उन्नाव में पौष माह की कड़ाके की ठंड में जहां आम जनजीवन प्रभावित है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए सबसे अधिक संघर्ष कर रहे हैं। क्षेत्र के किसान अन्ना मवेशियों, जंगली सुअरों और अन्य पशु-पक्षियों से अपनी रबी की फसलें बचाने के लिए दिन-रात खेतों में डटे रहने को मजबूर हैं। किसानों के अनुसार, खेतों में खड़ी गेहूं, सरसों और चना जैसी रबी की फसलें अन्ना मवेशियों और जंगली जानवरों का आसान शिकार बन जाती हैं। इस स्थिति में किसान हाथों में डंडा और टॉर्च लेकर रातभर खेतों की निगरानी करते हैं। ठंड से बचने के लिए वे अलाव का सहारा लेते हैं, लेकिन कड़ाके की ठिठुरन से पूरी तरह राहत नहीं मिल पाती। किसानों का कहना है कि अब पारंपरिक तरीकों से फसल की सुरक्षा करना पर्याप्त नहीं रहा। इसलिए वे स्थानीय बाजारों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण खरीद रहे हैं। इन उपकरणों में छोटे रिकॉर्डर हॉर्न, साउंड सिस्टम, तेज आवाज निकालने वाले यंत्र और 12 वोल्ट डीसी से एसी डायवर्जन जैसे उपकरण शामिल हैं। इनका उपयोग तेज आवाज पैदा कर जंगली सुअरों और अन्ना मवेशियों को खेतों से भगाने के लिए किया जा रहा है। ग्रामीण किसानों के अनुसार, यदि एक रात भी खेत की रखवाली में चूक हो जाए, तो अन्ना मवेशियों और जंगली पशुओं का झुंड पूरी फसल को बर्बाद कर सकता है। कई किसानों ने बताया कि महीनों की मेहनत और लागत एक ही रात में चौपट हो जाती है, जिससे उन्हें भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। इसी डर के कारण किसान सर्द रातों में भी खेतों में डटे रहते हैं। किसानों ने यह भी बताया कि लगातार रातभर जागने और ठंड में रहने से उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। बुजुर्ग किसान और युवा दोनों ही सर्दी, खांसी और बुखार जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। हालांकि, फसल बचाने की मजबूरी उन्हें घर जाने की अनुमति नहीं देती। ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि अन्ना मवेशियों और जंगली जानवरों की समस्या का स्थायी समाधान किया जाए। किसानों का कहना है कि यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले दिनों में किसानों की परेशानियां और बढ़ सकती हैं। ठंड के इस मौसम में फसल के साथ-साथ किसानों की सुरक्षा भी प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए।
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