के लिए एक सतत खनन प्रबंधन योजना (Sustainable Mining Management Plan – MPSM) बनाने का निर्देश दिया है। सरकार को इस प्लान में साफ बताना होगा कि अरावली का संरक्षण कैसे होगा। खनन आदि की प्रक्रिया उसके बाद ही होगी। इसके अलावा बचे क्षेत्र में (100 मीटर से कम ऊंचाईवाले) अनुमति तभी दी जाएगी जब केंद्र और राज्य सरकार एक विस्तृत प्लान तैयार करेंगे। प्लान में प्राकृतिक वातावरण के संरक्षण बनाए रखने पर ही फोकस होगा। प्लान तैयार करने से पहले अरावली में खनन की अनुमति नहीं दी जाएगी। भास्कर – राजस्थान के पर्यावरण और हम लोगों के लिए अरावली कितनी जरूरी है? एक्सपर्ट : अरावली राजस्थान के लिए जल, जलवायु और पर्यावरण संतुलन की रीढ़ है। यदि अरावली नहीं होती, तो…
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