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चीन में कोर्ट मार्शल का वीडियो 35 साल बाद लीक:अफसर ने छात्रों पर गोली नहीं चलाने का आदेश दिया था, सरकार ने इसकी सजा दी थी

चीन में 1989 के थियानमेन स्क्वायर आंदोलन से जुड़ा एक सीक्रेट वीडियो 35 साल बाद सामने आया है। यह वीडियो पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के जनरल शू छिनशियान के कोर्ट मार्शल का है। जनरल शू बताते हैं कि उन्होंने छात्र प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने और सैन्य कार्रवाई का आदेश मानने से इनकार क्यों किया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक बाद में सरकार की कार्रवाई में हजारों लोग मारे गए थे। 6 घंटे के वीडियो में जनरल शू कहते हैं कि थियानमेन आंदोलन एक राजनीतिक जन आंदोलन था। इसे बातचीत और राजनीतिक तरीकों से सुलझाया जाना चाहिए था। उन्होंने साफ कहा कि वे इतिहास में अपराधी नहीं बनना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपने जवानों को छात्रों पर गोली चलाने का आदेश नहीं दिया। उस वक्त सरकार ने जनरल शू को बीजिंग भेजकर मार्शल लॉ लागू करने और करीब 15 हजार सैनिकों को तैनात करने का आदेश दिया था। हालांकि, उन्होंने यह आदेश मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद चीनी सरकार ने उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की। सरकार ने जनरल शू को कम्युनिस्ट पार्टी से बाहर कर दिया था, साथ ही 5 साल की सजा सुनाई। पिछले महीने ऑनलाइन लीक हुआ वीडियो जनरल शू छिनशियान के कोर्ट मार्शल का यह वीडियो पहली बार पिछले महीने ऑनलाइन लीक हुआ। इसके सोर्स की जानकारी नहीं है। इसे यूट्यूब पर 13 लाख से ज्यादा बार देखा चुका है। थियानमेन आंदोलन के इतिहासकार वू रेनहुआ ने इसे शेयर किया है। रेनहुआ कहना है कि यह वीडियो उस दौर की अंदरूनी सैन्य असहमति का सबसे अहम गवाह है। लीक वीडियो दिखाता है कि उस समय चीन की सेना के भीतर भी फैसलों को लेकर मतभेद थे। 1989 में थियानमेन स्क्वायर और उसके आसपास सेना की कार्रवाई में कई हजार लोगों के मारे जाने की आशंका जताई जाती है। यह घटना आज भी चीन में सबसे ज्यादा सेंसर किए जाने वाले मुद्दों में शामिल है। पूरा वीडियो यहां देख सकते हैं… 35 साल पहले थियानमेन स्क्वायर पर क्या हुआ था चीन की राजधानी बीजिंग का थियानमेन स्क्वायर साल 1989 में एक बड़े जनआंदोलन का केंद्र बना। यह आंदोलन छात्रों के नेतृत्व में शुरू हुआ, जो बाद में आम नागरिकों तक फैल गया। प्रदर्शनकारी सरकार से राजनीतिक सुधार, भ्रष्टाचार पर रोक और अभिव्यक्ति की आजादी की मांग कर रहे थे। आंदोलन की शुरुआत अप्रैल 1989 में सुधारवादी नेता हू याओबांग की मौत के बाद हुई। उनकी मौत की पीछे दिल का दौरा पड़ने को वजह बताया गया। हू याओबांग को राजनीतिक सुधारों का समर्थक माना जाता था। उनकी मौत के बाद छात्र बीजिंग में इकट्ठा होने लगे और सरकार से भ्रष्टाचार खत्म करने, अभिव्यक्ति की आजादी, लोकतांत्रिक सुधार जैसी मांगें करने लगे। कई छात्र सड़कों पर उतर गए। देखते ही देखते हजारों छात्र और नागरिक थियानमेन स्क्वायर में जमा हो गए। 13 मई से प्रदर्शन शुरू हो गया जो कई हफ्तों तक शांतिपूर्ण रहा। सरकार ने मॉर्शल लॉ लगाकर नरसंहार किया चीनी सरकार ने स्थिति बिगड़ती देख बीजिंग में मार्शल लॉ लागू कर दिया। 