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‘मां झुलस रही थी, पापा बचाने गए, लेकिन नहीं लौटे’:गयाजी में एक-दूसरे को बचाने में गई दंपती की जान, बेटे ने कहा- ये काली रात कभी नहीं भूलूंगा

गयाजी के चांकद इलाके में 12×15 फीट के तीन मंजिला मकान में मंगलवार की देर रात लगी आग ने एक दंपती की जान ले ली। गांव के लोगों की मानें तो आग लगने की घटना के बाद एक-दूसरे को बचाने में दंपती की मौत हुई। गांव के लोगों ने कहा कि अंधेरा था, अगर समय रहते लोगों को जानकारी मिल जाती या फिर समय रहते दंपती को घर के अंदर से निकाल लिया जाता तो उनकी जान बच जाती, लेकिन न तो समय से घटना की जानकारी किसी को हुई और न ही दंपती को समय से बाहर निकाला जा सका। चंद मिनट में ही आग भड़क गई और तीन मंजिला घर आग के गोले में तब्दील हो गया। घटना बिथो गांव की है। मृत दंपती की पहचान 45 साल के प्रमोद साव और उनकी पत्नी 40 साल की मधु देवी के रूप में हुई है। आखिर घर में आग कैसे लगी, दंपती के बेटे घटना के वक्त कहां थे, आस पड़ोस के लोगों ने क्या देखा? इन सवालों के जवाब जानने के लिए दैनिक भास्कर रिपोर्टर ने बुधवार सुबह पोस्टमॉर्टम कराने गयाजी सदर अस्पताल पहुंचे मृतक के परिजनों और बच्चों से बातचीत की। गांव के लोगों और मृत दंपती के पड़ोसियों की आंखों देखी। पढ़ें, पूरी रिपोर्ट। घर में सिर्फ मम्मी-पापा ही थे मृतक प्रमोद साव के छोटे बेटे 20 साल के मोनू ने बताया कि मोनू ने बताया कि घर में मेरे अलावा, एक और भाई और एक बहन है। बड़ा भाई दादी के घर रहता है जबकि बहन बुआ के यहां रहती है। घर में मां-पापा ही साथ रहते थे। पापा पत्तल और दोना बनाने का काम करते थे। पूरा काम मम्मी-पापा करते थे। मैं भी साथ में हाथ बंटाता था। लेकिन मंगलवार की रात सब कुछ खत्म हो गया। उसने बताया कि घर के ग्राउंड फ्लोर पर ही पत्तल बनाने की ऑटोमैटिक मशीन लगी थी। उसी से पूरे परिवार की रोजी-रोटी चलती थी। मंगलवार की रात भी रोज की तरह नीचे मशीन चल रही थी। मैं किसी काम से बाजार गया हुआ था। घर में सिर्फ माता-पिता ही मौजूद थे। मोनू ने बताया कि पापा को भी कुछ काम था, जब मैं जा रहा था तो उन्होंने मुझसे कहा था कि तुम जल्दी आ जाना, मुझे भी कहीं जाना है। मुझे लौटने में देर हुआ तो पापा अपने काम से निकले। जब वे जा रहे थे तो घर का दरवाजा बाहर से ही बंद कर निकले थे। पत्तल सूखे पत्तों से बनते हैं, ऐसे में आग ने चंद मिनटों में पूरे ग्राउंड फ्लोर को अपनी चपेट में ले लिया। धुआं तेजी से ऊपर फैलने लगा। मोनू ने बताया कि धुएं और आग को देखकर मां घबराकर नीचे की ओर भागीं। पूरे घर में धुआं भर चुका था। कुछ भी साफ दिखाई नहीं दे रहा था। किसी तरह मां नीचे पहुंचीं, लेकिन आग की तेज लपटें देखकर घबरा गईं। जान बचाने के लिए वे ऊपर छत की ओर सीढ़ी से भागने लगीं। इसी दौरान पहली मंजिल की सीढ़ी पर उनका पैर फिसल गया और वे गिर पड़ीं। ‘मां के गिरते ही आग ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया’ मोनू ने बताया कि मां के सीढ़ियों से गिरते ही आग ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया। इधर घर से आग और धुएं का गुबार उठता देख गांव में अफरातफरी मच गई। आग का शोर सुनते ही आसपास के लोग दौड़ पड़े। इसी बीच पापा भी मौके पर पहुंचे। मोनू ने बताया कि पापा ने आग की बिल्कुल चिंता नहीं कि और मां को बचाने के लिए बिना कुछ सोचे-समझे जलते घर में घुस गए। गांव वालों ने उन्हें रोकने की कोशिश भी की, लेकिन वह नहीं माने। अंदर पहुंचते ही पापा भी धुएं और आग की चपेट में आकर गिर पड़े। कुछ ही पलों में दोनों की जिंदगी खत्म हो गई। आग इतनी भयानक थी कि कोई दोबारा घर के अंदर जाने की हिम्मत नहीं कर पाया। प्रमोद के बड़े बेटे सोनू ने बताया कि जब गांव में आग लगने का शोर हुआ, मैं भी भागकर मौके पर पहुंचा। देखा कि लोग आग बुझाने की कोशिश कर रहे हैं। मैंने भरसक प्रयास किया, लेकिन आग काबू में नहीं आई। आग शांत होने के बाद पड़ोसियों ने किसी तरह से मां-पिता के शव को बाहर निकाला। प्रमोद के भाई विनोद बोले- सभी मदद को जुटे थे, लेकिन कुछ नहीं बचा मृतक के भाई विनोद साव ने बताया कि हम चार भाई हैं। सभी के घर अलग-अलग हैं, लेकिन एक ही टोले में पास-पास बने हुए हैं। आग लगते ही पूरा गांव मदद में जुट गया। प्रमोद के घर के दरवाजे-खिड़कियां तोड़कर मोटर पम्प लगाया गया। बाल्टियों और पाइप से पानी डाला गया, लेकिन आग इतनी भयानक थी कि किसी की एक नहीं चली। आग इतनी भयावह थी कोई पास नहीं फटक रहा था। आग इतनी भयानक कि काबू पाने में 3 घंटे लग गए विनोद ने बताया कि करीब 3 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद किसी तरह गांव वालों ने आग पर काबू पाया। तब तक भइया प्रमोद और भाभी मधु देवी की जलकर मौत हो चुकी थी। फायर ब्रिगेड को सूचना देने के सवाल पर विनोद साव ने कहा कि गांव में किसी न किसी ने जरूर कॉल किया होगा, लेकिन हमारे घर तक फायर की गाड़ी पहुंच ही नहीं सकती। संकरी गलियां हैं। बड़ी या छोटी चार पहिया गाड़ी अंदर आने का सवाल ही नहीं उठता। यही वजह रही कि गांव वालों को अपने दम पर ही आग से जूझना पड़ा। ‘एक साल पहले काम शुरू किया था, बिजनेस अच्छा चलना शुरू ही हुआ था’ विनोद ने बताया कि प्रमोद भइया ने करीब एक साल पहले ही पत्तल बनाने का काम शुरू किया था। मेहनत से काम जम रहा था। परिवार खुश था। बच्चों के भविष्य के सपने देखे जा रहे थे, लेकिन इस एक घटना ने सब कुछ उजाड़ दिया। अब घर, घर नहीं रहा और भाई-भाभी भी नहीं रहे। घर के अंदर रखे सारे सामान जल गए। अब कुछ बचा ही नहीं।


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