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संस्कृत विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान परम्परा पर विचारगोष्ठी:प्रो. पवन दीक्षित ने संस्कृत के योगदान और AI पर चर्चा की

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ परिसर के संस्कृत साहित्य विद्या शाखा विभाग ने ‘भारतीय ज्ञान परम्परा में संस्कृत के अवदान’ विषय पर एक विचारगोष्ठी का आयोजन किया। इसमें मुख्य वक्ता आचार्य प्रो. पवन कुमार दीक्षित ने भारतीय संस्कृति और ज्ञान परम्परा में संस्कृत की केन्द्रीय भूमिका पर प्रकाश डाला। प्रो. दीक्षित ने अपने संबोधन में कहा कि संस्कृत के बिना भारतीयता की कल्पना अधूरी है। उन्होंने बताया कि वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में हुए विकास के मूल में संस्कृत आचार्यों की साधना, चिन्तन परम्परा और गहन बौद्धिक अनुसंधान निहित है। कला के विकास में संस्कृत का उल्लेखनीय योगदान उन्होंने आयुर्वेद, चिकित्सा, खगोल एवं ज्योतिर्विज्ञान, शिल्प और वास्तुशास्त्र, भूगोल एवं भूगर्भविज्ञान, जीव एवं वनस्पति विज्ञान, विधि एवं व्यवहारशास्त्र, तकनीक और अभियान्त्रिकी के साथ-साथ साहित्य, संस्कृति और कला के विकास में संस्कृत वाङ्मय के उल्लेखनीय योगदान के बारे में बताया। उन्होंने यह भी कहा कि आज के भौतिक विकास में आचारमीमांसा, धर्म और नैतिकता के समन्वय से आदर्श समाज की स्थापना में भी संस्कृत की भूमिका अविस्मरणीय है। मुख्य वक्ता ने भारतीय ज्ञान परम्परा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के प्रयोग के पक्ष और विपक्ष पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने आगाह किया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करते समय सतर्कता आवश्यक है, ताकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत संस्कृत अध्ययन के लिए विकसित की जा रही नवीन तकनीकों का दुरुपयोग न हो। ये मुख्य वक्ता शामिल हुए कार्यक्रम में अखिल भारतीय संस्कृत परिषद के उपाध्यक्ष डॉ. रविकिशोर त्रिवेदी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और विद्वतापूर्ण वक्तव्य दिया। परिषद के मंत्री प्रो. प्रयाग नारायण मिश्र ने वाचिक स्वागत करते हुए विषय प्रवर्तन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता परिषद के अध्यक्ष डॉ. चन्द्र भूषण त्रिपाठी ने की, जिन्होंने भारतीय ज्ञान परम्परा और संस्कृत के संबंध पर अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन परिषद की कार्यकारिणी के सदस्य डॉ. संदीप कुमार मिश्र ने किया। परिषद की संयुक्त मंत्री एवं कार्यक्रम संयोजिका डॉ. पत्रिका जैन के कुशल संयोजन में परिषद के अपर मंत्री तथा लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत-प्राकृत भाषा विभागाध्यक्ष डॉ. अभिमन्यु सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया।


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