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जेड स्क्वायर में सजा 50 फीट का क्रिसमस ट्री:मोमबत्तियों की रोशनी और प्रार्थना से गूंजे चर्च, देखने के लिए उमड़ी भीड़

क्रिसमस के अवसर पर कानपुर के सभी प्रमुख चर्चों में रात 12 बजे कैरल गाने के साथ प्रभू यीशू का जन्म हुआ। गुरुवार सुबह से ही चर्चों में लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। लोगों ने चर्च पहुंचकर कैंडल जलाई और प्रार्थना में शामिल हुए। शहर के अशोक नगर स्थित सेंट जेवियर्स चर्च, सिविल लाइंस के मेथाडिस्ट चर्च और क्राइस्ट चर्च सहित अन्य गिरजाघरों को फूलों और रोशनी से सजाया गया है। यहां हर्षोल्लास और आध्यात्मिक उल्लास का अनोखा मिश्रण देखने को मिला। लोग न केवल प्रार्थना कर रहे, बल्कि एक-दूसरे को क्रिसमस की बधाई भी दे रहे हैं। क्रिसमस ट्री देखने उमड़ी भीड़
शहर के बड़ा चौराहा स्थित जेड स्क्वायर माल में 50 फीट ऊंचा क्रिसमस ट्री बनाया गया है, जिसको देखने के लिए लोग उमड़ रहे हैं। इसके अलावा माल में केक व सेंटा वाल भी बनाई गई। छुट्‌टी होने के चलते शहरवासी गंगा बैराज, शापिंग माल, मोतीझील, गणेश उद्यान समेत अलग अलग पिकनिक स्पॉट्स में जाकर दिन का आनंद ले रहे हैं। करीब दो दिन बाद बेहतर धूप निकलने से लोग घर से बाहर निकलकर धूप का मजा भी ले रहे हैं। यीशू के जन्म की कहानी सुनाई
क्रिसमस के मुख्य समारोह की शुरुआत देर रात हुई। रात 12:00 बजे सभी चर्चों में विशेष प्रार्थना सभा और मध्यरात्रि मास का आयोजन किया गया। इस दौरान प्रभु यीशु के जन्म की कहानी सुनाई गई, भजन गाए गए और प्रार्थनाओं के बीच शांति व खुशी की कामना की गई। मोमबत्तियों की रोशनी ने पूरे वातावरण को एक दिव्य आभा प्रदान की। भाइचारे का संदेश दिया, केक काटा
चर्चों के पादरियों ने लोगों को प्रेम, शांति और भाईचारे का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि क्रिसमस सिर्फ उत्सव ही नहीं, बल्कि दूसरों की सेवा और प्रेम बांटने का समय है। इस दौरान कई चर्चों में केक काटने और उपहार बांटने की परंपरा का भी निर्वहन किया गया। क्रिसमस को ध्यान में रखते हुए शहर के सभी चर्चों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। जेसीपी आशुतोष कुमार ने बताया कि सभी चर्चों में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है। इसके अलावा रो़ड व फुट पेट्रोलिंग भी हो रही है। ईसाइयों का सबसे बड़ा त्योहार
दुनियाभर के लोग हर साल 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाते हैं। ये ईसाइयों का सबसे बड़ा त्योहार है। इसी दिन ईसा मसीह (जीसस क्राइस्ट) का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बड़ा दिन भी कहते हैं। इस दिन के लिए चर्च को खासतौर से सजाया जाता है। क्रिसमस के पहले वाली रात में गिरजाघरों में प्रार्थना सभा की जाती है, जो रात के 12 बजे तक चलती है। क्रिसमस की शुरुआत जानिए
शुरुआत की कई सदियों तक 6 जनवरी को ईसा मसीह का जन्मदिन मनाया जाता था। अब क्रिसमस चाहे 25 दिसंबर हो या 6 जनवरी को, सच तो यह है कि बाइबल में ईसा मसीह के जन्म की किसी तारीख का जिक्र नहीं। दरअसल, शुरुआत में ईसा मसीह के जन्म दिवस को लेकर ईसाई समुदाय में मतभेद था। 360 ईस्वी के आस-पास रोम के एक चर्च में ईसा मसीह के जन्मदिन का पहली बार समारोह मनाया गया। लंबी बहस और विचार विमर्श के बाद चौथी शताब्दी में 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिवस घोषित कर दिया गया। इसके बावजूद इसे प्रचलन में आने में समय लगा। कई लोग 6 को तो कई 7 जनवरी को भी मनाते हैं क्रिसमस
1836 में अमेरिका में क्रिसमस को कानूनी मान्यता मिली और 25 दिसंबर को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया। दुनिया के कई देशों जैसे कजाकिस्तान, रूस, यूक्रेन, मिस्र में आज भी क्रिसमस 25 दिसंबर को नहीं मनाया जाता। अर्मेनियन एपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को ईसा मसीह का जन्मदिन मनाता है। वहीं रशियन ऑर्थोडॉक्स चर्च को मानने वाले 7 जनवरी को क्रिसमस मनाते हैं।


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