सीवान शहर में महासती रानी सती दादी का 37वां दो दिवसीय शरद महोत्सव पूरे श्रद्धा, भक्ति और उत्साह के साथ चल रहा है। नारायण मंडल एवं दादी सेना परिवार के तत्वावधान में श्रद्धानंद बाजार स्थित काली दुर्गा मार्केट में आयोजित इस महोत्सव के दूसरे दिन रविवार को भव्य शोभायात्रा निकाली गई, जो शहरवासियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी रही। शोभायात्रा में सजे-धजे हाथी और घोड़े हुए शामिल शोभायात्रा की शुरुआत फतेहपुर स्थित दुर्गा मंदिर से हुई। यह यात्रा अस्पताल रोड, दरबार रोड, जेपी चौक, मलेशिया चौक और थाना रोड होते हुए पुनः कार्यक्रम स्थल पर पहुंची। शोभायात्रा में सजे-धजे हाथी और घोड़े शामिल रहे, जिन्होंने आयोजन की भव्यता को और बढ़ा दिया। महिलाएं, युवतियां एवं युवा पारंपरिक परिधानों में सज-धजकर नाचते-गाते और झूमते नजर आए। श्रद्धालु भक्ति भाव से ‘दादी की जय’ के जयकारे लगाते हुए चल रहे थे, जिससे पूरे शहर में धार्मिक और उत्सवी माहौल छा गया। 24 घंटे की अखंड ज्योति की प्रज्वलित शोभायात्रा के कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने के बाद 24 घंटे की अखंड ज्योति प्रज्वलित की गई। रात्रि में कोलकाता से आए भजन गायक आयुष त्रिपाठी एवं पटना के शुभम शर्मा ने भजन-कीर्तन की भावपूर्ण प्रस्तुतियां दीं, जिन पर श्रद्धालु देर रात तक झूमते रहे। इस दौरान समिति के सदस्य एवं बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। कार्यक्रम के दौरान विधि-व्यवस्था को लेकर पुलिस प्रशासन पूरी तरह अलर्ट मोड में रहा। शोभायात्रा मार्ग पर पर्याप्त संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई थी और ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित किया गया, जिससे कार्यक्रम निर्धारित समय पर शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ। मारवाड़ी समाज अपनी कुलदेवी मानता यह महोत्सव मारवाड़ी समाज में विशेष महत्व रखता है और श्रद्धालुओं की गहरी आस्था का प्रतीक माना जाता है। समिति के सदस्यों ने बताया कि रानी सती दादी को नारायणी देवी के नाम से भी जाना जाता है, जिन्हें मारवाड़ी समाज अपनी कुलदेवी मानता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रानी सती दादी का संबंध महाभारत काल से जोड़ा जाता है, जहां उन्हें अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा का कलियुग में अवतार माना जाता है। भगवान कृष्ण के वरदान से वे कलियुग में नारायणी रूप में पूजित हुईं।ऐतिहासिक रूप से रानी सती दादी को 13वीं से 17वीं शताब्दी के बीच राजस्थान की एक वीरांगना माना जाता है। उनका मुख्य मंदिर राजस्थान के झुंझुनू में स्थित है, जहां त्रिशूल रूप में उनकी पूजा होती है। मारवाड़ी समाज उन्हें दुर्गा का अवतार मानकर श्रद्धा से स्मरण करता है। ऐसे महोत्सव उनकी भक्ति, साहस और आस्था की परंपरा को जीवंत बनाए रखते हैं।
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