अजंता की गुफाओं में मिले चित्रों के आधार पर 2000 साल पुरानी तकनीक से तैयार जहाज आईएनएसवी कौंडिन्य दिसंबर के आखिर में पोरबंदर से ओमान के लिए रवाना होगा। लकड़ी के तख्तों से बने इस जहाज को नारियल की रस्सियों से सिला गया है, इसमें कहीं भी कीलों का इस्तेमाल नहीं हुआ है। जहाज में न तो इंजन है और न ही जीपीएस। इसमें चौकोर सूती पाल और पैडल लगाए गए हैं। यह पूरी तरह हवा के सहारे, कपड़े के पाल (सढ़) से चलेगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इसे हरी झंडी दिखाएंगे। नाविकों की महीनों की तैयारी हजारों साल पुराने भारत के समुद्री व्यापार इतिहास को दर्शाने वाले इस जहाज का नाम महान नाविक ‘कौंडिन्य’ के नाम पर रखा गया है। इस तरह का जहाज चलाने का आज किसी को व्यावहारिक अनुभव नहीं है। इसी वजह से इसके क्रू मेंबर्स पिछले कई महीनों से विशेष ट्रेनिंग ले रहे हैं। जहाज निर्माण में भारत के पारंपरिक हुनर की पहचान
भारत के प्राचीन जहाज निर्माण कौशल को दुनिया के सामने लाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने वर्ष 2023 में इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी। गोवा की एक कंपनी ने करीब 2000 साल पुरानी टांका पद्धति से इस जहाज का निर्माण किया है। ——————
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