बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन मंगलवार को जब पटना पहुंचे तब पूरी बिहार बीजेपी ने उनके अभिनंदन को एक शक्ति प्रदर्शन के रूप में बदल दिया। पटना की सड़कों पर 6km का रोड शो हुआ। इसके बाद मिलर स्कूल ग्राउंड में अभिनंदन कार्यक्रम हुआ। नितिन नबीन ने बीजेपी स्टेट हेडक्वार्टर में भाजपा विधानमंडल दल के नेताओं के साथ बैठक की। पद संभालने के बाद भले नितिन नबीन का ये पहला दौरा था, लेकिन इस दौरान ही उन्होंने अपने मंसूबे स्पष्ट कर दिए। 4 पॉइंट में समझिए बिहार दौरे पर आए नितिन नबीन ने नेताओं को क्या संदेश दिए। पहला- पार्टी के भीतर अब गुटबाजी नहीं चलेगी दूसरा- ये नई बीजेपी है, स्वीकार करना होगा तीसरा- हम केवल शहर की पार्टी नहीं, गांव तक संगठन मजबूत करेंगे चौथा- बंगाल में कमल बिहार के सहारे ही खिलाएंगे भास्कर की स्पेशल रिपोर्ट में समझिए, कैसे नितिन नबीन ने अपने अभिनंदन कार्यक्रम में ही बिहार में पार्टी के भविष्य का रुख क्लियर कर गए… पार्टी में हर लेवल पर गुटबाजी खत्म करने का प्रयास बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने एक के बाद एक दो बड़े बदलाव किए। पहला- बिहार के एक मंत्री को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया, जिनकी उम्र पार्टी के उम्र के बराबर है। अगर क्रम में देखें तो वह पार्टी के भीतर तीसरी पीढ़ी के नेता हैं। दूसरा- जातीय गुणा गणित और खेमेबाजी को नजरअंदाज कर दरभंगा सदर के विधायक संजय सरावगी को बिहार में पार्टी की कमान सौंप दी। मंगलवार को नितिन नबीन के पटना में लैंड करने से लेकर पार्टी दफ्तर में कार्यक्रम तक भाजपा के सभी बड़े नेता उनके साथ रहे। नित्यानंद राय, गिरिराज सिंह, नंदकिशोर यादव, सम्राट चौधरी, संजय जायसवाल समेत संगठन के हर नेता से लेकर मंत्री विधायक तक। पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं, ये केवल राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के स्वागत का मामला नहीं था। ये पार्टी की एकजुटता का मैसेज भी था। दरअसल, हालिया कुछ फैसले से लगातार पार्टी के भीतर खेमेबाजी बढ़ती जा रही थी। पार्टी के भीतर अलग-अलग पावर सेंटर उभर रहे थे। इन दो नियुक्तियों और आज के कार्यक्रम के सहारे एक सख्त मैसेज देने का प्रयास किया गया है कि बीजेपी कार्यकर्ताओं की पार्टी है। यहां कोई गुट हावी नहीं हो सकता। पॉलिटिकल एक्सपर्ट अरुण कुमार पांडेय बताते हैं, ’बिहार में बीजेपी अब सरेंडरिंग पार्टी नहीं है। बीजेपी उभरती हुई नया पावर सेंटर है। नितिन नबीन को इस पद पर बैठाने के स्पष्ट संकेत हैं कि गुटबाजी के पुराने हर शिकवे-गिले भुलाकर सभी को बीजेपी की छतरी के नीचे आना होगा।’ अब शहर की नहीं, बिहार के गांव में भी पैठ बनाने की कोशिश अपने अभिनंदन कार्यक्रम के भाषण में नितिन नबीन ने साफ कहा कि आगामी पंचायत चुनावों को मजबूती से लड़ना है। उन्होंने कहा, ‘जब पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक भगवा फहराएगा तभी भाजपा का स्वर्णिम युग आएगा।’ इसके लिए उन्होंने कार्यकर्ताओं को जमीनी स्तर पर संगठन मजबूत करने का निर्देश दिया। मैसेज क्लियर है कि बीजेपी बिहार में अपनी उस छवि को समाप्त करना चाहती है, जिसमें उसे अभी भी शहर की पार्टी का दर्जा दिया जाता है। नितिन नबीन अपनी अगुआई में गांव-गांव में पार्टी की मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना चाहते हैं। इसके मायने-पंचायतों में एक साल बाद 2.5 लाख पदों पर चुनाव ठीक एक साल बाद नवंबर-दिसंबर 2026 में बिहार में पंचायत चुनाव होने हैं। विधानसभा चुनाव के बाद बिहार का ये पहला चुनाव होगा। अब इसकी महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि पंचायत चुनाव में मुखिया के 8 हजार 72, वार्ड मेंबर के 1 लाख, पंचायत समिति सदस्य के 20 हजार, जिला परिषद के 1 हजार से ज्यादा और कुल मिलाकर लगभग 2.5 लाख पदों पर चुनाव होने हैं। इनमें 50% से ज्यादा सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व हैं। बिहार में पंचायत चुनाव बिना पार्टी के होते हैं। यानि कि इसमें किसी पार्टी के बैनर तले के बजाय सभी कैंडिडेट इंडिपेंडेंट चुनाव लड़ते हैं। लेकिन, यहीं से भविष्य के नेता निकल कर आते हैं। अब ग्रामीण इलाके में भाजपा के फोकस के कारण को समझते हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़े और 2023 की जातीय गणना रिपोर्ट के डेटा की मानें