गोरखपुर में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने पॉवर कॉरपोरेशन प्रबंधन पर निजीकरण के लिए गलत और भ्रामक घाटे के आंकड़े प्रचारित करने तथा कर्मचारियों में डर का माहौल बनाने का आरोप लगाया है। समिति ने स्पष्ट किया कि निजीकरण का निर्णय निरस्त होने और उत्पीड़नात्मक कार्यवाहियां समाप्त होने तक आंदोलन जारी रहेगा। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि यदि प्रबंधन को अपने घाटे के दावों पर भरोसा है तो वह संघर्ष समिति के साथ आमने-सामने बैठकर वार्ता करे। समिति ने दावा किया कि वह विद्युत नियामक आयोग से प्रमाणित आंकड़े पेश कर 55 हजार करोड़ रुपए के कथित घाटे के दावे को गलत साबित कर देगी। आंदोलन के बावजूद उपभोक्ता सेवा जारी
समिति ने कहा कि आंदोलन के दौरान भी बिजली कर्मी उपभोक्ताओं और किसानों को विश्वास में लेकर काम कर रहे हैं। उपभोक्ताओं की समस्याएं सर्वोच्च प्राथमिकता पर अटेंड की जा रही हैं और मुख्यमंत्री की बिजली बिल राहत योजना 2025 में भी लगातार सहयोग किया जा रहा है। इसके बावजूद प्रबंधन के धमकी भरे बयान कार्य का वातावरण बिगाड़ रहे हैं। वर्ष 2024-25 के खर्च और आय के आंकड़े पेश
संघर्ष समिति के अनुसार वर्ष 2024-25 में विद्युत वितरण निगमों का कुल खर्च 1,08,877.45 करोड़ रुपए रहा, जबकि राजस्व वसूली 86,183.29 करोड़ रुपए हुई। सरकार की 17,100 करोड़ रुपए की सब्सिडी जोड़ने के बाद कुल राजस्व 1,03,283.29 करोड़ रुपए होता है। समिति ने कहा कि कुल खर्च और राजस्व में अंतर मात्र 7,710.04 करोड़ रुपए है। ऐसे में 55 हजार करोड़ रुपए के घाटे का आंकड़ा किस आधार पर बताया जा रहा है, यह समझ से परे है। लाइन हानियों में बड़ी कमी का दावा संघर्ष समिति ने बताया कि वर्ष 2017 में लाइन हानियां 41 प्रतिशत थीं, जो वर्ष 2024-25 में घटकर 13.78 प्रतिशत रह गई हैं। यह राष्ट्रीय मानक 15 प्रतिशत से भी कम है, इसके बावजूद मनगढ़ंत घाटे के आंकड़े दिखाकर निजीकरण को सही ठहराने की कोशिश की जा रही है। समिति ने कहा कि यदि प्रबंधन वास्तव में सुधार चाहता है तो घाटे का सबसे बड़ा कारण माने जा रहे आगरा फ्रेंचाइजी करार को तत्काल रद्द किया जाए। केस्को सरकारी क्षेत्र में रहते हुए 7.19 प्रतिशत लाइन हानियों के साथ बेहतर उदाहरण है, जबकि आगरा फ्रेंचाइजी से पॉवर कॉरपोरेशन को हर साल करीब 1,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। 13 माह से जारी आंदोलन, पीछे हटने से इनकार
संघर्ष समिति ने कहा कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के विरोध में बिजली कर्मी पिछले 13 माह से सड़कों पर हैं। निजीकरण का फैसला वापस होने और उत्पीड़नात्मक कार्यवाहियां समाप्त होने तक आंदोलन जारी रहेगा।
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