बोधगया महाबोधि मंदिर परिसर में पवित्र बोधि वृक्ष के छांव में चौथा पालि–संस्कृत जप कार्यक्रम श्रद्धा और के साथ संपन्न हुआ। दो दिनों तक चला यह आयोजन बौद्ध परंपराओं की साझा विरासत और आपसी एकता का सशक्त साक्षी बना। यह कार्यक्रम महामहिम 14वें दलाई लामा की वर्ष 2022 में शुरू की गई पहल का हिस्सा है। मकसद पालि और संस्कृत परंपराओं के बीच संवाद बढ़ाना है। भिक्षुओं के बीच पारस्परिक समझ को गहरा करना और बुद्ध धम्म की मूल भावना को और मजबूत करना है। कार्यक्रम के दौरान पालि और संस्कृत परंपरा के भिक्षुओं ने सामूहिक जप किया। भगवान बुद्ध की ज्ञानस्थली पर हुआ यह दुर्लभ संगम पूरे परिसर में शांति और करुणा का वातावरण रचता रहा। आयोजन पालि और संस्कृत अंतरराष्ट्रीय भिक्षु विनिमय कार्यक्रम के तहत किया गया। ‘पालि और संस्कृत परंपराएं एक ही मूल से निकली हैं’ दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए दलाई लामा कार्यालय के समन्वयक जिम्पा ने अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि अलग-अलग परंपराएं होते हुए भी बौद्ध धम्म की आत्मा एक है। संवाद ही भविष्य का रास्ता है। बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति की सचिव डॉ. महाश्वेता महारथी ने मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित किया। उन्होंने कहा कि पालि और संस्कृत परंपराएं एक ही मूल से निकली हैं। भगवान बुद्ध की करुणा और प्रज्ञा से। इनकी एकता से बुद्ध धम्म और व्यापक होगा। अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के अध्यक्ष भिक्षु नवांग तेनज़िन ग्यात्सो ने भी आपसी सम्मान पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि विविधता में एकता ही बौद्ध परंपरा की ताकत है। कार्यक्रम में भारत के साथ लाओस, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड, तिब्बत और नेपाल से आए भिक्षुओं ने हिस्सा लिया। बोधगया एक बार फिर वैश्विक बौद्ध एकता का केंद्र बना।
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