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अटल बिहारी की जयंती आज; हाथरस से था गहरा नाता:कवि-राजनेता के रूप में कई बार आए, 1994 में सुनाई थी कविता

आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है। उनका हाथरस से गहरा नाता रहा है। वह यहां राजनेता और कवि दोनों रूपों में आते थे, मंच से काव्यपाठ भी किया। राजनीतिक कार्यक्रमों के अलावा, 1994 में वह काका हाथरसी पुरस्कार समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए थे। इस समारोह में उन्होंने डॉ. राकेश शरद और भगवत शरण शर्मा को काका हाथरसी पुरस्कार से सम्मानित किया। तीन कविताएं सुनाई थी कार्यक्रम के दौरान श्रोताओं की फरमाइश पर अटल जी ने एक नहीं, बल्कि तीन कविताएं प्रस्तुत कीं। उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘गीत नहीं गाता हूं, बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं। टूटता तिलस्म आज सच से भय खाता हूं, गीत नया गाता हूं..’ सुनाई, जिससे सभी मंत्रमुग्ध हो गए। हाथरस प्रवास के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी को यहां की रबड़ी बेहद पसंद आई थी। वर्ष 1994 में काका हाथरसी पुरस्कार समारोह के लिए हाथरस आने पर वह पूर्व पालिकाध्यक्ष रमेशचंद्र आर्य के आवास पर ठहरे थे। भोजन में उन्हें हाथरस की रबड़ी विशेष रूप से पसंद आई थी। इससे पहले भी अटल जी अक्सर हाथरस आते रहते थे। शहर के गली भुर्जियान स्थित बांठिया हाउस में भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नियमित आना-जाना था। वह वर्ष 1964 और उसके बाद कई बार यहां आए। उनके सेठ हजारीमल बांठिया से घनिष्ठ संबंध थे, जो उस समय हाथरस में जनसंघ की कमान संभाले हुए थे। जिले के कई अन्य राजनेताओं से भी अटल जी के गहरे ताल्लुक थे।


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