तमिलनाडु अभेद्य है. लगभग २५०० वर्षों से. एक सांस्कृतिक दुर्ग की तरह खड़ा. अस्तित्व की हुंकार भरता और उत्तर के हर तीर को अपने समुद्र का नमक चटाता. आख़िर यह कौन सी रणनीति है, श्रेष्ठताबोध है या पहचान को लेकर अतिशय सचेत होना जो सम्राटों को, आज़ादी के रहनुमाओं को और राष्ट्रवाद के ध्वजवाहकों को भी अपने यहां अतिथि से ज्यादा कुछ नहीं होने देता.
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