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Kakori Train Action | योगी आदित्यनाथ ने ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ के नायकों के बलिदान दिवस पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की

काकोरी ट्रेन एक्शन, जो अगस्त 1925 में लखनऊ के पास काकोरी गांव में हुआ था, भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ के नायकों के बलिदान दिवस पर अपनी श्रद्धांजलि दी।
योगी आदित्यनाथ ने अपने आधिकारिक ‘एक्स’ अकाउंट पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘भारत के स्वाभिमान की अमर गूंज ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ के नायक पं. राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां व ठाकुर रोशन सिंह के बलिदान दिवस पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।’’

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पोस्ट में योगी ने कहा, ‘‘मातृभूमि के सम्मान और स्वतंत्रता की लौ को प्रज्वलित रखने के लिए आप सभी ने अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया। आपकी विरासत हमें राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखने का संकल्प देती रहेगी।’’

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वहीं, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने ‘एक्स’ पर कहा, ‘‘शौर्य, निडरता और मातृभूमि के प्रति अटूट समर्पण के प्रतीक अमर शहीद पं. राम प्रसाद बिस्मिल जी, अशफाक उल्ला खां जी एवं रोशन सिंह जी के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि!’’
पोस्ट में मौर्य ने कहा, ‘‘‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ के माध्यम से इन अमर वीरों ने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। युवाओं तथा देशप्रेमियों को संगठित कर मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए उत्साहित करने वाले इन महान क्रांतिकारियों का अद्वितीय साहस और बलिदान राष्ट्र की स्मृतियों में सदैव अमर रहेगा।’’

काकोरी ट्रेन एक्शन क्या था?

9 अगस्त 1925 को, भारतीय क्रांतिकारियों ने आज़ादी की लड़ाई को समर्थन देने के लिए ब्रिटिश सरकार के फंड को ज़ब्त करने के मकसद से शाहजहांपुर से लखनऊ जाने वाली नंबर 8 डाउन ट्रेन पर काकोरी ट्रेन एक्शन को अंजाम दिया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) और असहयोग आंदोलन (1922) के निलंबन के बाद, युवा राष्ट्रवादियों ने ट्रेन से ले जाए जा रहे ब्रिटिश खजाने के पैसे को ज़ब्त करके क्रांतिकारी गतिविधियों को फंड देने के लिए हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) (1924) का गठन किया।  इसे राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, केशव चक्रवर्ती, मुकुंदी लाल, बनवारी लाल और चंद्रशेखर आज़ाद (HRA के सदस्य) जैसे क्रांतिकारियों ने अंजाम दिया था।

ब्रिटिश प्रतिक्रिया: काकोरी डकैती के बाद ब्रिटिश कार्रवाई में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 17 को जेल हुई, चार को आजीवन कारावास दिया गया और चार—बिस्मिल, अशफाक उल्ला, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी को फांसी दी गई। काकोरी एक झटका साबित हुआ। चंद्रशेखर आज़ाद उन कुछ क्रांतिकारियों में से थे जो पुलिस के चंगुल से भागने में कामयाब रहे।

19 दिसंबर, 1927 को राम प्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर, रोशन सिंह को मलाका (नैनी) जेल और अशफाक उल्लाह खां को फैजाबाद (अयोध्या) जेल में में फांसी दी गई। राजेंद्र लाहिड़ी को इससे दो दिन पहले 17 दिसंबर को गोंडा जेल में फांसी पर चढ़ाया गया।
2021 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने इस क्रांतिकारी घटना का नाम बदलकर ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ कर दिया। इस नए नाम का इस्तेमाल आधिकारिक संचार में उस घटना के संदर्भ में किया जाने लगा, जिसे आमतौर पर ‘काकोरी ट्रेन डकैती’ या ‘काकोरी ट्रेन षड्यंत्र’ के रूप में वर्णित किया जाता था।


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