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भक्ति व अध्यात्मिकता से पूरित 64 ग्रन्थों की रचना की:डाक्टर दानपति तिवारी महात्मा बनादास का रामभक्ति साहित्य बेहद प्रभावशाली

हिन्दी साहित्य की रामभक्ति शाखा के अग्रणी संत कवि महात्मा बनादास की 204 वीं जन्म जयंती पर राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई। वक्ताओं ने संत बना दास को गोस्वामी तुलसीदास के बाद सबसे महत्वपूर्ण रामभक्त संत कवि बताया । वक्ताओं ने कहा कि महात्मा बनादास द्वारा सृजित 64 भक्ति ग्रन्थों का प्रकाशन होना चाहिए तथा हिंदी साहित्य इतिहास में उनका स्थान मिलना चाहिए। इससे पहले महात्मा बनादास साहित्य सभा द्वारा महन्त अंकित दास के आयोजन मे राम की पैड़ी अयोध्या में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में जानकी कुंज के महंत वीरेंद्र दास और साकेत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ अभय कुमार सिंह ने दीप प्रज्वलन करके संयुक्त रूप से कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।
आचार्य संतोष अवस्थी ने भक्ति साहित्य की राम आश्रयी धारा का वर्णन करते हुए महात्मा बनादास के योगदान की चर्चा की। उन्होंने उनसे संबंधित प्रसंगों को उद्धृत करते हुए उन्हें एक महान रामभक्त कवि बताया। पुत्र वियोग ने जीवन की धारा बदल दी
साकेत महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो दानपति तिवारी ने मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि चक्रवर्ती सम्राट दशरथ को हुआ पुत्र वियोग लोक में बदलाव का कारण बना। इसी तरह महात्मा बनादास जी को पुत्र वियोग हुआ तो इससे उनके जीवन की धारा बदल गई और वह अपने आराध्य राम की भक्ति में डूब गए। फलस्वरूप उनके द्वारा भक्ति व आध्यात्मिकता से पूरित 64 ग्रन्थों की रचना की गई। महात्मा बनादास का रामभक्ति साहित्य बेहद प्रभावशाली है। रचना शैली, प्रबंध पटुता, काव्य सौष्ठव ,उनकी भक्ति साधना प्रबल रही
साकेत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो अभय कुमार सिंह ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में भारतीय ज्ञान परंपरा में महात्मा बनारस के योगदान पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने उनकी रचना शैली, प्रबंध पटुता, काव्य सौष्ठव ,उनकी भक्ति साधना व आध्यात्मिक चेतना पर प्रकाश डाला। अवध विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के महामंत्री अमूल्य कुमार सिंह ने अपने वक्तव्य में गोंडा की संत परंपरा पर चर्चा करते हुए महात्मा बनादास के साहित्यिक- आध्यात्मिक अवदान का वर्णन किया । शिक्षाविद /साहित्यकार डॉ रघुनाथ पांडेय के संचालन में संपन्न भारतीय ज्ञान परंपरा में महात्मा बनादास का योगदान विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में अधिकांश वक्ताओं ने महात्मा बनादास के त्याग और योगदान को समाज के सामने लाने, उनके साहित्य को हिंदी साहित्य के इतिहास में शामिल करने तथा अवध की संत परंपरा में उनको स्थान दिलाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया । संगोष्ठी के आयोजक और महात्मा बनादास की वंश-परम्परा के महन्त अंकित दास ने अतिथियों के आगमन के प्रति आभार प्रदर्शन किया।
इस अवसर पर महंत शिवमोहन, महंत लक्ष्मण दास त्यागी,भगवती दास,अरविंद व्यास, राजेंद्र शास्त्री, नारायण दास, ईश्वर चंद्र विद्या वाचस्पति, विवेक रुद्राक्ष,धनंजय पांडेय, हरि ओम वत्सल, राज मिश्रा, अरविंद सिंह, संदीप सिंह, मनोज कुमार, घनश्याम सिंह, धर्मेंद्र सिंह,बजरंगी यादव सहित अयोध्या के साधु- महात्मा और संभ्रांत जन उपस्थित रहे।


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