तो आज भी बिहार की 88 फीसदी आबादी ग्रामीण है। बिहार की मौजूदा आबादी लगभग 13 करोड़ है। इस लिहाज से देखें तो ग्रामीण आबादी लगभग 11 करोड़ है। यही कारण है कि अब पार्टी का पूरा फोकस गांव-गांव में अपनी पैठ मजबूत करने की है। BJP में जनरेशन शिफ्ट का दौर, सभी को स्वीकार करना होगा सेंट्रल लीडर के फैसले के अलावा नितिन नबीन के इस कार्यक्रम में यह भी दिखा कि किस तरह पार्टी बदलाव के दौर से गुजर रही है। इसका एक उदाहरण मिलर स्कूल ग्राउंड में तैयार मंच पर दिखा। यहां बिहार बीजेपी के सभी बड़े दिग्गज नेता मौजूद थे। लेकिन, मंच संचालन का काम जमुई विधायक और खेल मंत्री श्रेयसी सिंह कर रहीं थीं। बीजेपी में अभी तक आमतौर पर ऐसा होता नहीं था। मंच का संचालन जहां कार्यक्रम हो रहा है, वहां के सीनियर लीडर करते हैं। मंच पर बीजेपी के सीनियर लीडर दीघा के विधायक संजीव चौरसिया, ऋतुराज सिन्हा और राजेश वर्मा जैसे नेता मौजूद थे, लेकिन एंकर श्रेयसी सिंह थीं। अपने भाषण में नितिन नबीन ने इस बात के भी स्पष्ट संकेत दिए। उन्होंने कहा, ’राजनीति में शॉर्टकट के लिए कोई जगह नहीं है। राजनीति लॉन्ग रन का काम है। राजनीति में अगर लंबी दूरी तय करनी है तो धैर्य के साथ काम करना जरूरी है। डेडिकेशन के साथ काम करने वाले कार्यकर्ताओं को पार्टी बूथ से उठाकर सेंट्रल लीडरशिप तक पहुंचा देती है।’ इसके मायने- लॉन्ग टर्म स्थिरता के लिए युवाओं को कमान पॉलिटिकल एक्सपर्ट अरुण पांडेय ने कहा, ’नितिन नबीन (45 साल के युवा नेता) का उदय BJP में पीढ़ीगत बदलाव का प्रतीक है। पुराने नेताओं के साथ उनकी जोड़ी नई ऊर्जा ला रही है, जो युवा वोटरों को आकर्षित करेगी। यह बिहार की युवा आबादी को टारगेट करते हुए लॉन्ग टर्म राजनीतिक स्थिरता तय करेगा। अगर ऐसा नहीं होता तो पहली पीढ़ी के एक से एक दिग्गज नेता कतार में खड़े रह गए और बीजेपी ने एक विधायक जो तीसरी पीढ़ी का नेता है, उसे राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया। बिहार से बंगाल को मैसेज- बंगाल फतह बिहार से ही होगा कार्यक्रम भले बिहार में बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के स्वागत का था, लेकिन खुले मंच से लेकर बंद कमरे में हुए विधानमंडल दल के कार्यकर्ताओं की बैठक तक में बंगाल चुनाव का मुद्दा जोर-शोर से उठाया गया। मिलर ग्राउंड पर जब नितिन नबीन पहुंचे तो मंत्री श्रेयसी सिंह ने कहा कि इतनी जोर से जय श्री राम बोलिए कि इसकी गूंज बंगाल तक जाए। वहीं, जब केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह बोलने के लिए आए, तब उन्होंने लोगों से पूछा- ’1992 में क्या हुआ था?’ फिर कहा, ‘यह महीना भी दिसंबर का है। पश्चिम बंगाल में अगर कोई बाबरी मस्जिद की नींव रख रहा है तो उस बाबरी मस्जिद को भी चकनाचूर कर देंगे।’ इसी मंच से नितिन नबीन ने कहा, ’जनता का आशीर्वाद हमें पश्चिम बंगाल और केरल में भी मिलेगा। आने वाले समय में पूरे देश में भगवा लहराएगा।’ इसके मायने- कायस्थ के साथ बिहारी वोटर्स को निशाना दरअसल, नितिन नबीन कायस्थ जाति से हैं। बंगाल की राजनीति में कायस्थ को निर्णायक माना जाता है। एक्सपर्ट की मानें तो बंगाल की सियासत में घोस, बोस, गुहा और मित्रा निर्णायक होते हैं। राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव के लिहाज से ये प्रमुख समुदाय हैं। ब्राह्मणों के साथ मिलकर ये सवर्ण हिंदुओं का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाते हैं। विधानसभा में 20 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व रखते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़े भी इसी पुष्टि करते हैं। विधानसभा चुनाव 2021 में TMC और BJP दोनों में कायस्थ विधायकों की संख्या सबसे अधिक रही। कोलकाता और आसपास के क्षेत्रों में इनका वर्चस्व है। वे बंगाल की बुद्धिजीवी और प्रशासनिक संस्कृति को आकार देते हैं। मामला केवल कायस्थ जाति तक ही सीमित नहीं है। बंगाल में बड़ी संख्या में बिहारी वोटर्स भी हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बंगाल के कोलकाता, आसनसोल, सिलिगुडी जैसे शहरों में बिहारी मजदूर बड़ी संख्या में निर्माण, चाय बागान और सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं। हालांकि इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन इनकी संख्या लगभग 60-80 लाख की है।
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