लखनऊ के हाता रामदास कैंट में श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस का आयोजन हुआ। कथा व्यास आचार्य पं. विकास विष्णु शरण भारद्वाज महाराज ने महाभारत काल से जुड़ी विदुर नीति और जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला, जिससे श्रोताओं को गहन आध्यात्मिक संदेश मिला। बड़ी संख्या में श्रद्धालु कथा श्रवण के लिए उपस्थित रहे। आचार्य भारद्वाज महाराज ने कथा में बताया कि महाभारत युद्ध के उपरांत विदुर जी तीर्थयात्रा से लौटे। उन्होंने पांडवों की विजय, युधिष्ठिर के राज्याभिषेक और धृतराष्ट्र के प्रति पांडवों के सेवा भाव को देखा। पांडवों ने धृतराष्ट्र और गांधारी की सेवा में कोई कमी नहीं रखी, किंतु युद्ध के भीषण परिणामों के बावजूद धृतराष्ट्र के मन, बुद्धि और विचारों में कोई परिवर्तन नहीं आया था, जिससे विदुर जी चिंतित थे। विदुरजी ने धृतराष्ट्र को संसार की सत्य का बोध कराया कथा के दौरान आचार्य जी ने बताया कि विदुर जी ने एकांत में धृतराष्ट्र को संसार की नश्वरता और सत्य का बोध कराया। उन्होंने समझाया कि जिस प्रकार किसी जीव को रोटी डालकर संतुष्ट कर दिया जाता है, उसी प्रकार धृतराष्ट्र पांडवों की सेवा में उलझकर सांसारिक मोह में फंसे हुए हैं और सत्य से दूर हो गए हैं। विदुर जी ने उन्हें लौकिक और पारमार्थिक ज्ञान देकर जीवन के अंतिम सत्य से परिचित कराया। भगवान श्री नारायण का ध्यान किया विदुर जी के उपदेश से प्रेरित होकर धृतराष्ट्र आधी रात को उनके साथ वन गमन के लिए प्रस्थान कर गए। उस समय धृतराष्ट्र का हाथ विदुर जी के कंधे पर और गांधारी का हाथ धृतराष्ट्र के कंधे पर था। दोनों ने जीवन के अंतिम पड़ाव में वेद, शास्त्र और धर्म का ज्ञान प्राप्त करते हुए भगवान श्री नारायण का ध्यान किया और मोक्ष की ओर अग्रसर हुए। आचार्य भारद्वाज महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि यदि एक नेत्र वाला व्यक्ति भी सत्य का मार्ग जानता हो, तो वह हजारों लोगों को मोक्ष का पथ दिखा सकता है, बस आवश्यकता है उसके बताए मार्ग पर चलने की।कथा श्रवण करने वालों में मुकेश मां प्रीति सिन्हा सहित लखनऊ के विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रद्धालु शामिल थे।
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