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मनरेगा बदलाव के विरोध में वाम दलों का प्रदर्शन:बस्ती में कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भेजकर की हस्तक्षेप की मांग

बस्ती में सोमवार को वामपंथी दलों ने मनरेगा कानून में प्रस्तावित बदलावों के खिलाफ प्रदर्शन किया। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और भाकपा माले के कार्यकर्ताओं ने कलेक्ट्रेट पहुंचकर जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा। यह प्रदर्शन केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा को “विकसित भारत रोजगार एवं आजीविका मिशन (ग्रामीण)” के रूप में लागू करने के प्रस्ताव के विरोध में देशव्यापी आह्वान का हिस्सा था। माकपा के जिला सचिव शेषमणि ने बताया कि मनरेगा कानून वामपंथी दलों के दबाव में यूपीए सरकार द्वारा लागू किया गया था, जिसने ग्रामीण गरीबों को रोजगार की गारंटी दी। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार बिना किसी व्यापक बहस के इसके मूल स्वरूप को बदलने का प्रयास कर रही है, जो मजदूरों और ग्रामीण जनता के हितों के खिलाफ है। वाम दलों का आरोप है कि नए प्रस्तावों से मनरेगा कमजोर होगा, जबकि इसे और मजबूत करने की आवश्यकता है। ज्ञापन में राष्ट्रपति से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की गई है और कहा गया है कि मनरेगा में किसी भी ‘विनाशकारी’ संशोधन को स्वीकार नहीं किया जाएगा। प्रदर्शनकारियों ने मनरेगा का नाम बदलने सहित सभी प्रस्तावित संशोधनों को वापस लेने की मांग की। उन्होंने यह भी मांग की कि मौजूदा मनरेगा कानून को जारी रखा जाए, 100 दिन के रोजगार की गारंटी को बढ़ाकर 365 दिन किया जाए और शहरी क्षेत्रों को भी इसके दायरे में लाया जाए। इसके अतिरिक्त, न्यूनतम मजदूरी 800 रुपए प्रतिदिन करने और शारीरिक श्रम के साथ बौद्धिक श्रम को भी रोजगार योजना में शामिल करने की मांग उठाई गई। इस प्रदर्शन में सीपीआई सचिव अशर्फीलाल, कामरेड केके त्रिपाठी, राम लौट, शेषमणि, बलवंत, कुसुम, गुड़िया, रामजी, रामदयाल सहित बड़ी संख्या में वामपंथी कार्यकर्ता उपस्थित थे।


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