3 और 4 जून 1989 की रात पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) को राजधानी में तैनात किया गया। टैंकों और हथियारबंद सैनिकों ने थियानमेन स्क्वायर और उसके आसपास के इलाकों में प्रदर्शनकारियों और आम लोगों पर अंधाधुन गोलीबारी की। घटना के बाद एक तस्वीर दुनिया भर में वायरल हुई। एक अकेला युवक टैंकों के सामने खड़ा होकर उन्हें आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश करता है। इस व्यक्ति की पहचान आज तक सामने नहीं आई, लेकिन वह साहस और विरोध का वैश्विक प्रतीक बन गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक घटना में सिर्फ कुछ सौ लोग मारे गए। लेकिन BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना में मारे जाने वाले लोगों का आंकड़ा 10 हजार के पार था। क्यों हुई थियानमेन स्क्वायर की घटना 1980 के दशक के आखिर में चीन तेज आर्थिक बदलाव के दौर से गुजर रहा था। बाजार खुले, शहर बदले, लेकिन राजनीति वही रही। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रहे इतिहासकार एंड्रयू नाथन अपनी किताब चाइना क्राइसिस में लिखते हैं कि आर्थिक सुधारों ने उम्मीदें तो बढ़ाईं, लेकिन राजनीतिक ढांचा बंद ही रहा। यही विरोधाभास असंतोष की जड़ बना। विश्वविद्यालयों के छात्र सबसे पहले सवाल उठाने लगे। उन्हें लगने लगा कि भ्रष्टाचार बढ़ रहा है और आम लोगों की आवाज सत्ता तक नहीं पहुंच रही। BBC की पूर्व पत्रकार और लेखक लुईसा लिम अपनी किताब ‘द पीपल्स रिपब्लिक ऑफ एम्नीसिया में बताती हैं, छात्रों को लग रहा था कि अगर अभी नहीं बोले, तो यह मौका हमेशा के लिए खो जाएगा। पत्रकार लुईसा लिम के मुताबिक धीरे-धीरे छात्रों का जमावड़ा एक बड़े जनआंदोलन में बदल गया। चौक पर बहसें होती थीं, भाषण होते थे, लोग भविष्य की बात करते थे। यह सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि उम्मीद थी। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जोसेफ टोरिजियन की रिसर्च के मुताबिक, कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व को डर था कि यह आंदोलन पार्टी की सर्वोच्च सत्ता को चुनौती दे सकता है। सरकार के सामने संवाद या सख्ती दो ही रास्ते थे। ब्रिटिश अखबार गार्जियन और ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट्स बताती हैं कि शीर्ष नेतृत्व ने इसे राजनीतिक खतरा माना और सेना उतारने का फैसला किया। 3 और 4 जून 1989 की रात हालात पलट गए। सेना आगे बढ़ी, गोलियां चलीं और आंदोलन को बलपूर्वक खत्म कर दिया गया। एमनेस्टी इंटरनेशनल और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों की रिपोर्टों के अनुसार, इसमें सैकड़ों से लेकर हजारों लोगों के मारे जाने की आशंका जताई जाती है, हालांकि चीन ने कभी आधिकारिक आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए। —————————- चीन से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… अमेरिका की भारत को चेतावनी- चीन दोहरी चाल चल रहा:एक तरफ दिल्ली से रिश्ते सुधारने की कोशिश, दूसरी तरफ पाकिस्तान को हथियार दे रहा अमेरिका ने भारत को चीन की दोहरी रणनीति को लेकर चेतावनी दी है। पेंटागन की 2025 की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन एक तरफ भारत के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव कम करने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान के साथ सैन्य सहयोग बढ़ा रहा है। पूरी खबर यहां पढ़ें…


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