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उपेंद्र कुशवाहा और उनके विधायकों में बातचीत बंद:पटना छोड़ दिल्ली गए MLA, बोले- जब बात नहीं तब भात कैसे खाएंगे, उन्होंने आत्मघाती फैसला लिए हैं

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा को खड़ा रखने में सफल रहे उपेंद्र कुशवाहा एक महीने भी अपनी पार्टी को नहीं संभाल पाए। उनकी पार्टी एक बार फिर टूट के मुहाने पर खड़ी है। कारण है बिना चुनाव लड़े अपने बेटे को मंत्री बनाकर पॉलिटिक्स में लॉन्च करना। चुनाव जीतकर आए उनके 4 में से 3 विधायक ने बगावत की पूरी तैयारी कर ली है। कभी भी वे उपेंद्र कुशवाहा का साथ छोड़कर दूसरी पार्टी का दामन थाम सकते हैं। चौथी विधायक कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता हैं। विधायकों की नाराजगी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि 15 दिनों से उपेंद्र कुशवाहा और इनके विधायकों के बीच बातचीत बंद है। भास्कर के स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए, विधायक टूटेंगे तो क्या होगा? किस पार्टी में जा सकते हैं? इसका पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की सियासत पर क्या असर पड़ सकता है? सबसे पहले समझिए, बगावत की चर्चा क्यों दरअसल, लोकसभा का शीतकालीन सत्र समाप्त होने के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने पटना में अपने आवास पर बुधवार शाम को लिट्टी-पार्टी का आयोजन किया था। पार्टी में उन्होंने अपने तीनों विधायकों को भी आमंत्रित किया। सभी विधायक पटना में थे, लेकिन पार्टी शुरू होने के चंद घंटे पहले विधायक माधव आनंद, रामेश्वर महतो और आलोक सिंह दिल्ली निकल गए। दिल्ली जाने से पहले इन्होंने बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन से उनके आवास पर मुलाकात की। इसके बाद से ही बगावत की चर्चा तेज हो गई है। लिट्टी पार्टी में शामिल होने के सवाल पर तीनों विधायकों की बात पढ़िए… विधायक माधव आनंद बोले- उपेंद्र कुशवाहा ने आत्मघाती कदम उठाया सवाल: आप लिट्टी पार्टी में क्यों शामिल नहीं हुए?
जवाब: लिट्टी पार्टी की जानकारी थी, लेकिन मेरी तबीयत अचानक खराब हो गई थी। इसलिए दिल्ली चला आया। बीमारी तो टाइम पूछकर नहीं आती है न। सवाल: नितिन नबीन से आपने मुलाकात की? जवाब: इस मुलाकात के कोई अलग मायने नहीं निकाले जाएं। नितिन नबीन से मेरे बहुत अच्छे रिश्ते हैं। हम दोनों एक दूसरे को काफी लंबे समय से जानते हैं। कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद वे पहली बार बिहार आए थे तो उन्हें शुभकामना देने के लिए उनके आवास पर गया था। सवाल: उपेंद्र कुशवाहा से नाराजगी की कोई बात है? जवाब: मैं पहले ही कह चुका हूं कि उपेंद्र कुशवाहा जी ने आत्मघाती कदम उठा लिया है। उन्हें अपने बेटे को मंत्री नहीं बनाना चाहिए था। मै डिजर्व करता हूं। मेरा क्वालिफिकेशन भी है। इसके बाद भी मैं पार्टी के साथ हूं। पार्टी ने मुझे विधायक दल का नेता बनाया है। विधायक रामेश्वर महतो बोले- जब बात ही नहीं तो भात कैसे खाएंगे सवाल: लिट्टी पार्टी में आप शामिल क्यों नहीं हुए? जवाब: जब बात न हो तो भात कैसे खाएंगे। मेरी नाराजगी है। मैंने 15 दिन पहले भी कहा था, लेकिन तब से लेकर अब तक किसी प्रकार की कोई बातचीत नहीं हुई है। इसलिए हम लिट्टी पार्टी में शामिल नहीं हुए। बात होगी तब न हम जाएंगे। सवाल: आपकी उपेंद्र कुशवाहा से किस बात की नाराजगी है? जवाब: उपेंद्र कुशवाहा से हम नीतीश कुमार की विचारधारा के कारण जुड़े थे। उन्होंने विरासत बचाओ यात्रा निकाली थी। कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, लेकिन घर में ही सब पद देकर कॉलेजियम सिस्टम के खिलाफ कैसी लड़ाई लड़ रहे हैं। ये पूरी तरह गलत कर रहे हैं। सवाल: क्या किसी प्लानिंग के तहत तीनों नितिन नबीन से मिले थे? जवाब: नहीं, नितिन नबीन से किसी प्लानिंग के तहत मुलाकात नहीं हुई थी। ये हमारी बस औपचारिक मुलाकात थी। हम सिर्फ उन्हें बधाई देने गए थे। सवाल: अगर बीजेपी में नहीं जाएंगे तो किस पार्टी में जाएंगे? जवाब: हम नीतीश कुमार की विचारधारा के लोग हैं, उन्हीं से प्रभावित होकर राजनीति में आए हैं। हालांकि अभी इस पर कुछ भी नहीं बोलेंगे। विधायक आलोक सिंह बोले- मुझे इन सब में मत फंसाइए सवाल: आप लिट्टी पार्टी में शामिल क्यों नहीं हुए? जवाब: हम दिल्ली आ गए थे, इसलिए पार्टी में शामिल नहीं हुए। सवाल: कुशवाहा से आपकी आखिरी बातचीत कब हुई? जवाब: मुझे लिट्टी पार्टी का इनविटेशन उनके ऑफिस से ही आया था। सवाल: क्या पार्टी के भीतर किसी तरह का कोई विवाद है? जवाब: इन सब बातों में अभी मुझे मत फंसाइए, मैं अभी इन सब सवाल पर कुछ नहीं बोल पाऊंगा। अब जानिए, आगे क्या हो सकता है? क्या टूट सकती है उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी? जिस तरह की नाराजगी उपेंद्र कुशवाहा के विधायक जता रहे हैं, अगर डैमेज कंट्रोल नहीं किया गया तो इनके टूटने के आसार ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। नियम के मुताबिक इनकी संख्या पर्याप्त है। अगर ये तीनों विधायक चाहें तो पार्टी छोड़कर दूसरे दल में जा सकते हैं। दल-बदल कानून के मुताबिक किसी पार्टी के कम-से-कम दो-तिहाई विधायक दूसरी पार्टी में जाने के पक्ष में हैं तो ऐसा कर सकते हैं। उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा में फिलहाल 4 विधायक हैं। इस हिसाब से देखें तो 3 विधायक दो तिहाई के बराबर हैं। किस पार्टी के साथ जा सकते हैं ये विधायक? रामेश्वर महतो पहले जदयू में रह चुके हैं। विधानसभा चुनाव से एक महीना पहले राष्ट्रीय लोक मोर्चा में शामिल हुए थे। पार्टी ने इन्हें सीतामढ़ी के बाजपट्‌टी से टिकट दिया और ये चुनाव जीत गए। माधव आनंद ने अपनी राजनीति लगातार उपेंद्र कुशवाहा के साथ रहकर की है। हालांकि बीजेपी के कई बड़े नेताओं के साथ इनके अच्छे संबंध हैं। आलोक सिंह के भाई संतोष सिंह बीजेपी में हैं। पिछली एनडीए सरकार में वे मंत्री रहे हैं। शाहाबाद के राजद और कांग्रेस के तीन विधायकों को बीजेपी में शामिल कराने में संतोष सिंह की अहम भूमिका रही है। इन तीनों विधायकों को पार्टी में शामिल कराने से जदयू को क्या फायदा होगा? बिहार विधानसभा में अभी बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है। इसके पास 89 विधायक हैं। जदयू दूसरे नंबर पर है। इसके पास 85 विधायक हैं। संख्या बल में जदयू बीजेपी से सिर्फ 4 कम है। बसपा विधायक का जदयू में आना तय माना जा रहा है। ऐसे में अगर ये 3 विधायक जदयू में आते हैं तो इसके विधायकों की संख्या भाजपा के बराबर हो जाएगी। क्या बीजेपी करेगी 2020 जैसा काम? RLM के विधायकों के पास भाजपा में शामिल होने का भी विकल्प है। बीजेपी इससे पहले 2022 में भी अपने सहयोगी को तोड़ चुकी है। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में मुकेश सहनी की वीआईपी एनडीए का हिस्सा थी। इनके 4 विधायक जीते थे। 2022 में भाजपा ने VIP के 3 विधायकों को तोड़कर अपने साथ जोड़ लिया। ऐसा मुकेश सहनी और भाजपा के रिश्ते बिगड़ने पर किया गया था। हालांकि उपेंद्र कुशवाहा और बीजेपी के रिश्ते फिलहाल अच्छे हैं। ऐसे में इस बात की संभावना कम दिखाई दे रही है कि भाजपा RLM को तोड़ दे। उपेंद्र कुशवाहा इस वक्त बीजेपी के कोटे से राज्यसभा सांसद हैं। बीजेपी के सपोर्ट से ही उपेंद्र कुशवाहा के बेटे दीपक प्रकाश की नीतीश कैबिनेट में एंट्री हुई है। आखिरी समय में शपथ ग्रहण से कुछ देर पहले मंत्री पद की लिस्ट में उनका नाम जोड़ा गया था। कुशवाहा की पार्टी में बगावत की वजह समझिए दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा ने चुनाव बाद आखिरी समय में मास्टर स्ट्रोक चला था। उन्होंने अपने बेटे दीपक प्रकाश को मंत्री पद की शपथ दिला दी। दीपक किसी सदन के सदस्य नहीं थे। उपेंद्र कुशवाहा पहले से राज्यसभा के सांसद हैं। राजनीति से दूर रहने वाली पत्नी को इस बार सासाराम से विधायक बनवा दिया। यही कारण है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी है। ये तय माना जा रहा था कि उनके सबसे लंबे समय तक सहयोगी रहे माधव आनंद को मंत्री बनाया जा सकता है। उन्हें मंत्री की जगह विधायक दल का नेता बनाया गया। कुशवाहा का रिकॉर्ड- 20 साल में 3 नई पार्टी बनाई, 2 बार जदयू छोड़े बिहार की सियासत में उपेंद्र कुशवाहा की पहचान एक ऐसे नेता की है जो हर चुनाव से पहले अपना पाला बदल लेते हैं। वह 17 साल में तीन बार जेडीयू छोड़ चुके हैं। दो बार अपनी नई पार्टी बनाई। एनडीए और महागठबंधन के अलावा तीसरे मोर्चे का भी प्रयोग कर चुके हैं। उपेंद्र कुशवाहा का जवाब नहीं आया भास्कर ने इस पूरे प्रकरण पर उपेंद्र कुशवाहा का भी पक्ष जानना चाहा। इसके लिए हमने उनके आधिकारिक नंबर पर फोन किया। बात करने के कारण बताए। उधर से बताया गया कि नोट कर के मैसेज उन तक पहुंचा दिया गया है, फ्री होने पर बात करेंगे। अभी तक उनका जवाब नहीं आया है, उनका जवाब आते ही हम उसे अपडेट करेंगे।


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